शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2007

दुश्मनी दोस्ती जो हो जाये






तू भी आबाद रहे, मैं भी न बरबाद रहूँ
राह कुछ ऐसी निकल आये तो क्या अच्छा हो ।
तेरे गुलशन में बहारें आयें,
मेरा गुलशन खिला-खिला सा हो
मौसम गर ऐसे बदल जाये तो क्या अच्छा हो ।
तेरी तलवारें म्यान के अंदर,
मेरे तरकश में कोई तीर न हो
जंग गर खत्म ये हो जाये तो क्या अच्छा हो ।
तू भी आगे बढे और मै भी न पीछे को रहूं
दौड कुछ ऐसे हमारी हो तो क्या अच्छा हो ।
तू भी खुशीखुशी रहे, मैं भी न नाशाद रहूँ
मन्नतें पूरी जो हो जायें तो क्या अच्छा हो ।
तू भी अपना हाथ बढा, मैं भी कुछ आगे बढूँ
दुश्मनी दोस्ती जो हो जाये तो क्या अच्छा हो



आज का विचार
वाचन, चिंतन , मनन ।

आज का स्वास्थ्य सुझाव

रोज तिल (कच्चे या भुने आपके हाजमे पर निर्भर है )खाने से हड्डियाँ स्वस्थ रहेंगी ।

4 टिप्‍पणियां:

पारुल "पुखराज" ने कहा…

तू भी खुशीखुशी रहे, मैं भी न नाशाद रहूँ
मन्नतें पूरी जो हो जायें तो क्या अच्छा हो ।

्बड़ी प्यारी बात्…सुंदर

आलोक ने कहा…

ठीक है खाएँगे। कच्चे?

मीनाक्षी ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति . काश सभी समझ पाते कि युद्ध् की आग क्या कहर बरसाती है.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

"रोज तिल (कच्चे या भुने आपके हाजमे पर निर्भर है)खाने से हड्डियाँ स्वस्थ रहेंगी।"
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एक वनस्पति वैज्ञानिक ने मुझे तिल के तेल को तलवे पर लगाने की सलाह बेहतर नींद के लिये दी है.
आपका ब्लॉग आज देखा. इतनी जीवंतता देख कर अच्छा लगा और ईर्ष्या भी हुई! :-)