वेदना संवेदना है
क्रोध है और कामना है
मोह है और भावना है
मद है कुछ अवमानना है
प्रेम है सद्भावना है 
इनके चलते मै सिरफ
इन्सान हूँ यह मानना है ।
हाथ मेरे कर्मरत है 
चल रहा जीवन का रथ ये 
जो नियत है मेरा पथ है  
है नरम या फिर सखत है
मन कभी रत और विरत है 
इनके चलते मै फकत 
बस हूँ इक लम्हा ए वकत  ।
खुशियां भी हैं और गम भी
आंख य़े होती है नम भी
ताल, सुर हैं और सम भी
धूप और बारिश की छम भी
कभी ज्यादा कभी कम भी
इनके चलते मैं छहों ऋतुएं हूँ 
हूँ ना एक कम भी ।
सब को खुशियां बांट दूं मै
पीर सबकी हर सकूँ मै 
हार हूँ या जीत हूँ मै
इस जहां की रीत हूँ मै
मौन हूँ और गीत हूँ मै
हर जनम में हो सकूं मैं
पहले से कुछ अधिक बेहतर ।
चित्र गूगल से साभार


