सोमवार, 30 अगस्त 2010

हाँ हमने बेच खाई ..


तिरसठ साल

हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
वतन के वास्ते जिन्होने
जान भी गवाँई ।
इनके जो ये करम हैं
ईमान ना धरम है
अधिकारी हों या नेता 
किस को कहाँ शरम हैं
पैसे का खेल सारा
चोर-चोर मौसेरे भाई
दिखता ही है हुई है
इनकी मोटी कमाई । हाँ हमने...

राष्ट्रकुल खेलों का
मिला है एक मौका
कुछ नाम अपना करते
लेकिन हुआ है धोखा
जनता की सारी दौलत
किस किसने है उडाई
इज्जते वतन भी
है धूल में मिलाई । हाँ हमने...

संसद में बैठे बैठे
जूतम-पैज़ार करते
संविधान अपने की
ये धज्जियाँ उडाते
आतंकियों से इनकी
है साँठ-गाँठ भाई
जनता मरे या जिये
इनको मिले मलाई । हाँ हमने...

राशन नही है मिलता
बच्चा न स्कूल जाता
सरकारी गोदामों में
देखो अनाज सड़ता
अब आसमान छूने
चल पडी है महंगाई
तिरसठ सालों का अपना
यही है हिसाब भाई । हाँ हमने...

कुछ अच्छे लोग भी है
जो रहते काम करते
दुनिया जहाँ में ऊँचा
भारत का नाम करते
हुई उनके भी राहों में
है काँटों की बुवाई
घायल हुए हैं फिर भी
लडते रहे सिपाही । हाँ हमने...

सोमवार, 23 अगस्त 2010

तुम क्यूं चले आते हो…..


तुम क्यूं चले आते हो…..
तुम क्यूं चले आते हो दबे पांव
मेरे खयालों में ?
अचानक ही अनमनी सी हो जाती हूँ मैं ।
किसी चीज का रहता नही होश,
जागती आँखों से सपने में खो जाती हूँ मै ।
किसी के पूछने पर कि क्या हुआ
एक झूटी सी हँसी हंसती हूँ मै ।
किताब में दबे मुरझाये सूखे फूलों को
हौले से सहलाती हूँ मै ।
किसी पुरानी चिठ्ठी को
आँसुओं से भिगोती हूँ मै ।
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर 
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,
खाती हूँ झिडकियाँ ।
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै ।
तुम क्यूं दबे पाँव चले आते हो मेरे खयालो में ?

शनिवार, 14 अगस्त 2010

पालमा दे मालोरका


  पालमा, मालोरका बैलेरिक द्वीपों की राजधानी है । अब ये स्पेन का ही एक राज्य है । इसका इतिहास तो धातुयुग तक जाता है जब आदिवासी लोग यहां पर रहते थे पर रोमन लोगों ने ही इसे पालमा नाम दिया । इसके बाद बेझेन्टियन लोगों का आधिपत्य रहा होगा क्यूंकि कुछ अवशेष यही बताते हैं । मध्ययुग में यहां कोई 300 साल तक अरब लोगों का आधिपत्य रहा जब सारे योरोप में ऑटोमन साम्राज्य की तूती बोल रही थी । अरबों ने इसे नाम दिया था मदीना मायूरका जो बादमें बिगड कर माजोरका और मालोरका हो गया । मदीना को तो एकदम ही बदल कर पालमा कर दिया गया । यहां के पुरानी इमारतों में अरब संस्कृती का प्रभाव स्पष्ट है । 1229 के आस पास रोमनों ने इस पर अपना अधिकार कर लिया । कई विभिन्न देशों के शासकों के बाद यह अब स्पेन का हिस्सा है । टूरिज्म यहां का बडा व्यवसाय है ।
तो हम सुबह करीब दस बजे शिप से एक सुंदर से खूब लंबे पुल से होकर बाहर आये । यहां पुल पर से गुजरते हुए हमने कई बडे बडे जहाज देखे । (विडियो 866-933-3 )
 
