बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
दुनिया तो...
सब कुछ कितना बेमानी है
दुनिया तो आनी जानी है ,
हर पल सदा बदलने वाली
नित्य ही ये नई कहानी है । सब कुछ....
वो इच्छाएँ, वो आशाएँ,
अगणित अगणित अभिलाषाएँ,
जिनके पीछे रहे दौडते
लेकर सालंकृत भाषाएँ
व्यर्थ किया जिस पर इतना श्रम
कमल-पत्र ऊपर पानी है । सब कुछ..
वो बचपन की छोटी छोटी
सपनों वाली बीरबहूटी
वो साथी से आगे होना
लड-झगड कर हंसना रोना
याद आ रही है बचपन की
आँखों मे लेकिन पानी है । सब कुछ.....
यौवन की मदमाती मस्ती
कुछ तो अपनी भी थी हस्ती
दुनिया अपने मुठ्ठी में थी
जीत की इच्छा घुट्टी में थी
धन,साफल्य, सम्मान, प्रियतमा
केवल मुझको ही पानी है । सब कुछ....
अब उम्र के इस पडाव पर
पंछी से बच्चे छोड गये घर
रहे अकेले वृध्द दंपति
रिश्ते नाते होते जर्जर
जीवन क्या ये सार्थ मान लें?
या ये बातें बचकानी है । सब कुछ....
एक बात पर समझ गये हैं
जितने भी अब बाकी पल हैं
ये पल जन हित में लग जाये
तो अपनी बात बन जाये
तभी शांति पायेगा मन और
तभी जिंदगी रास आनी है । सब कुछ......
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20 टिप्पणियां:
एक बात पर समझ गये हैं
जितने भी अब बाकी पल हैं
ये पल जन हित में लग जाये
तो अपनी बात बन जाये
तभी शांति पायेगा मन और
तभी जिंदगी रास आनी है ।
उम्रदराज लोगों की पीड़ा और उनके लिये एक सार्थक संदेश ।
अब उम्र के इस पडाव पर
पंछी से बच्चे छोड गये घर
रहे अकेले वृध्द दंपति
रिश्ते नाते होते जर्जर
जीवन क्या ये सार्थ मान लें?
या ये बातें बचकानी है ।
बहुत ही सुन्दर उकेरा आपने जीवन सत्य को, आशा जी !
बहुत सुंदर रचना सत्य के साथ
आभार ................
बहुत ही सुन्दर उकेरा आपने जीवन सत्य को, आशा जी
BEHTREEN RACHANA...
वो इच्छाएँ, वो आशाएँ,
अगणित अगणित अभिलाषाएँ,
जिनके पीछे रहे दौडते
लेकर सालंकृत भाषाएँ
व्यर्थ किया जिस पर इतना श्रम
कमल-पत्र ऊपर पानी है । सब कुछ..
जीवन का सत्य है ये मगर हम लोग समय रहते ये नही समझ पाते। बहुत सुन्दर रचना है बधाई
वो बचपन की छोटी छोटी
सपनों वाली बीरबहूटी
वो साथी से आगे होना
लड-झगड कर हंसना रोना
याद आ रही है बचपन की
आँखों मे लेकिन पानी है ...
बचपन की कुछ भोली बिसरी यादें जब सामने आ कर खड़ी हो जाती हैं तो मन में मधुर एहसास भी आता है ...... और मन भीगने भी लगता है ..... बीते में लौटाती अनुपम रचना है ..........
क्या कहूँ...समझ नहीं आ रहा....
कहते हैं कि सुन्दर कविता निकलती भले एक ह्रदय से है,पर वह हर पाठक अपने ही ह्रदय की बात लगती है..
बहुत बहुत बहुत ही लाजवाब कविता लिखी है आपने...भाव भाषा प्रवाहमयता ,सबने मन बाँध लिया...
