गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011
ट्राफिक
मेरा मन एक धुआंधार ट्राफिक वाला रस्ता ।
विचारों के छोटे, बडे , मझोले वाहन,
बेछूट दौडते हुए ।
बडे विचार, छोटे विचार
खरे विचार, खोटे विचार
बुरे विचार, अच्छे विचार
झूटे विचार, सच्चे विचार
निरंतर दौडते रहते हैं
साइकिलों, तिपहियों, कारों, बसों और ट्रकों की तरह ।
मै चाह कर भी इन्हे रोक नही पाती रोक सकती नही ।
कोई एक विचार जबरन बिजली की तरह कौंधता है जहन में,
इतना घिनौना कि मुझे अपने आप पर शर्म आती है । मैं, मैं ऐसे सोच सकती हूँ ?
फिर ये कहां से आया, क्यूं आया ।
सडक पर औचक गलत साइड से कोई ट्रक आजाये जैसे और आप बाल बाल बच जायें
और दिल देर तक धडकता रहे ।
कितनी बार किसी सीखे हुए निष्णात ड्राइवर की तरह विचारों को साधते हुए
सीधे चलाती हूँ । पर पता ही नही चलता कब कैसे मैं किसी गलत लेन में आ गई ।
मै यहां तो नही थी ?
यहां पर एक ट्रैफिक लाइट जरूरी है, बहुत जरूरी ।
ठहरो , देखो, जाओ ।
कहां से आयेगा ये लाइट कौन लगायेगा ? कि काबू हो जाये ये बेलगाम मन
वाचन ,चिंतन , मनन ।
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36 टिप्पणियां:
सही कहा आपने... जिंदगी ही एक यात्रा है... और हम ट्रेफिक में फसे प्राणी... आपकी रचना उम्दा ...वाह...:) शुभदिवस
आदरणीय आशा जोगलेकर जी..
नमस्कार
मेरा मन एक धुआंधार ट्राफिक वाला रस्ता ।
विचारों के छोटे, बडे , मझोले वाहन,
बेछूट दौडते हुए ।
..............सही कहा आपने
एक बेहतरीन अश`आर के साथ पुन: आगमन पर आपका हार्दिक स्वागत है.
आशा जी क्या बात है आप बहुत दिन बाद फिर ब्लॉग जगत में आयीं ...
पर आई एक बहुत सुंदरा रचना लेकर ... इस प्यारी सी कविता के लिए आभार !
मेरा मन एक धुआंधार ट्राफिक वाला रस्ता ।
behad sundar upma di hain...aur sahi bhi.
Bade dinon se aapko miss kar rahee thee! Kahan kho gayeen theen?
Badee zordaar rachana hai! Vipashyana jaisi sadhana hee wo traffic signal ban sakti hai!
ट्रेफिक का इतना सजीव मानवीयकरण हो सकता है आपकी कविता पढ़ने के बाद पता चला !
आपके विचार संवेदना के हर उस पहलू को छू सकने में सफल हुए हैं जो इंसान के जीवन का हिस्सा हैं!
आशा जी,बहुत बहुत आभार !
अपना विवेक ही ट्रैफिक लाइट का कार्य करता है..
asha tai phirse aapko blog par dekha kar bahut achha lag raha hai. apki atmiya tippani ki aadat jo pad gai thi na isi liye, khir....
bahut sunder rachna hai.
kabhi in vicharonse bhare raaste ke kinare baith kar sakshi bhav se vicharonko ache bure na kahate huye bas dekhati jaye yek khsan isa aayega jahan koi vichar nahi keval sakshi bhav bachega.........
bilkul sach...:)
rachna sundar...!
विचारों की अफरा तफरी का बेहतरीन प्रस्तुतीकरण । कभी अनसुलझे प्रश्नों के लिए कोई flash लाइट जलाने की सुविधा हो दिमाग में तो सारी धुंध ही छंट जाए ।
सही कहा आपने|आपकी रचना उम्दा है|आभार|
मेरा तो ट्रैफिक अक्सर जाम हो जाता है।
ट्रैफिक के माध्यम से विचारों की उहापोह, उनके परस्पर गुम्फन का अच्छा दृश्य प्रस्तुत किया है आपने। अच्छा लगा ये प्रस्तुतीकरण।
मैं ऐसे सोच सकती हूँ ?
फिर ये कहां से आया, क्यूं आया ।
सडक पर औचक गलत साइड से कोई ट्रक आजाये जैसे और आप बाल बाल बच जायें
और दिल देर तक धडकता रहे ।
ट्रेफिक पर जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर रचना के लिए बधाई।
यहां पर एक ट्रैफिक लाइट जरूरी है, बहुत जरूरी ।
ठहरो , देखो, जाओ ।
कहां से आयेगा ये लाइट कौन लगायेगा ? कि काबू हो जाये ये बेलगाम मन
सही सवाल है।
सच में जरूरी है ट्रैफिक लाइट बेलगाम मन को संभालने के लिए।
बेहद शानदार पोस्ट।
मन के भावों का सजीव वर्णन।
कितनी बार किसी सीखे हुए निष्णात ड्राइवर की तरह विचारों को साधते हुए
सीधे चलाती हूँ । पर पता ही नही चलता कब कैसे मैं किसी गलत लेन में आ गई ।
मै यहां तो नही थी ?