सुहास ने कहा वह तो नही घूमेगी उसे तो मॉल जाना है । यहां के मोती बहुत प्रसिध्द हैं । कई रंगों के शेडस् में मिलते हैं जैसै गुलाबी, नीले, ऊदे और काले भी । जयश्री और प्रकाश भी सुहास के साथ मॉल घूमने चले गये, पर मुझे तो देखना था और खरीदना कुछ नही था । तो मैं सुरेश और विजय ने हॉप ऑन हॉप ऑफ बस के 13-13 यूरो के टिकिट लिये और पालमा का चक्कर बस में बैठे बैठ ही लगा लिया ।
हमें यहाँ भी इयर फोन दिये गये थे और 3 नंबर चैनल से हमें अंग्रेजी में कमेंट्री सुनाई दे रही थी । पालमा का ला-सेयू चर्च बहुत प्रसिध्द है यह भी एक मस्जिद की जगह ही बनाया गया है । यहां भी वास्तुओं पर एन्तोनियो गाउदी साहब का प्रभाव स्पष्ट है ।  पुराने शहर के रास्ते संकरे हैं । हम हालाँकि अलमुदीना का राजसी महल नही देख पाये क्यूंकि हमारे रूट में वह शामिल नही था पर नाम से ही पता चलता है कि ये अरबों का किला रहा था जिसे बढा कर महल बना दिया गया । इस महल को जेम्स II नें बनवाया । बेलवर का किला जो गोलाकार में है वह भी मुस्लिम इमारत के अवशेष पर ही बना है। और भी बहुत सी इमारतें थीं जैसे म्यूजियम और कथीड्रल जो हमने देखें । समंदर के किनारे किनारे पाम के पेडों के साथ साथ हमारी बस चल रही थी । बंदर गाह सेल बोट्स सब बहुत ही अच्छा लग रहा था  । (विडियो 866-932-2)
 
करीब एक घंटे बाद हम वापिस आये पर सुहास प्रकास और जयश्री का कहीं पता नही था ।  हम तीनों के पास अपने अपने एंट्री कार्ड थे ही तो हम तो वापिस शिप पर आ गये । बहुत से लोगों की अगली क्रूज आज पालमा से शुरू हो रही थी ( ये भी स्पेन में ही है ) तो उनका स्वागत शिप से बाहर हो रहा था हमारा यह आखरी पडाव और आखरी दिन था कल हमें बार्सीलोना उतरना था पर हमने भी बैठ कर कॉफी पी कुकीज खायीं और फिर शिप के अंदर गये कमरे मे गये रेस्ट किया तब भी इन लोगों का कोई पता नही था । फिर हम चाय पीने ऊपर गये चाय पी तब जाकर कहीं ये लोग आये । पूछा कि क्या क्या खरीदा, जवाब था कुछ भी नही । फिर सुहास मै और जयश्री इनफॉर्मेशन डेस्क पर गये पूछने के लिये कि सुहास को जो ज्वेलरी पर स्पेनिश टैक्स के पैसे वापिस लेने थे वे कहां से मिलेंगे तो रसीद देख कर वहां बैठी लडकी बोली कि आपको तो वापिस कुछ नही मिलेगा क्यूंकि ये तो सिर्फ 100 यूरो से ऊपर के खरीदारी पर ही लागू है । लो जी कल्लो बात, पहले नही बता सकते थे । खैर भुनभुनाते हुए वापिस आये । आज हम फिर एक बार सारे शिप का चक्कर लगाने वाले थे सो लगाया डेक पर घूमे । आप भी घूम लें सुबह से लेकर रात तक की दिन चर्या दिख जायेगी।  विडियो कल क्रूझ तो खत्म पर हमें एक दिन बार्सीलोना रुक कर आगे व्हाया लंडन वाशिंगटन डी सी जाना था पर ब्रिटिश एयरवेज की फ्लाइटस् जा रही थीं यही तसल्ली थी ।(विडियो 866-932-1)

रात भर सफर कर के कल हमारा जहाज बार्सीलोना में डॉक होगा । आज ही सारा सामान पैक करके हमें सूट केसेस 11 बजे से पहले केबिन के बाहर रखनी थी । तो वह काम भी करना था । पर इन 6-7 दिनों में हमने भरपूर आनंद उठाया था । घूमने फिरने का शिप के जीवन का । आराम से रहो खाना पीना सब कुछ टाइम से बिना पत्ता हिलाये मिल रहा है । वहाँ डेक पर जा कर हमने गोल्फ और दूसरे गेम्स भी ट्राय किये ।
सच में कभी सोचा न था कि दुनिया में इतनी जगह घूम कर इतने देश घूम पायेंगे । ऐसी कोई ललक भी नही थी कि यहां जाना है वहाँ जाना है पर वो कहते हैं ना कि बिन मांगे मोती मिले............
सुबह सुबह कोई साढे छै बजे हमारा शिप बार्सीलोना पहुँच गया पर हमें 9 बजे बाहर जाने की परमिशन मिल गई थी । एनातोली तो 10 बजे आने वाले थे । खैर सामान वामान लेकर हम बाहर निकले । दस मिनिट में ही एनातोली हमे लेने आ पहुँचे । उनके घर गये तो कात्लीना और डेनियल भी वहीं थे पर हमारे कमरे हमें दे दिये गये हमें बहुत ही संकोच हो रहा था । डेनियल की तबीयत खराब चल रही थी । पर कात्लीना बच्चे के  साथ एनातोली के कमरे में रही और एनातोली लिविंग रूम मे सोफे पर ।हमने रात का खाना बनाया और एक बार बीच पर घूम लिये वहां रेत में सीपियाँ ढूंढीं, रेत का किला बनाया । (विडियो 933-958-3)

अगले दिन 4 बजे उठना था फ्लाइट 8 बजे की थी । तो एनातोली जी ने हमे एयर पोर्ट पर छोडा ही नही बल्कि क्लॉक रूम में रखवाया हुआ हमारा लगेज भी दिलवाया और फिर हमें चेक-इन काउँटर पर छोड कर वे वापिस गये । उन्हें कार भी वापिस करनी थी ।
 लंडन के फ्लाइट में वेज खाना ही नही था फिर एयर होस्टेस बडी अच्छी थी उसने बिझिनेस क्लास वालों का खाना हमें ला दिया बहुत बढिया पास्ता था । तो वही सारी ऊठा-पटक  कर के फायनली 31 मई को हम  वॉशिंगटन डी सी पहुँच ही गये । सुहास की पडोसन हेलेन और उसका दामाद दो गाडियाँ लेकर हमे लेने आ ही गये थे । सुहास का हेलन के साथ ये अच्छा अरेन्जमेन्ट है । तो लौट कर आ गये सुहास के घर जहां से हमें अपने अपने घर पहुँचना था । पर इन दो तीन दिनों में हमने अपने ट्रिप को खूब याद किया और खुश हुए । आपको हमारे साथ घूमना पसंद आया ? सुहास की अगले 15-20 दिनों में घुटने की सर्जरी होनी है । हम सबने उसे सर्जरी अच्छे से होने के लिये शुभ कामनाएँ दीं ।

(समाप्त)

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

नेपल्स का सौंदर्य



- नेपल्स एक अद्भुत और खूबसूरत जगह जो कि अपनी एक बांह से समंदर को अपने आगोश में बांधने की कोशिश करता सा प्रतीत होता है । यहीं से आप देख सकते हैं विसूवियस पर्वत के नजारे । यह भी अपनी खूबसूरती तथा अपने इतिहास की वजह से जग प्रसिध्द है । इसका ऐतिहासिक उद्गम कोई 7 वी शताब्दी में हुआ जब ग्रीक लोगों ने एट्रुस्कन लोगों के साथ युध्द करने के हेतु इसे अपनी कॉलोनी के रूप में विकसित किया । नाम दिया नापोलीस अर्थात् न्यू सिटी । कोई 4 थी शताब्दी में ये रोमन राज्य के घेरे में आया और कई सालों तक रोमन सम्राटों का प्रिय तफरीह स्थल रहा । उसके बाद ये स्वतंत्र राज्य के रूप में रहा । 15 वी से 18 वी सदी तक ये फ्रांस और स्पेन के बीच युध्द का कारण बना । बाद में गारीबाल्डी के समय ईताली में शामिल हुआ द्वितीय विश्व युध्द के दौरान नेपल्स को बॉम्ब हल्लों का और नात्सी अत्याचारों का शिकार होना पडा । हमने तो एक छोटीसी टूर व्यू ऑप नेपल्स करके ली जो हमें बसमें बिठा कर नेपल्स के सुंदर रास्तों की सैर कराने वाली थी । 
तो हमने वह बस ली और आराम से पीठ टिका के बैठ गये 6 मे से तीन लोगों के पास विंडो सीट थी । तो नज़ारे देखने का पूरा जुगाड था । इसमें हमारी गाइड हमें हर जगह के बारे में संक्षेप में बताती जा रही थीं ।  (विडियो )796-842-1
 
नेपल्स के चौक, बिल्डिंग्ज और चर्चेज देखे । यहाँ हमने उतर कर गेलरिया प्रिंन्सिपे दि नापोली देखी । यह एक बहुत सुंदर जगह है जिसे 1876 से 1883 के दौरान बनाया गया . यह लोहे शीशे तथा पत्थर की बनी एक सुंदर  इमारत है जिसमें बीच मे बहुत खुली जगह है । इसमे हमे आधुनिक प्राचीन वास्तुकला का अदभुत संगम दिखता है । (विडियो 796-842-2 )
 
यहीं पास मे था सेन फ्रान्सिसको का कथीड्रल तथा एक पुरातन महल जहां आजकल ऑफिसेज हैं । यहीं पर आते आते हमने कासल नूओवो (न्यू कासल)  देखा इस पुराने किले का चार्ल्स ऑफ एन्जौ ने  नवीनीकरण कराया ।  हमने  पोसिपिलो पहाडी  भी देखी । फिर हमें एक जगह रिफ्रेशमेन्ट के लिये उतारा गया और कॉफी या चॉकलेट Ice cream में से एक चुनने के लिये बोला गया । मैने और विजय ने आइसक्रीम ली और बाकियों ने कॉफी । कॉफी वाले घाटे मे रहे क्यूं कि कॉफी ठंडी थी । उसके बाद समंदर के किनारे किनारा होते हुए माउंट विसूवियस देखा और देखा नया पॉम्पई शहर । (विडियो 796-842-3) पुराना शहर 79 ए डी में विसूवियस के फटने से मिनिटों में लावे के नीचे दफन हो गया था । लोगों को कोई अवसर नही मिला सोचने या जान बचाने का । रुइन्स देखने हम नही गये क्यूंकि ऊबड खाबड रास्तों पर कोई 3 घंटे चलना था । आप विडियो में नेपल्स के सौंदर्य की एक झलक देखें (। ये ट्रिप हमारी छोटी सी थी फिर भी वापिस आते आते 3-4 घंटे तो हो ही गये थे । आकर लंच किया और सोना था पर सुहास को ज्वेलरी का एक्जीबीशन देखना था तो हम भी उसके साथ हो लिये ये एक्जीबीशन 7 वे डेक पर था । तो वहां गये और जी भर के आँखें सेंक लीं (गलत वाक् प्रयोग है  पर चीजें इतनी सुंदर थीं और लेना तो थी नही, तिस पर लाइटिंग ये लोग ऐसा करते हैं कि ज्वेलरी की सारी चमक परावर्तित होकर दुगनी तिगनी हो जाती है ) तो सुहास ने उल्का के लिये एक चेन ली । उसको वहां के सेल्सगर्ल ने बताया कि इसमे स्पेन का टैक्स शामिल है जो कि आपको उतरते समय ये रसीद दिखाने पर वापिस मिल जायेगा तो हम खुश हो गये । नीचे आये थोडा आराम किया और एक मूवी देखी “इनविक्टस” नेल्सन मंडेला के जीवन पर, बहुत अच्छी मूवी है । कल हमारे शिप का आखरी पडाव था पालमा डी मालोरका यहां हमने कोई टूर बुक नही की थी । (क्रमशः)

बुधवार, 4 अगस्त 2010

रोम का रोमांच -


रोम जाने के लिये हमे उतरना था पोर्ट सिविटाविचिया पर । सुबह सबह पोर्ट पर शिप की डॉकिंग हो गई थी फिर हमें पोर्ट पर उतरने के बाद शिप की तरफ से जो बस ठीक की गई थी हमे सेंट पीटर्स चौक में छोडने वाली थी । वहीं से हम सेंट पीटर्स बेसिलिका और सिस्टाइन चेपल देख सकते थे । क्रिस्चियन्स का सबसे बडा तीर्थ, इसी की वजह से सारे साल यहां टूरिजम जोरों पर रहता है ।  फिर वहां से हमे अपने आप घूमना था, चाहे हम हॉप ऑन हॉप ऑफ बस से घूमते जो कि 4 घंटे की टूर थी, या फिर टैक्सी से । हमने तय किया कि हम सेंटपीटर्स बेसिलिका देख कर फिर टैक्सी से घूमेंगे इस तरह घूमना हमारे कंट्रोल में रहेगा और समय रहते हम सेंट पीटर्स चौक पर आकर वापसी की बस ले सकेंगे ।
कहते हैं कि रोम रोम्यूलस ने ईसा पूर्व 735 के आस पास बसाया । रोम्यूलस और रूमस दो भाई थे जिन्हे भेडियों ने पाला था । बादमे रोम्यूलस ने अपने भाई को मार दिया । रोम्यूलस के नाम पर ही शहर का नाम रोम पडा । और एक किवदंती के अनुसार इन दो बच्चों में से एक लडकी थी रोमा जो बहुत चतुर और होशियार थी इसी के नाम पर रोम बसाया गया । पहले भारत की तरह ही ईताली ( इतालवी में ऐसे ही बोलते हैं ) भी कई राज्यों में बटा हुआ था और इनकी आपस में लडाईयां भी हुआ करती थी । रोम का विकास सबसे पहले रोमन राज्य के तौर पर हुआ इसके बाद ये बना रोमन रिपब्लिक  जो करीब 500 वर्ष रहा और आखिर में रोमन साम्राज्य, जिसे ऑगस्टस ने उत्कर्ष पर पहुँचाया । रोमन शासक जूलियस सीज़र, जिसे तानाशाह के रूप में जाना जाता है और जिसने रोमन साम्राज्य की नीव डाली और नीरो का नाम तो सबने ही सुना है । वही नीरो, जो फिडल बजाता रहा और रोम जलता रहा । खैर ये तो हुई इतिहास की बातें । रोम शुरू सेही क्रिस्चियन धर्म का केन्द्र रहा है और रोमन शासकों का प्रणेता भी ,  इसीसे योरोप में इसका नाम आदर से लिया जाता है । सतत के य़ुद्धोंसे और षडयंत्रों से आखिर इस साम्राज्य का पतन हुआ । अब तो ईताली एक गणराज्य है । लेकिन इसने अपना प्रभाव सारी दुनिया के इतिहास पर छोडा है । वेटिकन अपने आप में एक स्वतंत्र देश है जहां का राजा है पोप । उसी की सार्वभौम सत्ता यहां चलती है ।
हम बाहर आये बस में बैठे और बसने कोई डेढ घंटे बाद हमे सेंट पीटर्स चौक पर छोड दिया । वहां से हम चल कर पहुंचे बेसिलिका बाहर ही एक तंबू के नीचे पोप बैठे हुए थे और ढेर सारी जनता । जिस बात को लेकर क्रिस्चियन्स इतने उत्साहित थे और जन्म सफल मान रहे थे हमारे लिये वही बात बेसिलिका न देख पाने का सबब बन गई ।(विडियो 702-734-2)
 
जब हमे पता चल गया कि बेसिलिका देखने का तो अभी कोई चान्स नही है तो सोचा टैक्सी कर के रोम घूम आते हैं और फिर कोशिश करेंगे ।  हम लोग 5 थे और टैक्सी सिर्फ 4 लोग लेती है पर हम अभी सोच ही रहे थे कि क्या करें, कि एक 22-23 साल का लडका पूछने लगा कि टैक्सी चाहिये ?  हमने उससे कह हम लोग तो 5 जने हैं तो उसने फट से आगे बीच की एक और सीट गिरा दी और कहा दो आगे बैठ जाइये तीन पीछे ।  ड्राइवर का नाम था एन्ड्रे उसने हमे खूब घुमाया । हम तो सिर्फ कोलीसियम देखना चाहते थे, वह तो उसने दिखाया ही और भी बहुत घुमाया कॉन्टेस्टाइन की आर्च, रोमन फोरम, सेंट एन्जेलो का फोर्ट , टिबर नदी और शहर का एक चक्कर ।
सबसे पहले गये हम कोलीसियम । इसका पुराना नाम फ्लेवियन एम्फीथियेटर था । शायद यहां के राजा के नाम पर । बाद में इसके विशाल आकार प्रकार की वजह से लोग इसे कोलिसियम कहने लगे । यहां ग्लेडियेटर्स के ड्यूएट युद्ध खेले जाते थे यहां अतिथियों को उनके रुतबे के मुताबिक बैठाया जाता था । अक्सर ये युध्द किसी एक ग्लेडियेटर की मौत में निर्णित होते थे । इसे हम पुराने जमाने के स्टेडियम कह सकते हैं । यह इमारत बहुतही भव्य है । आप विडियो से पता लगा ही लेंगे ।  ये ग्लेडियेटर किसी ना किसी राजा या जमीदार के अधीन होते थे तथा इनके प्रशिक्षण पर बहुत ज्यादा समय और पैसा लगाया जाता था तो बाद में इनकी मौत को टालने के उपाय सोचे गये बेशक वह हार ही क्यूं ना जाये ।
कोलीसियम देखने के बाद हम रोम के रास्तों से चल कर गये रोमन फोरम देखने । ये पुराने रोमन राज्य के खंडहर हैं । यह जमीन पहले दल दल थी पर इसका भराव कर के यहां शहर बसाय गया । रोम नगर टिबर नदी पर स्थित है और ये नदी अभी भी सुंदरता बनाया हुए है । यहां आते आते हमने कॉन्टेस्टाइन की कमान देखी और उसके फोटो लिये ।  पुराने रोम के पतले रास्तों से हमारी टैक्सी जा रही थी ।
रोमन फोरम को ग्रीक नगरों की तरह बसाया गया यहां राजाओं के निवास, इनके बेसिलिका जो ग्रीक देवी देवताओं के मंदिरों के नामों पर बनाये गये जैसे वेस्टा का मंदिर  । हमने टिबर नदी की भी तस्वीरें लीं और देखा हमने जेनीको और फव्वारा जो बहुत सुंदर है । पुराने रोम का ट्रेस्टावेरा देखा जहां लेग शाम को तफरीह के लिये आते हैं । हमने गैरीबाल्डी का स्मारक देखा इसी के नाम का रास्ता भी है इन्होने ऱोम को फ्रेन्चों से आजाद कराया था । सब इतना पुराना है पर अच्छी तरह सुरक्षित किया हुआ है ।
विडियो (702-734-3)
 
मुझे याद है जब हम शुरू शुरू में 1980 में दिल्ली आये थे तो कुतुबमीनार से आगे वसंत कुन्ज के बन रहे मकान देखने जाते हुए बल्बन की कबर रास्ते पर से दिखती थी पर अब ढूंढने पर भी दिखाई नही देती ।
इसके बाद हमें हमारा टैक्सी ड्राइवर ले गया सेंट एन्जेलो का किला देखने। यहां जाते हुए टिबर नदी के पुल पर से गुजरना होता है ये नज़ारा बहुत ही सुंदर है । वैसे भी पानी चाहे समुद्र हो या नही किसी भी जगह की शोभा में चार चांद लगा देता है । ये किला या कासल राजा हेड्रियन ने अपने मुसोलियम के तौर पर बनवाया था पर बाद में इसे किले के तौर पर इस्ते माल किया गया ये बहुत ही भव्य गोलाकार आकार में बना हुआ है । ऐसा कहते हैं कि यहां से वेटिकन में जाने का एक गुप्त रास्ता है जिससे पोप जब चाहे यहां  जा सकते हैं । डैन ब्राउन की किताब एन्जेल्स एन्ड डीमन्स में इसका वर्णन है । (विडियो 735-765-1& 2)
 
यहां से हम वापिस वेटिकन गये (सेंट पीटर्स बेसिलिका ) पर वहां पर अभी भी बहुत भीड थी । हम लाइन में लगने जा रहे थे इतने में एक आदमी हमें ढूंढता हुआ आया और कहा ये कैमेरा आप का है ?

देखा तो सुहास का कैमेरा था । मुझे उस टैक्सी ट्राइवर ने दिया है । मै उसी टैक्सी में बैठा हूँ जिसे आपने छोडा । सुहास को तो पता ही नही था कि वो कैमेरा टैक्सी में भूल आई है पर उस लडके की दाद देनी पडेगी कि टैक्सी घुमाकर लाया कैमेरा वापिस करने । कहां तो हमने सुन रखा था कि ईताली में चोर और जेब कतरे बहुत हैं बडी सावधानी से रहना है वगैरा और कहां हमारा ये अनुभव, बिल्कुल उलट । वहां एक पादरी अचानक हमें मिल गये तो हमने पूछा कि हमें साढे चार बजे शिप पर पहुंचना है तो क्या हम अंदर का टूर करके वापिस आ सकते हैं उस समय दो बजे थे और लाइन बहुत लंबी थी । पादरी जी ने बताया कि अगर आपको शिप पर साढे चार बजे पहुंचना है तो आप क्यू में न लगें क्यूंकि एक बार आप अंदर चले गये तो वापिस पूरा देखे बगैर नही आ सकते । तो हमने अपना कार्यक्रम बदल दिया और बेसिलिका के बाहर बाहर से ही तस्वीरें लीं । हम चाहें अंदर ना जा पाये हों पर राजू और रुचिका अंदर गये भी और उन्होने शूटिंग भी की थी तो थोडा जायजा आप भी लें । इसमे बेसिलिका के अन्द बनी माइकल एन्जेलो की तस्वीरें हैं जो बाइबल की कहानियों से प्रेरित हैं जैसे आदम और हव्वा की कहानी, नोहाकी कहानी, स्वर्ग और नरक की कहानी (विडियो 4121-510 बेसिलिका क्लिप ) ।

सिस्टीन चैपल में मेरी का यीशू को गोद में लिया हुआ एक पुतला है जो बहुत ही प्रसिध्द है इसमें यीशू को क्रूस से उतारने के बाद मेरी उन्हें गोद में लेकर बैठी हैं । यीशू की लस्त काया और मेरी के चेहरे के भाव देखते ही बनते हैं ।(विडियो 0310 – 0823)
 
आस पास घूमे  और वेटिकन के लाल कपडे पहने हुए सोल्जर्स की तसवीरें उतारीं । फिर एक जगह बैठ कर खानापीना किया वहीं पास में एक औरत आकर बैठ गई तो हमने अपना खाना सेंडविच केला एपल वगैरे उसके साथ बांटे । भूखी होगी, उसने बगैर कोई प्रतिवाद किये चुपचाप ले लिया और फटाफट खत्म भी कर लिया । शायद हम कोई पिछले जनम का कर्ज उतार रहे होंगे ।  फिर हम चल कर वहीं पहुँच गये जहां हमें बस लेनी थी ये एक रेस्तराँ था और क्यूरिओ शॉप भी । यहां बेसिलिका का प्रसिध्द चित्र जहां आदमी और ईश्वर हाथ मिलाने की कोशिश में है, था, और मेरी का वह पुतला भी जिसमे वे ईशू को क्रूस से उतारने के बाद गोद में लिये बैठी हैं । ईशू की लस्त पडी काया उस वक्त की उनकी स्थिती को एकदम जीवंतता से बता रही है । हम ने वहां टॉयलेट का प्रयोग किया । लोगों की इस प्राकृतिक जरूरत को भी ये लोग खूब एन-कैश करते हैं । खैर बस समय पर आई और वापसी पर भी हमने रास्ते में बिखरी सुंदरता आनंद उठाया । अपने शिप पर आये कार्ड दिखा कर अंदर आये और अपने कमरे में । चाय की तलब लगी थी तो गये डेक 12 और चाय पी, थोडी कुकीज खाईं और अंतरात्मा को तृप्त किया । रात को कोई डांस कॉम्पीटीशन था तो सोचा एक चक्कर लगा कर देख आयेंगे । वही किया । मध्यरात्री के बाद या कभी कभी दिन में भी तंबोला भी होता था यहां । बहुत सोचा था जयश्री ने और मैने कि एक बार खेलेंगे जरूर पर हो ही नही पाया । बल्कि एक्यूप्रेशर के फ्री टिकिटस थे जो पांच बजे से पहले जमा करने थे उसमें भी हम लेट हो गये खैर कोई बात नही वैसे भी मुफ्त की चीजें अपने को कब मिलीं हैं । कल हमे जाना था नेपल्स हां वहीं जिसके पास ही है पॉम्पई शहर जो कभी ज्वालामुखी फटने से खत्म हो गया था । हम सबने अंग्रेजी में Destruction of Pompei  की कहानी तो पढी ही होगी । (क्रमशः)