वो इच्छाएँ, वो आशाएँ,
अगणित अगणित अभिलाषाएँ,
जिनके पीछे रहे दौडते
लेकर सालंकृत भाषाएँ
व्यर्थ किया जिस पर इतना श्रम
कमल-पत्र ऊपर पानी है । सब कुछ..
वाह !!!
वो बचपन की छोटी छोटी
सपनों वाली बीरबहूटी
वो साथी से आगे होना
लड-झगड कर हंसना रोना
याद आ रही है बचपन की
आँखों मे लेकिन पानी है । सब कुछ.....
Yahi saar hai...
मोहतरमा आशा जी, आदाब
अब उम्र के इस पडाव पर
पंछी से बच्चे छोड गये घर
रहे अकेले वृध्द दंपति
रिश्ते नाते होते जर्जर
जीवन क्या ये सार्थ मान लें?
.....इस सवाल का जवाब भी आपको ही खोजना होगा.
सब कुछ कितना बेमानी है
दुनिया तो आनी जानी है ,
सच लिखा आपने।
'ये पल जन हित में लग जाये
तो अपनी बात बन जाये
तभी शांति पायेगा मन और
तभी जिंदगी रास आनी है ।'
yahi to saar hai is kavita ka--behad sundar..
बचपन फिर यौवन से गुजरते हुए..उम्र के ठहरे हुए पड़ाव पर पहुँच कर जीवन को शुरू से दोबारा देखना...कैसा होता है..इसकी अभिव्यक्ति कविता में बखूबी की गयी है.
बधाई.
एक बात पर समझ गये हैं
जितने भी अब बाकी पल हैं
ये पल जन हित में लग जाये
तो अपनी बात बन जाये
तभी शांति पायेगा मन और
तभी जिंदगी रास आनी है
ye jeevan hai ,is jeevan ka yahi hai rang roop ,aas aur vishwas par hi chalna aasaan hota hai .bahut sundar rachna hai aapki .
जीवन की कडवी सच्चाइयां इतने सरल शब्दों में, गीत में ढल गईं, सुखद आश्चर्य हुआ. आपने जैसे हर व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में पलने वाले शक और अवसाद को पढ़ कर यह रचना लिखी हो. मज़ा आ गया. यथार्थ लेखन बहुत कम हो रहा है , कल्पना पर लेखन की भरमार है.
मैं बहुत दिनों बाद आ सका, क्षमा प्रार्थी हूँ लेकिन आपने भी तो याद नहीं दिलाया. क्या कमेन्ट के बदले ही कमेन्ट ब्लॉग जगत की नियति है?
वो बचपन की छोटी छोटी
सपनों वाली बीरबहूटी
वो साथी से आगे होना
लड-झगड कर हंसना रोना
याद आ रही है बचपन की
आँखों मे लेकिन पानी है । सब कुछ.....
बहुत सुन्दर. बधाई.
बहुत सुन्दर. बधाई.
अब उम्र के इस पडाव पर
पंछी से बच्चे छोड गये घर
रहे अकेले वृध्द दंपति
रिश्ते नाते होते जर्जर
जीवन क्या ये सार्थ मान लें?
या ये बातें बचकानी है । सब कुछ....
...इन पंक्तियों से अपरिहार्य हो चुके आधुनिक सामाजिक जीवन का दर्द अभिव्यक्त होता है.
एक बात पर समझ गये हैं
जितने भी अब बाकी पल हैं
ये पल जन हित में लग जाये
तो अपनी बात बन जाये
तभी शांति पायेगा मन और
तभी जिंदगी रास आनी है ।
ये सच्चाई है..वैसे हमे ये बहुत पहले से करना चाहिये..बहुत खुशी मिलती है
अफ़सोस है बहुत बाद में पढ़ पाया , यह कविता दिल को छू गयी , ऐसा लगा जैसे आपने मुझे व्यक्त किया है ! बहुत सुन्दर !
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