मंगलवार, 20 मई 2008

महाराष्ट्र का प्रांतवाद

महाराष्ट्र का प्रांतवाद आजकल बडी चर्चा में हैं । वहाँ के लोगों को आपत्ती है कि क्यूं उत्तर प्रदेश और बिहार के भैया लोग मराठी भाऊ लोगों का जीना मुश्किल कर रहे हैं, उनकी रोटी रोजी छीन रहे हैं । तो इसीलिये गुस्से मे आकर उन्होने कुछ कदम उठाये हैं । लेकिन शायद उन्हे किसीने बताया नही कि कमजोर ताकत गुस्सा भारी । हमारे काका (पिताजी) अक्सर ये मुंहावरा प्रयोग करते थे । और गुस्सा तो हर काम को सिर्फ खराब ही करता है । किसी भी लकीर को यदि छोटा करना है तो इसके आगे एक बडी लकीर खींच दो बस । पर ये बडी लकीर खींचना भी है तो कानून के दायरे में रह कर । हमारे ताई और भाऊ को समझना पडेगा कि अगर भैयाओं से जीतना है तो उनसे कम पैसे लेकर उनसे बढिया काम करें ओर थोडा ज्यादा करें फिर तो देखें कोई कैसे उनकी नोकरी या काम छीन सकेगा । ये समस्या कोई आज की या महाराष्ट्र की ही नही है । आसामी, नागा, बंगाली, पंजाबी सबने इस समस्या को झेला है और झेल रहे हैं ।



हमारा संविधान हर किसी को हक देता है कि वह देश के किसी भी भाग मे जाकर काम ढूंढ सकता है और मिले तो कर सकता है । मांगने से तो भीक भी नही मिलती भाऊ, साबित करो अपने आप को । यह नही हो सकता कि आप काम भी कम करें और फिर भी आप ही को नोकरी मिले । यदि आपको लगता है कि भैया लोग आपके शहर को गंदा कर रहे हैं तो पहले खुद तो उसे साफ रखो और कानून व्यवस्या मजबूत करो ताकि हर कोई शहर की हिफाजत करे । प्रांतों की रचना भाषावार हुई ये सही है । बडी बडी कंपनियों को जो महाराष्ट्र में काम कर रही हैं भूमि पुत्रों को काम देना चाहिये यह भी सही है, पर आप की काबीलीयत भी होनी चाहिये और अपने छबि को सुधारना भी जरूरी है । महाराष्ट्र के लोगों की छबी तो यूनीयन बाजों की है । इसे बदलना होगा । खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है ।

इसी चीज का एक और पहलू है कि यूपी और बिहार के राजनीतिबाज खुद तो अपने क्षेत्रों में ६० सालों में कुछ कर नही सकें ओर अपने लोगों को बद सो बदतर जीवन जीने को मजबूर कर रहे है पर दूसरे प्रदेशों मे जाकर दादा गिरी करने से बाज नही आते ।
बिहार जैसे प्राकृतिक साधनों से भरपूर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने प्रदेश के विकास के लिये काम नही किया । और दूसरे प्रदेशों में जाकर छटपूजा मनाने का क्या तुक है, अगर व्यक्तिगत तौर पर मनायें तो किसी को आपत्ती भी न हो पर उसे राजनीतिक और धार्मिक रैली के तौर पर मनाना कितना उचित है । और असल बात तो यह है ये सब चुनावीं चोंचले हैं पर जनता को चाहिये कि वह इस नौटंकी से प्रभावित न हो ।

9 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

भारत में भारतीय बनाइए। क्यों कहीं पंजाबी, बंगाली महाराष्ट्री या बिहारी बन कर रहते हैं।

रंजू भाटिया ने कहा…

भारत एक है ..हम तो यही कहेंगे :)

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

स्थानीय जनता को मात्र टीज़ करने के लिये छठ मनाने का काम सोचा जाता है तो यह गलत बात है।

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

दरअस्ल इस देश को एकसूत्र में पिरोने के लिये बात नहीं लात की जरूरत है और यदि औलाद बदतमीज़ी पर उतर आए तो पिता को चाहिये कि उसे तुरन्त बेदखल करे. यह बात सभी के समझने की है. खैर......

Udan Tashtari ने कहा…

ये सब चुनावीं चोंचले हैं.

-बिल्कुल सत्य. सब लोग समझ रहे हैं इस बात को.

pallavi trivedi ने कहा…

आपकी बात बिलकुल सही है....जनता सब समझती है लेकिन नेताओं का काम कैसे चलेगा अगर सब जगह अमन चैन हो जाए तो...

Batangad ने कहा…

आशाजी आपकी सारी बातों से मैं सहमत हूं। यूपी-बिहार के नेताओं ने प्रदेश बरबार किया उन्हें राजनीति के लिए छठपूजा की इजाजत नहीं होनी चाहिए।
लेकिन, छठपूजा या कोई भी पूजा देश के किसी भी हिस्से में बेरोकटोक होनी चाहिए। इलाहाबाद में मैं दारागंज मोहल्ले में रहता हूं और वहां सैकड़ो मराठी परिवार हैं और वो मजे से अपनी परंपराओं के साथ जी रहे हैं।

Nishant Kumar ने कहा…

all these differences because of bloody plitics

Asha Joglekar ने कहा…

आपकी बात बिलकुल ठीक है हर्षवर्धन जी पर अपना उत्सव मनाने में और दादागिरी करने में फर्क होता है ।