गुरुवार, 17 जुलाई 2008

पत्र

माँ हम पहुँच गये हैं सकुशल
अच्छे भी हैं यहाँ पर आकर ।

छूट गई है कमीज़ मेरी
और तेरे बहू की कुरती
मुन्ने के दो एक खिलौने
इतनी थी जाने की फुरती



सब्जी तेरी ला न सका मै
बनिये का कर्ज़ न दे पाया
बाबूजी का टूटा चश्मा पर
कांच नही लगवा पाया

इसका है अफसोस मुझे, पर
तेरे चरण भी ना छू पाया
यह बात उमर भर है चुभनी
कैसा कपूत माँ तूने जाया ।


आज का विचार
काम कितना भी कठिन हो यदि उसे छोटे छोटे टुकडों में बांट कर
एक एक हिस्से को अंजाम दिया जाय तो वह कठिन नही रहता।

स्वास्थ्य सुझाव
गठिया जैसे बीमारी में हल्दी का प्रयोग ज्यादा करें
जैसे कच्ची हल्दी का अचार बनाकर खायें।

4 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

भावुक कर दिया.

रंजू भाटिया ने कहा…

कविता बेहद दिल को छूने वाली है और हल्दी वाला उपाय बहुत अच्छा लगा

Sajeev ने कहा…

अच्छे भाव है कविता के , एक अनुरोध है आप आज के विचार और कविता को अलग अलग पोस्ट किया करें, कविता अपने pure रूप में अधिक अच्छी लगती है

डॉ .अनुराग ने कहा…

बेहद भावपूर्ण कविता.........खूबसूरत.....