शुक्रवार, 12 सितंबर 2008

अलास्का क्रूझ समापन और सीएटल- ७


दूसरे दिन जल्दी ही सारा निबटाना था क्यूं कि शिप के पहुँचते ही हमे साढे ग्यारह बजे
सीएटल के लिये बस लेनी थी । हमारे अर्ली बर्डस् आखरी बार शिप से सूर्योदय देखने ५ बजे से ही उठ के बैठ गये थे । (देखें विडियो )

शिप पर नाश्ते की व्यवस्था तो थी ही तो सब जल्दी जल्दी तैयार होकर नाश्ते के लिये गये । उसके पहली रात को ही हमारी सूटकेसेस हमने दे दी थीं ताकि वे हमें पोर्ट पर वापस मिलें । फिर अपना अपना हाथ का सामान लेकर हम वेटिंग एरिआ में आकर बैठ गये । शिप ७ बजे ही शिप डॉक हो गया था ।
करीब साढे ९ बजे हमारा नंबर आया फिर हम भी लाइन में लगे वही इमिग्रेशन वगैरा किया क्यूंकि केनडा मे प्रवेश कर रहे थे
। वहां से बाहर निकले सामान लिया, काफी ढूंढना पडा, पर मिल गया ।
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बाहर आये तो वही समोसों की दूकान दिखी तो सब के लिये समोसे तथा सैंन्डविचेज़ पैक करवा लिये क्यूंकि आज यही हमारा लंच था । शिप वाली रईसी खतम । फिर खडे हुए टैक्सी के लाइन में । काफी टेन्स थे कि टाइम से बस स्टेंड तक पहुंचेंगे या नही पर सब कुछ ठीक ठाक हो गया । और हमें टैक्सी भी मिल गई और हम समय से पहले पहुँच भी गये । बस के आने में टाइम था ते सब ने खडे खडे ही लंच भी कर लिया । (देखें विडियो )

हमारा अगला पडाव था सीएटल । यहां हम जगदीश और सरला जी के मेहमान थे । ये लोग कुसुम ताई और अरुण जी के दोस्त थे । जगदीश हमें बस स्टेंड पर लेने आने वाले थे । सीएटल आने के पहले फिर एक बार इमिग्रेशन की परेड हुई ।
सीएटल पहुंचते पहुंचते सुहास ने जगदीश जी से फोन पर बात कर ली और हमारे पहुँच ने के थोडी ही देर बाद वो हमें लेने आ गये एक बडी सी गाडी लेकर ताकि हम सब लोगों का सामान ठीक से आ जाये ।
इसके लिये उन्हें अपने पडौसी की गाडी उधार लेनी पडी यह हमें बहुत बाद में मालूम पडा । । सीएटल पहुंचे थे हम चार बजे भूक भी लगी थी चाय भी पीनी थी पर जगदीश जी ने कहा कल तो आपको बोइंग फैक्टरी देखने जाना है तो आज अभी स्नोकालमी फॉल देखते हैं ।“ अ....भी.........”. सोचा सबने पर बोला कोई कुछ नही सुहास ने ही कहा कि घर ही चलते हैं चाय पीना है ।
“वो कोई बात नही पहले रेस्टॉरेन्ट में चाय पीयेंगे और फिर देखेंगे फॉल”, जगदीश जी ने सुझाव दिया और हमने किया भी वही । फॉल पर पहँचे रेस्टॉरेन्ट में चाय और कुकीज़ खाकर थोडे रिवाइव हुए और फिर देखा फॉल, क्या फॉल था साहब, मिनि नियाग्रा ही समझ लीजीये,
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मन प्रसन्न तो हुआ ही थकान भी उतर गई । काफी देर वहाँ खडे खडे गिरते हुए नदी को देखते रहे फिर आस पास थोडा घूमें और घर ।
घर भी एकदम सुंदर था । मर्सर आयलेंड पर वॉशिंगटन लेक के किनारे । घर जाते ही सरला जी से मिले । पहली बार मिले थे लेकिन स्वागत जोरदार था एक अलग तरह का घर का बना फ्रूट पंच और चबेना , मुरमुरे के साथ मिला हुआ नमकीन । एकदम से मालवे के सेव परमल की याद आ गई । फिर उनका सुंदर सा घर देखा उसके खूबसूरत डेक पर खडे रह कर वॉशिंगटन लेक देखते रहे और देखते रहे उसमें डूबते हुए सूरज को । कुसुम दीदी के बारे में बहुत सारी बातें हुईं और सरला जी ने ये भी बताया कि उनके बातों से ही वे हमें भी जानती हैं । सुहास से तो उनका घनिष्ट परिचय था ही । शाम को जगदीश हम सब को आस पास टहलने के लिये ले गये । करीब ३०-३५ मिनिट उस खूबसूरत इलाके में घूमते रहे । यहां भी गुलाबों की कोई कमी नही थी ।
घर आकर डिनर किया खिचडी, एक अलग तरह का पिज्जा और बैंगन और पालक की अनोखी सब्जी जिसमे फ्रेश सोयाबीन भी डलीं थीं । अगले दिन हमें बोइंग की फेक्टरी देखने जाना था । सुहास का प्लानिंग एकदम परफेक्ट सबके टिकिट विकिट इंटरनेट पर ही बुक कर लिये थे । जगदीश जी निव़ृत्ती से पहले बोइंग में ही काम करते थे तो वे भी हमारे साथ आये अपने नाती किरण के साथ । नाती को भी तो दिखानी थी बोइंग फेक्टरी ।
हमने सरलाजी से चाय के सामान के बारे में पूछा तो बोलीं फिकर ना करो चाय मैं बना दूंगी । हमारे ५ बजे उठने वाले प्रकाश भाउजी के लिये एक सुखद आश्चर्य इंतजार कर रहा था । बाहर डेक पर योगा मेट बिछी थी और केतली में गरमा गरम मसालेदार चाय । और क्या मसाला था, चाय के मसाले के साथ तुलसी और पुदीने की पत्ती भी डाली थी शायद । ऐसी झन्नाटेदार चाय पीकर मजा आ गया । सरला जी तो सुबह ५ बजे ही घूमने चली जातीं हैं करीब ३ मील चल कर वे अपने व्यायाम शाला जातीं हैं और वहां व्यायाम कर के फिर उतना ही चल कर घर आतीं हैं । हम लोग जगदीश जी के साथ गये लेक पर घूमने ।
अच्छे खासे एक डेढ घंटे की घुमाई हुई, फिर घर आकर ब्रंच किया और गये बोइंग फेक्टरी। जैसा कि सब जानते हैं बोइंग दुनिया कि नंबर वन कमर्शियल ओर मिलिटरी जेट लाइनर बनाने वाली कंपनी है । दुनिया के सबसे बडी बिल्डिंग में स्थित है ( तकरीबन ४७२,०००,००० क्यूबिक फीट )। दुनिया भर में इसके कोई १००० ऑपरेटर्स हैं जो बोइंग जहाज खरीदते है या लीज करते हैं ।(देखें विडियो )

