सोमवार, 24 अगस्त 2009

घुमक्कडी-2


हवाई सफर
आज 17 जुलै हम सब सुबह चार बजे से ही उठ गये थे । उडान तो 2:56 की है पर तीन घंटे पहले चैक-इन करना होगा और हवाई अड्डे पहुंचने के लिये एक घंटा । हमेशा की तरह हमें एयरपोर्ट छोडने सुहास के पडोसी जिम और उनके दामाद स्टीव आये थे । हम अपने सामान से लैस होकर दो गाडियों में बैठ कर वॉशिंगटन डी सी के डलास एयरपोर्ट पर पहुँच गये । टिकिट तो पहले से ही इंटरनेट पर खरीद लिये थे । जैसे ही हम UNITED के चेक-इन काउंटर पर पहुँचे सुहास जो कि हमारी ग्रूप लीडर है ने सबके टिकिट और पासपोर्ट लिये और चैक-इन कराने पहुँची । बहुत देर हो गई पर हमारा सामान जाने के कोई आसार ही नही दिख रहे थे । पता चला कि काउंटर के कंप्यूटर पर हमारे टिकिटों के नंबर ही नही मैच हो रहे थे, (विडिओ देखें)


”प्रथम ग्रासे मक्षिका पात्” । फिर सुहास लाइन से बाहर निकली और उसने बुकिंग एजेन्ट को फोन मिलाया । बहुत देर तक बातें होती रही और हम इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार करते रहे । इसी बीच मैने तो फोन भी कर लिये दो तीन लोगों को । सबने अलग अलग कियॉस्क पर जाकर ऑटो चैक-इन कराने की भी कोशिश की पर सब व्यर्थ। फिर सुहास फोन पर मिली जानकारी लेकर जल्दी से काउंटर पर आईं और इधर चैक-इन क्लर्क को भी हमारे नंबर मिल गये । सबकी अटकी हुई सांसे खुल गईं और हमने सिक्यूरिटी चैक के लिये प्रस्थान किया ।
ठीक 2 बज कर 50 मिनिट पर हमारी उडान जानी थी पर एक डेढ करते करते पूरे तीन घंटे बाद फ्लाइट ने उडान भरी । हमें सीटें भी क्या मिलीं थीं छे के छे लोग छै अलग अलग सीटों पर और मेरी सीट तो दो मोटे गोरों के बीच मैने सुरेश से कहा मै तो यहाँ नही बैठूंगी और उनसे सीट बदल ली तो जयश्री और मै थोडे से पास पास यानि आगे पीछे बैठ गये । अब हमे चिंता हो रही थी कि लॉस-एन्जेलिस से हमे अगली फ्लाइट मिलती है या नही । वैसे दोनो उडानों के बीच 3 घंटे का अंतराल था पर छह, 60 से 75 के बीच के, बूढों का सवाल था और इंटरनेशनल चैकिंग के लिये 3 घंटे पहले पहुँचना आवश्यक था । पर हमारी प्रार्थनाएँ काम आईं और थोडी भागदौड के बाद हमें हमारी न्यूझीलैंड एयर की उडान ठीक से मिल गई और सीटें भी ठीक ठाक मिलीं । पूरे बारह घंटे की सीधी उडान थी ऑकलेन्ड तक की । सब इतमीनान से बैठ गये और खाना खाकर जो सोये तो बस उठने के 3-4 घंटे बाद ही हम ऑकलेन्ड के हवाई अड्डे पर उतर गये । सुंदर चमचमाता एयरपोर्ट देख कर तबियत खुश हो गई ।

हमारे पास कुछ पैक किया हुआ खाने पीने का सामान था जो हमने फॉर्म में सही सही बता दिया था ।
पर फिर भी जब मेरा बैक पैक एक्स रे मशीन से निकला तो बंदे ने मुझे रोक लिया । वॉट इज इन द बैग । मैने कहा दवाएँ और चॉकलेट फिर सब खोला तो एक गोल अंटे की तरह की गोली निकली जो उडान पर मिली थी । फिर उसने कहा कितनी गोलियाँ हैं मैने कहा बस यही । फिर भी वह नही माना कहने लगा फाइव ऑर सिक्स, तो मैने पूरा बैग उलट दिया और एक चॉकलेट का पैकेट निकला जिसमें गोल गोल फूल की तरह चॉकलेट थीं तब जाकर कहीं उसे संतोष हुआ । बाहर निकले तो हमें टैक्सी लेने आने वाली थी पर कोई नही दिखा । फिर से फोन मिलाये गये । आखिरकार पूरा एक घंटा इंतज़ार करने के बाद एक अलग ही टैक्सी लेकर हम क्वेस्ट ऑन सिन्ट्रा लेन नामक अपार्टमेन्ट बिल्डिंग पहुँचे जहाँ हमे रहना था । बाद में पता चला कि सुहासजी ने उस टैक्सी वाले को हमारे पहुंचने की तारीख ही 2 दिन पहले की बताई थी (17 जुलै )। असल में न्यूज़ीलैन्ड यू एस से 14 घंटे आगे है और सुहास जी के दिमाग में हमारे चलने की तारीख 17 जुलै ही फंसी हुई थी, पर ठीक है अंत भला तो सब भला।
यह बिल्डिंग एकदम पहाडी के ऊपर हो ऐसी थी । पूरा का पूरा ऑकलेन्ड ही पहाड काट कर बनाया सा लगता है । खूब ऊँचे नीचे रास्ते हैं । हम जैसे सीनीयर्स की तो खासी परेड थी । हम तो घूम घाम कर वापसी पर टैक्सी से आते थे ताकि पहाड़ न चढना पडे, पर है बहुत खूबसूरत । हमारा अपार्टमेन्ट भी सुंदर था दो बेड रूम और एक लिविंग रूम कम किचन । पहुंचते ही हमने सामान तो रखा ऑफिस में क्यूंकि अपार्टमेन्ट तैयार नही था सफाई हो रही थी और निकल पडे ऑकलैन्ड की सैर करने । भूख लगी थी उतरते ही एक स्टार-बक कॉफी दिखा तो घुस गये ।(विडिओ देखें)