यहां पर एक ट्रैफिक लाइट जरूरी है, बहुत जरूरी ।
ye panktiyaan behad prabhavi lagi,hamara mann bas aise hi kahi bhi mood jata hai.mann ko traffic ki upma ,ye vichar hi behad dhuwadhar laga,waah.kaash waha koi traffic police vicharon ko control karne ke liye hota? aasha ji aap vaapas lauti bahut khushi huyi,ab aise hi dhuadhar kavitayen padhne ko milengi.hum thik hai.aap bhi apna khayal rakhe,sadar mehek.
अचानक सड़क पर आये वाहन या पिल्ले से उतना खौफ नहीं होता - जितना मन में अचानक बिन बुलाये आये विचार से! :(
वाह आशा जी, कमाल है...
मन की भावनाओं को नए प्रतीक के साथ पेश किया है आपने...बधाई.
आदरणीया आशा जी, पहले तो मेरे ब्लाग पर आने का शुक्रिया । आप पहली बार नही दूसरी बार आई हैं । अब बात आपकी रचना की तो मन की उलझनों विचारों की गुत्थियों व तनाव को आपने ट्रैफिक के माध्यम से कहा है , सर्वथा मौलिक और नया है । जब सब एक साथ निकलना चाहते हैं तो कोई नही निकल पाता । वाह....।
Man chanchal hota hai ... udta hai har disha mein aur kabhi kabhi galat disha mein bhi chala jaata hai ...
Sach hai jeevan ek safar hi to hai ...
आपके संवेदनशील ह्रदय को प्रणाम !!
कितना कितना सही कहा आपने....
और बिम्ब भी बड़ा सटीक चुना...सचमुच यही तो अवस्था रहती है मन की...ट्रैफिक वाले सड़क सी...
ट्रैफिक के माध्यम से विचारों के कशमकश को बड़ी कुशलता से बयाँ किया है....बढ़िया रचना
bahut dino baad aana hua yahan aur aapki sundar rachna ka padhna bhi hua ,
मेरा मन एक धुआंधार ट्राफिक वाला रस्ता ।
विचारों के छोटे, बडे , मझोले वाहन,
बेछूट दौडते हुए ।
बडे विचार, छोटे विचार
खरे विचार, खोटे विचार
बुरे विचार, अच्छे विचार
झूटे विचार, सच्चे विचार
निरंतर दौडते रहते हैं
साइकिलों, तिपहियों, कारों, बसों और ट्रकों की
तरह ।sahi kaha aapne ,sundar .
बहुत सच कहा आपने
इस ट्रेफिक से बचना ज़रूरी भी तो है
साहिर साहब ने भी फरमाया है ...
"मन से कोई बात छिपे न,
मन के नैन हज़ार..."
sundar rachna,
ashaji
janm din ki bahut bahut badhai
बेहद शानदार पोस्ट।
आदरणीया आशा आंटी जी
सादर सस्नेहाभिवादन !
ट्राफिक के माध्यम से आपने मन की भावनाओं का सुंदर चित्रण किया है , बधाई !
आज 24फरवरी को आपका जन्मदिवस है
…
आपने पोस्ट क्यों नहीं लगाई ?
* आप सदैव सपरिवार स्वस्थ सानन्द रहें ! *
~*~ बधाई बधाई बधाई ! ~*~
~*~♥जन्मदिवस की हार्दिक बधाई♥~*~
और
~*~♥मंगलकामनाएं !♥~*~
- राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेन्द्रजी, संजयजी, आपका बहुत आभार जन्मदिवस की शुभ-कामनाओं के लिये । सभी ब्लॉगर बंधुओं का अनेक धन्यवाद कि वे हमेशा मेरी रचनाओं को पढ कर सराहते हैं कभी कभी सुझाव भी देते हैं मै शायद सबको जवाब ना दे पाऊँ पर आपकी सराहना और सुझावों पर ध्यान अवश्य देती हूँ ।
बेहतरीन शब्दों में आपने हर मानव मन का चित्रण कर डाला है .. बहुत खूब ... सार्थक रचना के लिए बड़ाई स्वीकारें
आशा माँ,
नमस्ते!
विचारों का ट्रैफिक बना रहे, मैं तो यही कहूँगा.
आशीष
---
लम्हा!!!
अहा क्या वैचारिक ट्रेन! बचना भाई अक्सिडेंट कर देगी !
sunder rachna,,,,,
real life ...par kavita ....
very good..
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