करीब चार घंटे की टूर होती है यह और दो हिस्सों मे बटी हुई । इसमें ७४७ ,७६७, ७७७ और ड्रीम लाइनर इन सारे हवाई जहाजों के असेंबली आपको दिखाई जाती है और बने बनाये जहाज तो दिखाते ही हैं । बोइंग हवाई जहाजों के सारे पार्ट अन्यत्र बनाये जाते हैं जिनमें बहुतसे देशों की भागीदारी है । जी ई, प्राट एन्ड विटनी तथा रोल्स रॉईस इसके एन्जिन बनाते हैं । पहली टूर में कार्गो प्लेन देखने के बाद जब हम एसेंबली लाइन देखने आये तो एक जायजेन्टिक लिफ्ट में हमे जाना पडा । यहां हमने देखे ऊपर बताये सारे जहाज, मेन्यूफेक्चर के विभिन्न अवस्थाओं में । हमें बताया गया कि ३ मिनिट में एक पार्ट लग जाता है । बहुतसा काम मेन्यूअली हो रहा था । करीब ९० देश इसके कस्टमर हैं । ड्रीमलाइनर ही वो जहाज़ है जो नॉनस्टॉप उडानें भरता है जैसे न्यूयॉर्क-दिल्ली । तो बहुत मजा आया फिर एक्जीबीशन भी देखा कुछ लोगों ने बोइंग की टोपियां खरीदीं हमने ७७७ के २ मॉडल खरीदे । और वापिस आये घर । हमारी सीएटल यात्रा का यह आखरी दिन था कल हमे जाना था मिनियापोलिस (मिनिसोटा) माधुरी के घर ।(देखें विडियो )

उसके बाद हम सब अपने अपने ठिकानें पे जाने वाले थे । तो शाम को सरला जी और जगदीश से गप्पें मारीं उनकी बेटी लोपा से भी मुलाकात हुई । दूसरे दिन उन्होने हमें छोडा एयरपोर्ट । और हम चल पडे अपने आखरी पडाव पर ।
हम मिनियापोलिस के समयानुसार पहुँचे रात को ११ बजे माधुरी और अमित हमें लेने आये थे । घर पहुंच कर बढिया सा खाना खाया और सो गये कुसुम ताई भी वहाँ हमें मिलीं ।
तीन दिन माधुरी के यहाँ मौज मस्ती की उसका पती अमित बहुत ही मिलनसार और मजाकिया है खाना बनाने का भी शौक रखता है । लगा ही नही कि पहली बार मिल रहे हैं । माधुरी ने आमरस पूरी बनाई तथा एक दिन मसाला दोसा खिलाया और एक दिन चायनीज रेस्तराँ में गये हम सब । प्रकाश और जयश्री को वहीं रुकना था । तो माधुरी की मेहमान नवाजी का लुत्फ उठाकर हम बाकी सब ४ जुलै को अपने अपने ठिकाने वापिस आये । बहुत बुरा लगा बिछुडने का करीब महीने भर से साथ थे, और बहुत बढिया वक्त गुजारा था । बहुत एन्जॉय किया था हमने तो, क्या आप तक थोडासा मजा पहुँचा ।
(समाप्त)

6 टिप्‍पणियां:

जितेन्द़ भगत ने कहा…

यह पूरा वृतांत अपने पीसी में सेव कर रहा हूँ, जीवन में कभी गया तो आपकी यात्रा के अनुभव का लाभ ले सकूँगा।

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

यात्रा का सचित्र रोचक विवरण प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद. सचित्र समापन रोचक लगा.

शोभा ने कहा…

वाह! बहुत खूब . बधाई.सस्नेह

Anita kumar ने कहा…

वाह लगता है हम भी आप के साथ घूम लिए और मसालेदार चाय तो बहुत ही बड़िया रही होगी। हमने कभी पुदीने की पत्तियों के साथ ट्राई नहीं किया, अब करेगें

Rakesh Kaushik ने कहा…

सचित्र समापन रोचक लगा.चाय तो बहुत ही बड़िया रही होगी। हमने कभी पुदीने की पत्तियों के साथ ट्राई नहीं किया,सस्नेह


Rakesh Kaushik

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wah.... Mazaa aa gaya bandhuwar.....