भैया की ऑंखों में भरा सनेह हो
धरती पे हरियाली गगन में मेह हो
थाली में दिया सजे राखी हो रौली हो
बहना के हिरदय सा आनंद भरा गेह हो
टीका हो मिठाई हो हंसी की फुहार हो
भाई बहन के सनेह की बयार हो
भाभियों की छेडछाड ननदी का रूठना
ऐसे मने राखी तो बहार ही बहार हो
2 टिप्पणियां:
बहने दूर चली गयीं। बस बचपन के राखी दिन की याद रह गयी है।
इस कविता के लिये धन्यवाद, लिखती रहिये।
"भावों की पवित्रता हर समय की आवश्यकता" इन संबंधों को फिर जी लेना चाहता हूँ.
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