खाली हम ही थे तो बडी खातिरदारी हुई तो हमने कॉफी और क्रूसाँ खाये वहीं हमें पता चला कि हम मुफ्त बस में शहर का एक चक्कर लगा सकते हैं । हम यूनिवर्सिटी के इलाके में थे शायद इसी वज़ह से । तो यूनिवर्सिटि बस स्टैन्ड पर पहुँचे पता चला हर दस मिनिट पर बस जाती है । तो बस थोडे से इंतज़ार के बाद ही बस मिल गई और हम बडी उत्सुकता के साथ ऑकलैन्ड के लैन्डमार्कस देखने में व्यस्त हो गये । स्काय टॉवर, म्यूजियम, हार्बर और खूबसूरत शहर । वापसी तक हमारा अपार्टमेन्ट भी तैयार था । दो बैड रूम हमने ऐसा तय किया था एक लिविंग रूम कम किचन ओर एक बालकनी जहां से हार्बर का खूबसूरत नज़ारा दिखता था ।
ऑकलैंन्ड दो खूबसूरत हार्बरस् के बीच स्थित है वैटिमाटा और मानाकाऊ, ये माओरी नाम हैं । यहां के निवासियों और टूरिस्ट की सुविधा के लिये यहां खूबसूरत व्हाइनयार्डस्, बीचेज़ तथा रंगीटोटो द्वीप और पहाड़ीयाँ हैं । और भी कई आकर्षण हैं जिनके बारे में आगे बतायेंगे ही ।
तो घर आकर खाना खाया – सब्जी बनाई, रोटी तो बनी बनाई मिल गई । फिर लंबी तान कर सो गये । तकरीबन २०-२१ घंटे का सफर हो गया था । ५ घंटे का एल ए तक और तीन घंटे इंतजार तथा १२ घंटे का एल ए से ऑकलैन्ड तक का सफर ओर यहां आते ही फिर घूमना ग्रोसरी खरीदना वगैरा ।
लेकिन ताज्जुब की बात थी कि यहाँ सुबह चार बजे तक ही नींद खुल जाती । कुछ दिग्गज़ तो 3 बजे से ही जग जाते । (क्रमश:)

10 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बड़ी तपस्या टाईप सफर कटा. चलिए, पहुँच गये, चैन आया. आगे सुनाईये अब.

kshama ने कहा…

विडियो तो नही देख पायी..९किसी कारन नेट अटक रहा था),लेकिन सफर का tension ज़रूर महसूस किया ...!
उफ़ ! सच कहा,यही ख्याल आया होगा मनमे,' प्रथम ग्रासे मक्षिका पात...!"

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

उर्दू के "सफ़र" में अंग्रेजी का "सुफ्फेर"(सफ़र) काफी बोझिल लगा है इसका स्पष्ट आभास आपके आलेख में है, खैर जो चीज़ अपने बस में नहीं उसे तो झेलना ही होगा, अब प्रतीक्षा अगले एपिसोड में यात्रा के रोचक वर्णन की...

आभार.

RADHIKA ने कहा…

इतनी कठिनाइयों के बाद भी सफल यात्रा रही इसलिए बधाई ,सच तो जब कठिनाइया आती हैं तो बड़ा दिमाग खराब होता हैं लेकिन बाद में लगता हैं इन्ही कठिनाइयों की वजह से यात्रा ज्यादा यादगार बन पाई .

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत सुन्दर विवरण।
यात्रा यादगार कठिनाइयों से ही बनती है शायद!

शोभना चौरे ने कहा…

sfar me jab tak aniymitta na ho to safr me maja kaisa ?
aannd arha hai aapke safr me

mehek ने कहा…

aare baapre kiti tension,ticket number nahi milale tenvha.pan nantar milale khup chan jhala.anni next flight pan barobar milali good.apya sobat amchi sudhha auckland safar jhali.surekh vivaran.

Science Bloggers Association ने कहा…

Aisa mauka bahut khushnaseeb logon ko milta hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Abhishek Ojha ने कहा…

विस्तृत यात्रा वर्णन. परेशानियां तो यात्रा का हिस्सा हैं:)

सर्वत एम० ने कहा…

सफर का वर्णन तो आपने ऐसा किया जैसे प्रार्थी स्वयं हवाई यात्रा कर रहा हो. आप अपने बारे में लिखती हैं कि कविता में थोडा लिख कर आप का काम हो जाता है, लेकिन आप तो संस्मरण की भी माहिर हैं. लेख की तारीफ के लिए मुझ गरीब के पास शब्दों का अकाल है. एक चीज़ खराब लगी. आप ने ६० - ७५ के बीच के 'बूढों' का ज़िक्र किया है, ताज्जुब है, आप और ऐसे शब्द--- भला ब्लागर भी कभी बूढा होता है !