शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

प्रलय सृजन


प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।
वेदना में है निहित उसका का हरण
वेदना की धार से तुम मत डरो ।

संतुलन ही, नियम है इस प्रकृती का
क्रिया-प्रतिक्रिया ये सदा घर्षण है होता
संतुलन को ही निजी जीवन में लाओ
कमी जो जो है जहां पर वह भरो ।।

दुःख औ उसके बाद सुख, चलता ही जाता
उपरान्त कटनी के कृषक फिर बीज बोता,
तपती धरती, तब ही  तो वर्षा है होती
अमिय की इस धार को हिय में धरो ।।

आज आँसू, कल खुशी की जगमगाहट
आज पीडा है तो कल फिर मुस्कुराहट
दोनों ही के परे जा तुम जी सको तो
जीत के, जीवन के अपयश को हरो ।

कर्म के अनुसार सबको फल है मिलता
जो यहां जैसा है करता वैसा भरता
बात को इस मान के आगे बढो तुम
और अपना कर्म सुख पूर्वक करो ।

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।।

17 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।।

सुंदर ...सार्थक ....प्रेरक पंक्तियाँ ...!!

बहुत अच्छी रचना ...आशा जी ....!!

Satish Saxena ने कहा…

सृजन का स्वागत होगा ...

Satish Saxena ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर विनाश में सृजन के बीज छिपे हैं।

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत ही सुन्दर आशावादी गीत !

kshama ने कहा…

Behad achha sandesh! Lekin kahin to vedna ka ant ho....kaheen to srijan kee shuruat ho! Anant kaal tak vedna kaise sahe koyee?

रश्मि प्रभा... ने कहा…


प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।
वेदना में है निहित उसका का हरण
वेदना की धार से तुम मत डरो ।
....निडरता में ही आधार है

mridula pradhan ने कहा…

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो....bahot khoobsurat pangtiyan.....

Suman ने कहा…

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।
sahi sarthak ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।।

सार्थक प्रेरक पंक्तियाँ \,,,,,,

RECENT POST: तेरी फितरत के लोग,

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

प्रेरणादायक रचना .... विनाश के बाद फिर सृजन होता है ... सुंदर रचना

रंजू भाटिया ने कहा…

कर्म के अनुसार सबको फल है मिलता
जो यहां जैसा है करता वैसा भरता
बात को इस मान के आगे बढो तुम
और अपना कर्म सुख पूर्वक करो ।

वाह बहुत सुन्दर ..रचना .

निर्मला कपिला ने कहा…

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।।
बहुत ही प्रेरक रचना है बधाई।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना आशा जी...

जीवन से ओतप्रोत...

सादर
अनु

कुमार राधारमण ने कहा…

ये जो संतुलन है,इसी को बुद्ध ने सम्यक् कहा है। यह मार्ग संतों का है। इस मार्ग पर चलने वाला गृहस्थ भी संत ही है।

P.N. Subramanian ने कहा…

बेहद सुन्दर रचना. "संतुलन" में ही सार है.

Rakesh Kumar ने कहा…

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।।

वाह! आपकी प्रस्तुति बहुत ही प्रेरक
और आशा का संचार करती हुई है.