रविवार, 11 अक्तूबर 2009

त्रिदल


घास पर ओस
धरती के आँसू
छलके छलके ।

सुबह की उजास
तुम्हारी मुस्कान
महकती हुई ।

काले गहरे
रात के अंधेरे
तुम्हारे गेसू ।

मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।

चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?

कब मुड गए
साथ चलते हुए
अपने रास्ते

मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।

अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।

25 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

गजब लिखा .. सुंदर रचना !!

mehek ने कहा…

मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ
waah behad sunder,kum shabd aur gehri baat.

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

अब तो उसे भूलना ही होगा, बीता कल। भला कौन भुला पाता है, बीता हुआ कल। यही तो साथ रह जाता है, कभी हँसाता है, कभी रुलाता है और कभी प्रेरणा बन जाता है। सार्थक कविता के लिए बधाई।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।

चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?

कब मुड गए
साथ चलते हुए
अपने रास्ते

मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।

अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।


bahut hi achcha likha aapne.......

haan! beeta kal ko bhoolna hi thik rehta hai......

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आशा जी इस अद्भुत रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...

नीरज

Mithilesh dubey ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई

M VERMA ने कहा…

चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
वाह भावो के उम्दा और बेहतरीन प्रवाह
बहुत सुन्दर

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत ही बढिया रचना है। बधाई स्वीकारें।

शरद कोकास ने कहा…

ओस के लिये धरती के आंसू का उपमान अच्छा लगा ।

Unknown ने कहा…

साधारण शब्दों में रचित परन्तु असाधारण अर्थों का आभास कराती अद्भुत रचना........... शैल्पिक सुगठन और

भाषाई कौशल के क्या कहने..............

___अभिनन्दन आपका

P.N. Subramanian ने कहा…

आप कितना कुछ कह जाते हो वह भी चंद शब्दों में. खूबसूरत रचना. आभार.

Vipin Behari Goyal ने कहा…

काले गहरे
रात के अंधेरे
तुम्हारे गेसू ।

मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।

बहुत सुंदर दिल को छुआ

शोभना चौरे ने कहा…

aapka ye andaj bhi bha gya .
bhut sundar abhivykti.

Pawan Kumar ने कहा…

कब मुड गए
साथ चलते हुए
अपने रास्ते

मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।

अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।
बहुत अच्छे........... बेहतरीन अनुभूति ..हर एक शब्द मन को स्पर्श करता है.

VOICE OF MAINPURI ने कहा…

आपकी कविता अनुभवों से भरपूर है...शुभकामनायें

pran sharma ने कहा…

KAVITA KEE EK-EK PANKTI ACHCHHEE
LAGEE HAI.BADHAAEE.

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

घास पर ओस
धरती के आँसू
छलके छलके ।

मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।

अद्भुत, परिकल्पनाओं का उत्कर्ष सभी कुछ तो नज़र आ रहा है आपकी रचनाओं में.

हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

निर्मला कपिला ने कहा…

मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।

चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
आशा जी बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये है ये कविता। कुछ दिन से आपके ब्लाग पर नहीं आ पाई क्षमा चाहती हूँ। बधाई और दीपावली की पूरे परिवार को शुभकामनायें

अजय कुमार ने कहा…

अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।

sundar bhaav wali rachana

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

काले गहरे
रात के अंधेरे
तुम्हारे गेसू ।

मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।

हाइकु जैसे गहरे ....!!

गौतम राजऋषि ने कहा…

मेरा मुड़ना तुम्हारा ठिठकना...वाला अपना सा लगा मैम।

दीपावली की समस्त शुभकामनायें!

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Behtreen HIIKU


दीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
आज का प्रश्न यही है
बही कह रही सही है

पर इस सबके बावजूद

थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
---------शुभकामनाऒं सहित
---------मौदगिल परिवार

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

waah ..ye alag alag triveniyan thin kya.. :)

saari bahut pyari hain.. meri fav aur maine ekdam samjhi hai teesri line iski -- :)

चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?

राजाभाई कौशिक ने कहा…

बधाई!

अँख मे सें पँख निकले
जल चढा है शूली
दो से तीन होवे या
जड चली जाय समुली

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई