बुधवार, 28 जुलाई 2010

लूका और पीसा के आश्चर्य़


सुबह सुबह हमारा शिप लूका के लिये लिवोर्नो नामक पोर्ट पर डॉक हो गये था ।यहां से हमें बस से आगे जाना था । हमारी बस नंबर थी 16 । लूका और पीसा इटाली के पुराने टस्कैनी प्रदेश के बडे शहर थे और हैं । पुराने जमाने में ये एक स्वतंत्र राज्य था । इसे सबसे पहले एट्रूस्कन्स-आदिवासीयों ने बसाया और बाद में ये रोमन कॉलोनी बन गया था । यहां अब भी रोमन फोरम की तरह अवशेष दिखते हैं । लगभग 11 वी शती में ये रोम के अधीन तो था पर लगभग स्वतंत्र राज्य था । इनकी पडोसी राज्य फ्लोरेन्स तथा पीसा के साथ लडाइयां होती रहती थीं और इसीलिये नगर के चारों और एक दीवार बनाई गई थी ।  इसके अवशेष हमने भी देखे । शिप से हम बस में बैठ कर सिटी सेंटर आये । वहाँ से फिर हमारी गाइड और लोगों को लेकर घूमी और हम लोगों ने उसे कहा कि हम अपने तरीके से घूम कर आपको वापिस इसी जगह मिलते हैं । पहले तो हमें 500 यूरो का नौट तुडवाना था तो हम में से तीन लोग गये बैंक । मै सेंट मेरी का चर्च देख आई फोटो भी खींचे । वापिस बैंक के बाहर खडी हो गई । (विडियो)646_668_2

फिर सुहास ने बाहर आकर कहा टॉयलेट जाना हो तो चलो बैंक में हो आते हैं वरना बाहर तो हरेक के 40-50 सेंट देने पडेंगे । तब हमे पता चला कि बटन दबाने के बाद ही बैंक का दरवाजा खुलेगा । अंदर जाकर हम ने ऐसे पोझ किया कि जैसे बैंक में हमे कोई काम है और टॉयलेट तक चलते चले गये । अपना काम किया और बाहर चले आये ।  वहाँ के स्क्वेअर में कुछ प्यारे प्यारे बच्चे खेल रहे थे आप भी देखें । वहां से चलते हुए फिर हम बज़ार गये छोटी छोटी दूकाने और गलियों जैसे संकरे रास्ते पर साफ सुथरे । वहां से कार्ड और टी शर्टस खरीदे । जयश्री ने बेटियों के लिये पर्सेज़ खरीजीं । यह सब करके हम वह पुरानी दीवार देखने गये जिसे नगर की रक्षा के लिये बनाया गया था पर इसकी ऊँचाई इतनी कम लगी कि घोडा आराम से छलांग लगा कर पार कर सकता होगा ।  लेकिन दीवार का अधिकांश हिस्सा आज भी सुरक्षित है । उस जमाने में ज्यादातर नगर शायद दीवार से सुरक्षित किये जाते होंगे । दिल्ली में भी तो वॉल्ड सिटी है । (विडियो)  669-688 (1)
 
वापसी पर हमने सैंडविचेज खरीदे, जो बहुत ही अच्छे निकले, और लंच किया ।  यहां से बहुत से लोग ड्यूओमो कथीड्रल के टॉवर पर चढने गये पर हम ने तो बस का इंतजार करना ही ठीक समझा । हम जब इंतजार कर रहे थे तो यहां हमने चिक्की खरीदी काजू की और बादाम की हम खा रहे थे कि हमारे पास एक कबूतर आ बैठा उसे हमने थोडी चिक्की दी पर उसने नही खाई फिर मैने उसे तोड कर उसका चाशनी वाल भाग हटा कर बादाम के छोटे टुकडे कर के उसे दिये तो खा गया फिर जयश्री ने उसे अपने सैंडविच में से ब्रेड भी दी । उसका पेट तो खासा भर गया था पर वो हमारे आसपास ही मंडरा रहा था । तो एक छोटा सा टुकडा और फेंका वह इसे अभी चोंच में दबाये ही था कि कहीं से एक चिडिया आ गई और उस पर खूब चिल्लाई चूंचूंचूंचूं चूंचूं चूंचूंचूं -जैसे कह रही हो, “पेटू कहीं का इतना खा लिया तब भी तसल्ली न हुई, चल ला इधर” और हमारे देखते ही देखते कबूतर के मुंह से टुकडा छीन कर.. यह जा और वह जा । उस दृष्य को याद कर के आज भी खूब हंसी आती है । उस वक्त कैमेरे का बाहर हाथ में न होना अखर गया ।
इसके बाद बस में बैठे और गये पीसा जहां का तिरछा टॉवर जग प्रसिध्द है । इसके लिये हमें जाना था मिरेकल स्क्वेअर । हम पीसा के शहर में प्रवेश करने के बाद चलते हुए सीधे मिरेकल स्क्वेअर पहुँचे क्या सुंदर दृष्य था । ताजमहल देखने पर कैसे लगता है कुछ कुछ वैसी अनुभूती थी । पूरा इलाका एक दीवार से घिरा हुआ  और अंदर सफेद ग्रेनाइट ( हमारी गाइड ने यही बताया ) के एक के पास एक बने तीन अद्भुत आश्चर्य हमारे सामने उपस्थित थे । चारों तरफ खूबसूरत हराभरा लॉन । गाइड हमें इन इमारतों के इतिहास के बारे में बता रही थी । एक है केथीड्रल या ड्यूओमो । यह 1064 में बनना शुरू हुआ । युध्द और आग में झुलसने के बावजूद इसे बार बार ठीक किया गया और आज भी इसका रख रखाव बहुत ही अच्छा है ।  कथीड्रल के अंदर मेडोना की बच्चे के साथ मूर्ती है । शायद ये मेडोना ही मेरी है । इसके ठीक सामने है बाप्तिस्त्री जो सेंट जॉन बाप्टिस्ट के नाम पर है । हम अंदर तो नही गये । ड्यूओमा कथीड्रल  या चर्च हमें तो सब एक से ही लगते हैं । ड्यूओमा  के  पीछे  है पीसा का झुका हुआ टॉवर ।  कहते हैं इस टॉवर के सबसे ऊपर के बालकनी से गेलिलियो अपने टेलिस्कोप से सितारे देखा करते थे । कितना अच्छा लगता है जब हम ऐसी पुरानी इमारतों की सैर कर रहे होते हैं जहां बडे बडे दिग्गजों के कदम पडे थे । मुझे ऐसा ही अनुभव बनारस में पांडवों के कुएँ मे झांकते हुए हुआ था और तब भी जब पंढरपूर के विठ्ठल मंदिर में गई थी जहां ज्ञानेश्वर महाराज, नामदेव महाराज और एकनाथ महाराज कभी दर्शन करने आते थे । हम ने पहले तो बाहर से तीनों इमारतों को खूब गौर से देखा और तस्वीरें लीं फिर पास जाकर भी देखा । बहुत लोग पीसा के टॉवर को सहारा देकर गिरने से बचा रहे हैं ऐसी तस्वीरें खिंचवा रहे थे कोशिश तो हमने भी की पर कुछ खास जमा नही । पीसा के टॉवर पर जाने के लिये सिर्फ किसी एक समय 300 लोग ही जा सकते हैं एक साथ जिसमें एक घंटा लगता है (विडियो ) 669-688 942-1900
 
 यहाँ हमें मुंबई से केसरी टूर्स एन्ड ट्रेवल्स के साथ आये कुछ मराठी लोग मिल गये जिनके साथ हमने नोट्स एक्सचेन्ज किये । बाप्तिस्त्री के साथ ही लगा हुआ है केम्पो सान्टो यानि कबर गाह या सीमेट्री । सारी की सारी इमारतें हजार साल पुरानी फिर भी इतनी सुंदर । फिर सारे इलाके में घूम घूम कर फोटो लिये और विडियो भी । आप भी देखें । वहीं एक छोटा सा बाजार था जहां पीसा के टॉवर, चर्च आदि की  छोटी छोटी मूर्तियां मिल रही थीं तो दोनो बेटों के लिये एक एक पीसा का टॉवर खरीदा । (क्रमशः)

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

क्रूझ शुरू – मॉन्टेकार्लो (फ्रान्स)



सुबह ६ बजे तैयार होकर निकल पडे हम सब । थोडी सी धुकधुकी थी मन में कि टिकिट पूछा तो क्या होगा ? एनातोले जी ने हमे आठ बजे पियर पर उतार दिया हमारा शिप था नॉर्वेजियन जेड, कंपनी थी एन सी एल यानि ऩॉर्वेजियन क्रूज़ लाइन । वहीं बाहर ही हमे एक आदमी मिल गया जो टैग बांट रहा था और सामान चैक-इन करवा रहा था बोला टैग लगाकर सामान दे दो । । नेकी और पूछ पूछ । हमने सामान में और हैन्ड लगेज में भी टेग लगा दिये और सामान दे दिया । अब जान में जान आई उसने सिर्फ केबिन नंबर पूछे थे टिकिट तो पूछे नही और जांच के बाद पता लगा कि जिसे हम टिकिट समझ रहे थे उसमे टिकिट नाम की कोई चीज़ थी ही नही सिर्फ लगेज टैग्ज थे जो हमे भी बाहर मिल ही गये थे । शिप पर जाने का रास्ता या गेट तो ११ बजे ही खुलने वाला था । एनातोली तो हमसे विदा लेकर कार वापिस करने चले गये, ये बोल कर कि ३० तारीख को यहीं पर मिलता हूँ । तो हम एक बैंच के खाली होने के इन्तजार में पहले तो खडे रहे फिर लोगों से बतियाने लगे । एक महिला अपने परिवार के साथ थीं, उन्होने कहा कि वे अभी अभी क्रूझ से उतरी हैं और अपनी कार का इन्तजार कर रहीं हैं । उन्होने क्रूझ की बहुत तारीफ की तो हमे भी तसल्ली हो गई । फिर उनकी कार आधे घंटे में आ गई तो सारा बैन्च हमीं लोगों को मिल गया । अब आराम से गेट खुलने का इन्तज़ार किया जा सकता था । हमने साथ लाये हुए सैन्डविचेज खाये । ११ के बजाय १० बजे ही गेट खुल गया । अंदर कुर्सियां लगी हुईं थीं वहां बैठना था । ऑरेन्ज जूस भी रखा हुआ था । वहां बैठ गये फिर लाइन में लग कर पासपोर्ट वगैरा दिखा कर शिप में प्रवेश किया । (विडियो) vdo485_509_1

स्वागत डेस्क पर लोग नाच गा कर स्वागत कर रहे थे सुहास ने भी थोडासा नाच कर उनका साथ दिया ।हमारा मूड एकदम खुशियाला हो रहा था, फिर हम रिसेप्शन पर जाकर अपने कमरों की कार्ड-की लेकर ऊपर गये । इस बार हमारे कमरे ५ वे डेक पर थे । कमरे सुंदर थे पर तब साफ सुथरे नही थे । रूम सर्विस वालों ने कहा आप डेक बारा पर जाकर खाना खाइये तब तक आपके कमरे तैयार हो जायेंगे । भूख तो लगी ही थी तो हम डेक 12 पर गये । वहां लंच रेडी था तो हम लोग जुट गये खाना खाया और वह भी किसी और ने बनाया हुआ । क्रूज़ पर आप कभी गये हों तो आपको पता होगा कि वहां कितनी वेरायटी मिलती है । हमारी तो ये तीसरी क्रूज़ थी । क्रूज़ पर हैश-ब्राउन बडे बढ़िया मिलते हैं एकदम करारे (उबले आलूओ में नमक मिला कर उसके छोटे छोटे आयत से बना कर खूब करारा होने तक तलते हैं) । इसके अलावा सलाद, दही, खीर, नान, पिज्झा, क्रेप, नॉन वेज लोगों के लिये चिकन करी और ग्रिल्ड चिकन । बीफ की भी वरायटीज़ थीं पर वो हमारे किसी के भी मतलब की नही थी । हम मे से तीन लोग तो वेज ही थे और बाकी भी चिकन मछली तक ही सीमित थे । पर वेज होते हुए भी हमारी भी काफी मौज थी । खाना खाकर हम नीचे आये तो कमरे एकदम तैयार थे । बेड, दो नीचे और एक ऊपर टू टीयर के बर्थ की तरह, जयश्री सबसे छोटी ह तो ऊपर तो उसे ही चढना था । बाथरूम भी अच्छा था । चलिये आपको शिप की सैर करायें । चार बजे फिर सेफ्टी ड्रिल के लिये जाना था 6 टे डेक पर हॉल में ही यह ड्रिल हुई हमें कुछ भी नही करना था सिर्फ डेमॉस्ट्रेशन हुआ उसे देखा और समझा कि सेफ्टी जैकेट कैसे पहनना है, कैसे छोटी बोट में बैठ कर शिप को छोडना है आदि । भगवान न करे .............ऐसी नौबत आये । शाम ठीक पांच बजे हमारा शिप चल पडा । फिर हम शिप पर घूमे यहां सब कुछ था स्पा, स्विमिंग पूल, आयुर्वेदिक मसाज, योग, जिम, कैसीनो और थियेटर जहां हर शाम कुछ ना कुछ प्रोग्राम होता था आज तो काराओके कॉम्पीटीशन था जिसमे हमे ज्यादा दिलचस्पी नही थी हिंदी गानों का होता तो और बात थी । शाम की चाय पी । रात का खाना खाया । रात भर सफर कर के हम कल सुबह मॉन्टे कार्लो पहुँचने वाले हैं । यह फ्रान्स का दक्षिणी हिस्सा है । हमारे ग्रूप के के कुछ अर्ली-बर्डस 5 बजे उठ कर ही चाय पी कर 13 नंबर डेक पर चले जाते । आज उन्हे सूर्योदय तो नही मिला क्यूं कि बादल थे । जयश्री, मै और विजय हम साढे छह बजे तक उठते और फिर ऊपर जाकर चाय पीते, डेक पर जाकर घूमते, ब्रेकफास्ट करते फिर आते कमरे में । तो हमने ऊपर देखा कि हमारा शिप डॉक हो गये है और हमे 10 बजे तक बाहर निकलना है मोनेको देखने । हमने सारी टूर्स पहले ही बुक कर ली थीं ।(विडियो) vdo511_548_2

मॉन्टे कार्लो ये इतालवी नाम है इसका मतलब है चार्ल्स पर्वत (Mount Charles) । ये मोनेको के राजा चार्ल्स III के नाम पर पडा है । मोनेको अपने आप में एक देश है भले ही ये जयपुर से भी छोटा हो ।
यहां के पहले निवासी लेगूरियन जनजाति के थे (लंगूरियन नही) । ग्रीक लोग इन्हे मोनोको कहते थे इसी से इस देश को मोनेको भी कहा जाता है । यह कहा जा सकता है कि इसे ग्रिमाल्डी परिवार जो यहां के राजा भी हैं, ने ही इसे इसका असली रूप दिया, और हमेशा इसे अलग देश के रूप में ही रखा । पर इस देश की सुरक्षा व्यवस्था फ्रांस ही देखता है ।
हॉलीवुड अभिनेत्री, ग्रेस केली, की वजह से ये जगह ज्यादा प्रसिध्द है । इन्होने मोनेको के राजकुमार से शादी की थी पर एक एक्सीडेन्ट में युवावस्था मे ही उनकी मौत हो गई थी । इनका वंश आज भी है । प्रसिध्द है यहां के कसीनोज, जिसमे कसीनो ऑफ मॉन्टेकार्लो या कसीनो रोयाल का अपना अलग ही नाम है । मोनेको, ईझ और नीस ऐसी टूर हमने ली थी जो साढेसात घंटे की थी । शिप से बाहर निकल कर हमें एक छोटी बोट में बैठ कर किनारे जाना था जिसे टेन्डर कहते हैं । हर टूर के साथ एक गाइड थी जो हमें बस में बैठने के पहले ही मिल जाती थीं । ये गाइड ही हमें जगह के बारे मे तथा वापसी पर कहां मिलना है ये बताती जाती थी । सबसे पहले हम पहुँचे नीस, बस मे बैठ कर एक खूबसूरत रास्ते से जो समंदर के बगल से गुजरता है । रास्ते मे रशियन चर्च देखते हुए आगे बढे, इसके गुंबद विशेष प्रकार के एक बडे प्याज की तरह होते हैं और रंगीन भी (ज्यादा तर हरे) ।(विडियो)vdo549_577_1

यह नीस फ्रांस के दक्षिणी छोर पर बसा एक छोटासा गांव पर हमारे गांव की तरह नही, यहां सारी सुख सुविधाएं उपलब्ध होती हैं । बहुत सुंदर जगह है यूरोप के बडे बडे धनिक और राजे महाराजे यहां तफरीह करने आते थे । इस वक्त तो हम ही थे । जगह जगह रुक कर हमारी टूर गाइड हमें सारी खास बातें बताती जा रही थीं । यहीं हमे उसने फ्लीस मार्केट पर छोडा ।(विडियो) 549_577 3

वहां बहुत सुंदर सुंदर पर सेकंड हैन्ड चीजें मिल रही थीं हमने तो कुछ खरीदा नही पर हां बाथरूम का इस्तेमाल जरूर किया 40-40 सेंट देकर । और लंच भी किया- क्रेप्स नामक बहुत पतला मैदे का चीला, चीज या मीट जो आपको पसंद हो भरकर दोसे की तरह सर्व किया जाता है । यह एक विशेष फ्रेंच पकवान है । तो ये क्रेप्स खाये और फिर गये हम ईझ नामक गांव मे, जहां हम उतरे और बहुत से लोग पहाड के ऊपर एक परफ्यूमरी देखने चले गये । हमारे तो बस की थी नही, चढ कर तो नही गये पर घूमते घामते हमे वहीं एक परफ्यूम की दुकान दिख गई तो खुशबूओं के रेले मे हम भी चले गये । वहां पर तरह तरह के सुगंध थे और आप तो जानते ही हैं कि ये हिस्सा जिसे फ्रेंच रेवियेरा के नाम से जाना जाता है अपने परफ्यूमरीज के लिये प्रसिध्द है । हमने तो अलमारी में रखने के लिये रोज और एम्बर के सेशेज लिये और पटशौली नामक एक परफ्यूम देखा पर खरीदा नही क्या खुशबू थी .....। वहां पर थोडा चल कर एक नदी थी और उसपर एक छोटा सा पुल । वहां से घाटी का बडा ही सुंदर दृष्य था । आते हुए हमने एक और पुल की भी तस्वीरें ली थीं जिसका नाम था Devil’s Bridge । (विडियो) 578_597

वापसी पर हम रुके मॉन्टे कार्लो । यहां से बस में बैठे और गये कसीनो रोयाल (Casino Royal ) । इसी नामकी मूवी आप में से बहुतों ने देखी होगी । यहां काफी चलना था हमारी गाइड 4 नंबर का बोर्ड लेकर बीच बीच में खडी हो जाती कि कोई पीछे ना रह जाय हमारे सब के ऊपर भी 4 नंबर के स्टिकर चिपकाये हुए थे। चलने के बाद काफी चढाई भी थी पर आ ही गये थे तो ऊपर तो जाना ही था तो गये । बाहर से खूब तस्वीरें लीं अंदर से तो तस्वीरें लेना मना था । पर है बहुत सुंदर क्या बाहर से और क्या अंदर से । यहां आने वाले सब रईस तो क्यूं न करें ऐश, और यहां के निवासी भी उनकी जेबें क्यूं न करायें खाली ।(विडियो)598_636_1

वहां से निकल कर बस में से आये मॉन्टेकार्लो के म्यूजीयम ऑफ ओशेनोग्राफी । एक सुरंग के भीतर से जाकर लंबे से एस्केलेटर पर चढ कर ऊपर जाना पडा । फिर हमे Museum of Oceanography के पास छोड दिया गया कि आप देख लो जो देखना है । म्यूजियम के अंदर तो हम नही गये पर बाहर से घूम घूम कर खूबसूरत नज़ारों की तस्वीरें लीं बाहर ही एक मानव शरीर की अंदरूनी एनाटॉमी दिखाने वाला एक बडा सा पुतला था तथा एक सींग वाला घोडा (यूनिकॉर्न ) भी था जिसकी हमने तस्वीरें लीं फिर मै अकेली ही पास में एक चर्च था वहां हो आई और तस्वीरें लीं आते हुए एक बहुत ही खूबसूरत बगीचा दिखा देख कर मन प्रसन्न हो गया । (विडियो)598_636_2

फिर वापिस बस में, बस से उतर कर टेंडर में और फिर अपने शिप पर । खाना पीना मौज । आज शाम को स्पेनिश डांसेज का प्रोग्राम था वह देखने गये और वाकई मज़ा आ गया । क्या मूवमेन्टस और क्या टैपिंग । आपको न दिखा पाने का खेद है पर वहां शूटिंग की इजाज़त नही थी । रात भर शिप में चल कर कल हमे जाना था लूका और पीसा देखने ( यह इटली- टस्कैनी के दो पुराने और प्रसिद्ध शहर हैं )। (क्रमशः)

शनिवार, 17 जुलाई 2010

बार्सीलोना -2





बार्सीलोना -2
हमारा अगला पडाव था पार्क जो फिर एन्तोनियो गाउदी साहब ने ही डिझाइन किया था । इसका नाम है ग्युएल पार्क । इसको वर्ल्ड हेरिटेज पार्क घोषित किया गया है । इस पार्क का मुख्य प्रवेश द्वार सीढियों से होकर एक सौ खंबों वाले बरामदे में ले जाता है । और बहुत सुंदर सुंदर  भित्ती चित्र है जो पॉटरी के टुकडों से बनाये गये है । गाउदी साहब की कल्पना यहां बेलगाम दौडी है । हमने सबसे ऊपर जाकर बार्सीलोना शहर का दृष्यावलोकन किया और वहां के सुन्दर शिल्प भी देखे ।वहीं पर कुछ संगीतकारों का ऑर्केस्ट्रॉ भी सुना आप भी लें इसका आनंद । पार्क की सैर कर के हम बहुत थक गये थे पर घर जाने से पहले थोडा दूध, ब्रेड, फल, सब्जी वगैरा लेनी थी तो ग्रोसरी स्टोर का स्टॉप लिया, घर गये खाना बनाया और खाया यहां हम ज्यादा तर चावल, दाल, सब्जी, सलाद, और थोडी ब्रेड ऐसा ही खाना खाते थे क्यूंकि आटा तो मिलता नही था और किसी मे भी घूमने के बाद रोटियां सेंकने की ताकद नही थी । पर एनातोली कहां हमे छोडने वाले थे, उन्होने तो दिल्ली मे हमारा खाना देखा था तो पूछ ही लिया ,”You don’t  make  rotees in US ? हमने कहा, ” we do, but we do not know where to get flour here.”  यहां तो प्रकाश भाउजी की चांदी थी रेड वाइन काफी सस्ती थी तो ऐश ही हो गई ।

अगले दिन हमे जाना था मॉन्ट सेराट देखने ।  पहले पहल नाम से तो पता नही चल रहा था है क्या चीज पर एक लंSSSबे ड्राइव पर जो कि वहां जाने का रास्ता था एनातोली ने बताय कि ये मॉन्टसेराट एक खूबसूरत पहाड है ।
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मान्ट यानि पहाड (माउंट) और सेरात या सेराट यानि आरी की तरह सेरेटेड । रास्ता बहुत ही खूबसूरत था यहां के छत्री नुमा पाइन जगह जगह नजर आ रहे थे । जैसे जैसे पहाड नजदीक आता गया हम ऊSह आSह करके उससे प्रभावित होते रहे । पहाड पर एक  Monastry  भी है । हमें लगा कि यहां शायद बौध्द भिक्षु रहते होंगे पर ख्रिस्चियन लोगों की ही Monastry   होती है  उसी तर्ज पर वह बौध्दों के मठ को भी मोनेस्ट्री  कहते हैं । वहां मेरी का काले पत्थर से बना स्टेचू भी है । मंदिर ही समझो । स्पेन में कैथलिक  लोग ही हैं इसीसे चर्चेज भी कैथलिक ही हैं उन्हे मूर्तियों से कोई परहेज नही है । खूब सारे स्टेचूज जीजस के खास शिष्यों के भी थे । अन्हे ही शायद एपॉस्टल कहते है । मॉन्ट सेराट के चोटी पर जाने के लिये एक ट्रेन भी है पर उस दिन वो बंद थी । हमने ट्रेन के फोटो तो खींच ही लिये जो कि रुकी हुई थी । उस मोनास्ट्री के परिसर में खूब घूमे घाटी की और पहाड की ढेर सारी तस्वीरें खींची । आप भी लीजिये विडियो का मजा (विडियो ) ।  मुझे विश्वास है कि आपको भी आनंद आयेगा । वहीं मॉन्ट सेराट पर हमने लंच किया  ।  शाम के लगभग वापिस आये । खाना तो बनाना ही था समय समय पर भूख जो लगती थी ।
दूसरे दिन हमें बार्सीलोना शहर देखने जाना था  हॉप ऑन हॉप ऑफ बस लेकर ।
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तो एनातोली साहब ने हमे टूरिस्टिक बस पर छोडा और हम बस लेकर चल दिये इस के दो स्पॉट कथीड्रल और पार्क तो हमारे देखे हुए ते तो उतरना नही था । हम तो बस में बैठे बैठे ही बार्सीलोना घूम लिये ।ऑलिम्पिक स्टेडियम, समंदर और पियर जहां से कल हमे क्रूझ लेनी थी देखा । खूब सारी सेल बोटस् मोटर बोटस् लगी हुई थीं वहां , पेलेसिओ रिआला यहां का महल, एक स्पेस शिप की तरह की बिल्डिंग, तरह तरह के स्कल्पचर्स जिसमे एक लॉबस्टर भी था । बारसीलोना के रास्ते, इमारतें । हमने जो देखा आप भी देखिये । (विडियो )332_430_2





घर आने के बाद खाना पीना किया । रास्ते मे हमने कैन्टक्की फ्राइड चिकन हमारे मेजबान के लिये ले लिया कि बेचारे इतने दिनो से हमारे साथ घास फूस खा रहे हैं आज इनकी पार्टी कराते हैं । पिर हम गये बार्सी लोना के सबसे महंगे घरों के इलाके मे । हमने तो बजार जाना चाहा था ताकि हम बच्चों के लिये कुछ ले लेते लेकिन एक ही दूकान मे खरीदारी के बाद हम वहां गये । कैमेरा नही था ये बहुत ही खला । बेहद खूबसूरत बागीचे और समंदर के किनारे बसे घर देखते ही बनते थे । खैर नेत्र सुख हमें तो मिल गया ।  431_482_1


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घर आये और समंदर पर गई खाली सुहास और बाकी लोगों ने खाना बनाया शाम का । और अपनी अपनी पैकिंग भी करनी थी क्यूंकि एनातोली हमे ८ बजे सुबह ही पियर पर छोडने वाले थे । उन्हे कार जो वापिस करनी थी ।  उसी दिन शामको एक बडा हंगामा हुआ चेकिंग तो हो गया क्यूंकि टिकिट नंबर वगैरा सब लिखे हुए थे प्रकाश भाउजी के पास, पर जब सबके टिकिट देखने की बारी आई तो हमारा तीनों का यानि जयश्री, मै, और सुहास टिकिट ही नही था जिसके साथ लगेज टैग्ज भी थे । तो सब परेशान । मैने तो यहां तक कह दिया कि अब तो आप तीनों ही जाओगे क्रूझ पर । फिर सब ने सोचा कि चैक इन तो हो गया तो अब टिकिट की जरूरत नही होगी और तीन लगेज के टैग्ज तो हमारे पास थे ही ।एनातोली ने कहा कि आप लोग अपना सामान तीन बैग्ज में करलो । तीन बैग्ज यहीं मेरे घर में छोड दो फिर मै जब आपको लेने आऊंगा तो हम लोग सीधे एयर पोर्ट जा कर आपका सामान लॉकर में डाल देंगे ताकि घर से चलने पर हमारे पास तीन ही बडे बैग्ज रहेंगे । Boon in disguise होगया क्यूं कि यह दूसरी कार थी तो अच्छी पर थोडी छोटी थी तो ६ बैग्ज और ६ हैन्ड लगेज नही आ पाते । खैर रात को सो गये दूसरे दिन जल्दी जो उठना था । (क्रमशः)   

रविवार, 11 जुलाई 2010

जीवन चलने का नाम..बार्सीलोना..1


हमारी उ़डान थी साडे आठ बजे तो हम ५ बजे ही तैयार होकर निकले हवाई अड्डा काफी दूर था । सामान चेक इन करन के बाद हम बीट्रीस का वेट कर रहे थे वह एयर पोर्ट आकर बचा हुआ सारा सामान हमसे लेने वाली थी कैटल मग्ज और खाने की चीजें जो हमने उसे सोंपी । हमारे सिकयूरिटी चेक में जाने तक वह हमारे साथ ही रही । फिर हम लाइन में लगे सिक्यूरिटी चेक करवाया और फिर वही ढेर सारे एस्केलेटर्स और ट्रेन वगैरा लेकर हम अपने गेट पर पहुँचे ।वहाँ बैठ कर कॉफी पी । उडान समय पर थी । और बार्सीलोना भी हम समय पर पहुँचे । हम बाहर आये ही थे कि हमे एनातोली भी दिख गये । ये हाल ही में मार्च में भारत आये थे तब हमारे पास रहे थे इसीसे पहचानने में आसानी हुई । उनके साथ हम सामान लेकर पार्किंग लॉट पहुँचे । गाडी काफी बडी थी पर थी पुरानी । गाडी अभी पार्किंग लॉट से निकली भी नही थी कि गाडी का टायर पंक्चर हो गया । फिर प्रकाश और एनाटोले ने मिलकर टायर चेन्ज किया तब जाकर हमारी सवारी चली । एनातोली का घर सेगूर-दि-कलाफेल में है जो कि एयर पोर्ट से ४० किलोमीटर की दूरी पर है । वहां जाने में हमे एक घंटा लगा ।  घर जाकर सामान  अपने अपने  कमरे में रखा और चल पडे खाना खाने । खाना एक  इतालवी रेस्तरॉँ में खाया । बहुत अच्छा खाना था । दाम भी अच्छे थे, ८३ यूरो ।
घर आने के पहले हम ग्रोसरी स्टोर गये और -४० ४५ यूरो की ग्रोसरी खरीद ली ताकि खाना घर में बनाया जा सके यहां हमे चार दिन रहना था । खाने के बाद  हम थोडी देर बीच पर गये बीच एनातोली के घर के पास ही था बल्कि उसके बालकनी से दिखता था । समंदर का नीला पानी, रेत और हवा एक खूबसूरत माहौल  बनाती है जिसका हमने जी भर के आनंद उठाया । गाडी किराये की थी और टायर पंक्चर था तो एनातोली उसको ठीक कराने ले गये पर टायर रिपेयर के काबिल भी नही था इसका मतलब कंपनी ने हमे घटिया गाडी दी । पर क्या करें गाडी के बिना घूमते कैसे । यह तय किया कि ये गाडी तीन दिन के लिये ली है तो वापिस कर देंगे और फिर नई अच्छे कंडीशन वाली गाडी ले आयेंगे ।

शाम को चार बजे एनातोली हमें तारागोना के रोमन-रुइन्स देखने ले गये । बहुत चक्कर काटने के बाद भी हमे पार्किंग नही मिली एक पार्किंग लॉट में जगह मिली भी पर हमारी गाडी बडी थी और वहां फिट नही आ रही थी वहां से वापिस जाने मे एनातोली को काफी मशक्कत करनी पडी ।  बल्कि एक साइड से गाडी ठुक भी गई । बहर हाल थोडा सा रुक कर हमने तसवीरें तो ले ही लीं । (विडियो ) 205to223_1

 रात को आकर फिर हमने खाना बनाया, खाया, गप्पे मारी थोडी वाइन पी और सो गये । हम तो वेज ही बना रहे थे पर एनातोली सब कुछ एन्जॉय कर रहे थे । दूसरे दिन हमे यहां का प्रसिध्द चर्च Segrada familia (the holy family ) देखने जाना था । ९ बजे चल पडेंगे एनातोली ने कहा था । और हम जल्दी जल्दी नहा धो कर तैयार हो गये । ब्रेकफास्ट किया और निकल पडे । जिस रास्ते से हम बार्सीलोना जा रहे थे बहुत ही खूबसूरत पहाडी घुमावदार रास्ता था एक तरफ से खाई थी कुछ देर बाद फिर समंदर आ गया । एक जगह एक सीमेट प्लांट दिखा कर एनातोली ने सुहास से कहा,” यही है वह सीमेंट प्लांट जिसे देखने तुम सुदूर अमेरिका से आई हो” । इस पर सब लोग खूब हँसे और फिर सीमेंट प्लांट एक दूसरे की खिंचाई करने का जरिया ही बन गया । “अरे अपना सीमेंट प्लांट कहां गया सुहास तो उसी के लिये आई है ना ।“ आप तो खूबसूरत दर्शनीय रास्ते का आनंद लीजिये । (विडियो ) 205to223_2
 
हम बार्सीलोना पहुँच कर एक जगह रुके यहाँ पास में एनातोली के दोस्त का घर था फिर वहां से हमने उनकी दोस्त कैतलीना और उसके प्यारे से बेटे डेनियल को लिया और हम चल पडे देखने केथीड्रल- सेग्रादा फेमिलिया यानि चर्च ऑफ होली फेमिली । ये होली फेमिली है जोजफ,मेरी और क्राइस्ट ।(विडियो )  224_225to271_1

 यह चर्च स्पेन के मशहूर आर्किटेक्ट एन्तोनियो गाउदी ने डिझाइन किया । यह कोई डेढसौ सालों से बन रहा है फिर भी अधूरा है और बन ही रहा है । कहते हैं गाउदी साहब से जब लोग पूछते किये कब पूरा होगा तो वे हंस कर कहते ,”क्या मुझे ही खत्म करना जरूरी है, मै नही तो कोई और करेगा । काम होना चाहिये और चलते रहना चाहिये ।“ यह बिल्कुल अलग किस्म की बनावट का है और क्राइस्ट के जीवन से जुडी घटनाएं इसमे मूर्ती रूप में साकार है । अनुमान लगाया जाता है कि शायद २०२६ में यह पूरा बनकर तैयार हो जायेगा ।  यह एक बार स्पेन के गृह युध्द में जल गया था, पर फिर से गाउदी के प्लान  (जो बचा लिये गये थे ) के मुताबिक ही बनाया गया ।  सुहास को हालांकि ये चर्च बिल्कुल अच्छा नही लगा । कैसा अजीब सा आर्किटेक्चर है एकदम पुराना मिट्टी से बना सा लगता है ।   

हम जैसे ही चर्च के पास पहुँचे हमने गाडी मे से से ही तस्वीरें लेना शुरू कर दिया और पास जाकर तो बहुत सारी लीं  । दो कार्ड भी खरीदे मानसी, साक्षी के लिये एक और श्रेया (मेरी पोतियाँ ) के लिये एक सुहास ने भी अपने नाती पोतों के लिये कार्ड खरीदे और जयश्री ने भी ।
हमने घूम घूम कर सब ओर से इस चर्च की तस्वीरें और विडियो लिये । आप भी देखिये ये अनूठा चर्च । अंदर जाने के लिये बडा लंबा क्यू था और टिकिट भी । हम तो string बजट पर चल रहे थे । (क्रमशः)

रविवार, 4 जुलाई 2010

जीवन चलने का नाम 2- माद्रिद की सैर



दूसरे दिन हमे सुबह उठ कर मेड्रिड घूमने जाना था । हम सब को बीट्रीस ने बोला था कि आप लोग मुझे स्टेशन पर ९ बजे मिलना तो हम जल्दी जल्दी कर के निकले और पैदल चल कर  स्यूदाद लीनिअल स्टेशन पर आ गये और बीट्रीस का वेट करने लगे । बहुत देर तक जब वह नही आई तो हमें फिक्र होने लगी कि उसने हमें इसी स्टेशन पर बुलाया था या वेन्टाज स्टेशन पर फिर सोचा उसे फोन कर लेते हैं हमारे सब के फोन तो वहाँ चल नही रहे थे सिर्फ प्रकाश का फोन चल रहा था तो उन्होने फोन निकाल कर कहा, सुहास बीट्रीस का नंबर बताओ । अब सुहास ताई ने खूब ढूंढा पर नंबर मिले ही नही । डायरी तो वह होटल के रूम में रख आईं थी । अब क्या करें, सोचा, दस मिनिट और इंतजा़र करते हैं पर बीट्रीस का कहीं अता पता नही । फिर प्रकाश बोले मै वापिस होटल जाकर डायरी ले आता हूँ । वह जैसे ही जाने के लिये मुडे ,सामने बीट्रीस । बहुत माफी वाफी मांग रही थी कि मै देर से उठी वगैरा पर हमारी तो खुशी का ठिकाना न था । उसे देखते ही सारी शिकायतें काफूर हो गई थीं । हमारा कनफ्यूजन दूर हो गया था कि हमें किस स्टेशन पर मिलना था  वगैरा वगैरा । हम स्टेशन के अंदर गये और टिकिट खरीद कर चल पडे आज हमें जाना था रेटिरो पार्क जो कि न्यूयॉर्क के सेंट्रल पार्क की तरह है ।
रेटिरो का मतलब है रिटायर पर हमारे यहां के पेन्शनर के अर्थ में नही पर रेस्ट या आराम के अर्थ में । इसके लिये हमे  ट्रेन बदलनी थी । ट्रेन बदल कर हमने दूसरी ट्रेन ली और  स्टेशन उतर कर चल पडे रेटिरो पार्क के लिये । यह पार्क स्पेन के राज फिलिप II  के जमाने में बनवाया गया था । तो हम हम इस विशाल पार्क में चलते गये चलते गये । जगह जगह सुंदर  पुतलों से सजे फव्वारे । पार्क के उत्तरी फाटक के पास एक खूबसूरत तालाब है मानव निर्मित । इसी तालाब से सटा किंग अलफान्सो XII  का स्मारक है और घोडे पे सवार पुतला भी । एक Falling Angel का पुतला जो स्वर्ग से गिरता हुआ दिखाया है । कहते हैं इसे जॉन मिल्टन के पैराडाइस लॉस्ट कविता से प्रेरणा लेकर बनाया है । यहीं पर एक स्मारक जो Sept. 2004 के 191 मृतकों के लिये बनाया गया है जो आतंकवादी हमले का शिकार हुए थे । यह हम नही देख पाये । पार्क मे बडे सुंदर आकार प्रकार के पेड पौधे थे । वहाँ से निकले तो भूख लग आई थी तो एक जगह पिझ्जा खाया ।फिर बीट्रीस ने हमे Palacio  Real पर छोडा । उसी के पास एक खूबसूरत चर्च  Cathedral of Al Mudena  भी था । बीट्रीस हमें वहाँ   Palacio  Real  के main gate  पर ढाई बजे मिलने का बोल कर चली गई और हम गये चर्च तथा महल देखने । सब दूर आठ या दस यूरो के टिकिट थे तो हमने सोचा हम पेलेस देखते हैं और सुहास प्रकाश तथा जयश्री कथीड्रल देखने गये ।

   विजय की कहीं चलने की हिम्मत नही थी तो वे पैलेस के बगीचे में एक बेन्च पर बैठ गये । हमें भी लौट कर वहीं आना पडा क्यूं कि पैलेस उस दिन राजसी भोज की वजह से बंद था बाकी तीने कथीड्रल देख कर आये और फिर हम सब बीट्रीस ने बताये हुये स्टेचू के पास उसका इंतजार कर रहे थे । पर सारी इमारतें चाहे वह कथीड्रल हो या पैलेस बहुत ही भव्य और सुंदर हैं । आप भी देखें ।(बीट्रीस ने हमे बताया कि पूरे माद्रीद शहर में सिर्फ एक मस्जिद है । बाकियों की जगह चर्च बन गये ।
 
फिर बीट्रीस ने हमे मेड्रिड विजन बस के स्टॉप पर छोडा और वापिस कैसे जाना है बता कर वह चली गई हमने आज और कल के लिये टिकिट खरीदे क्यू कि दो अलग अलग रूटस् पर ये बसें चलती हैं ।

इस बस में बैठ कर आप सारा मेड्रिड मजे से घूम सकते हैं  हमे ईयर फोन भी दिये जाते हैं और चेनल ३ पर आपको इंग्लिश कमेंट्री भी सुनने को मिलती है । जहां मन हो उतरिये, देखें और दूसरी मेड्रिड विजन बस लेकर आगे चलें । हमने सोल का डाउन टाउन देखा जो मैं उस रात नही देख पाई थी, और फिर उतरे प्राडो नेशनल म्यूजियम ।  पहले इसे ऱॉयल म्यूजियम ऑफ आर्ट एन्ड क्राफ्ट के नाम से जाना जाता था । म्यूजियम के बाहर पेन्टर गोया का भव्य पुतला लगा है । यह म्यूजियम अपने पेन्टिंग्ज और स्कल्पचर्स के लिये विश्व प्रसिध्द है । हमने इस म्यूजियम की सैर की और बहुतसी तस्वीरें लीं यहां सिक्कों का भी बडा अच्छा डिसप्ले है, छटी शताब्दी से लेकर अब तक का । उसके बाद बस में बैठे बैठे ही बहुत सी तस्वीरें लीं । एक जगह कोलंबस का पुतला भी देखा । मेड्रिड बहुत ही सुंदर है नये पुराने का अद्भुत संगम । अपने इतिहास और अपना आज दोनो में  समृध्द है ये शहर, ये देश । स्पेन में शुरू में रोमन शासकों का आधिपत्य रहा(पागान धर्म)) बाद मे ३०० सालों तक मुसलमानों का और फिर रोमनों का पर इस बार इनका धर्म था ईसाई ।  यहां की इमारतों में इन तीनो कल्चर्स का असर दिखाई देता है ।  माद्रीद अरबी शब्द है जिसका अर्थ है मदर ऑफ नीड्स  यह हमें बस के कमेंटेटर ने बताया पर मुझे लगता है यह मदर ऑफ हैपिनेस होना चाहिये मादर-ई-ईद । हमने बहुत खूबसूरत चर्चेज, फव्वारे और पेलेसेज देखे,  एक विक्टरी आर्च  भी है हमारे गेट वे ऑफ इंडिया की तरह ।
 अगले दिन १८ तारीख को हमे बीट्रीस के घर अलकलाँ दि हेनारेस यानि Fort on River Henares भी जाना था और बस से दूसरे रूट की सैर भी करनी थी । ये एक पुराना युनिवर्सिटी टाउन है । “ मुझे कैनालेहास स्टेशन पर मिलना” बीट्रीस ने कहा था । उस हिसाब से हम सब सुबह निकल पडे  । बीट्रीस से दस बजे मिलना था तो साढे नौ बजे ही निकले फिर  चल कर स्यूदाद लिनीअल स्टेशन आ गये । टिकिट खरीदे और आगे जैसे ही टिकिट मशीन मे डाले गेट खुले ही ना दो तीन बार डाले पर मशीन ने हर बार टिकिट वापिस कर दिये । टिकिट खरीदे भी मशीन से ही थे हमारी परेशानी देख कर एक स्पेनिश महिला उसे थोडी अंग्रेजी आती थी, आगे आई और टिकिट देख कर बोली आपके टिकिट तो गलत हैं । आपको नये टिकिट लेने होंगे पर बाद में आप स्टेशन पर उतर कर ये टिकिट वापिस करके दूसरे ले सकते हैं तो वही किया नये टिकिट  खरीदे और इसमे भी उस महिला ने हमारी मदद की । ईश्वर उसका भला करे ।
ट्रेन मै बैठ कर पहुंच गये कैनलेहास स्टेशन । बीट्रीस ने यहां बडा इंतजार करवाया । इधर हम बेसबर हो रहे थे बहुत लोगों से पूछने कि कोशिश की कि किसी को अंग्रेजी आती हो, पर नो लक ।  यहाँ लोग जमकर सिगरेट पीत हैं क्या मर्द क्या औरतें बल्कि औरतें कुछ ज्यादा । हमारी बीट्रीस भी चिमनी की तरह धुआँ निकालती रहती है । एक इन्डियन सी दिखने वाली लडकी से भी हमने पूछा , “ Do you speak English? “, उसने कहा कि उसे सिर्फ स्पेनिश ही आती है पर मातृभाषा बंगला है वह आती है । मै तो खुश हो गई चलो अब अपना कलकत्ते का रहना काम आयेगा । मैने उससे बंगला में पूछा कि अलकला दि हेनारेस जाना है वह बस कहां मिलेगी ? हमने सोचा स्टेंड पर चले जाते हैं, बीट्रीस अपोझिट साइड उतरेगी तो हम  उसे देख लेंगे और उतना समय भी बच जायेगा । उसने अच्छे से बता भी दिया ,पर हम चल पडते इसके पहले ही बीट्रीस आ पहुँची । वो करीब ११ बजे आई । फिर बडी सारी अपॉलॉजी के बाद उसने कहा कि हम सब पहले उसकी माँ से मिलने उसके घर जायेंगे अलकलाँ दि हेनारेस । फिर वहाँ से वह हमे  रॉयल पेलेस और कथीड्रल के पास छोड देगी और वह काम पर चली जायेगी  । हम पैदल चल कर बस स्टॉप जायेंगे जहाँ से मेड्रिड विजन नाम की बस लेकर मेड्रिड देखेंगे । तो हम बस स्टेंड गये वहां से बस पकडी और उतर कर पैंया पैंया चल कर बीट्रीस की माँ मेरी लू के घर पहुँचे । रास्ते में हमे बीट्रीस ने उसकी यूनिवर्सिटी दिखाई जो कि ३०० साल पुरानी है । यहीं कहीं कोलंबस ने स्पेन के राजा से मुलाकात की थी और उन्होने उनके अमेरिका ( वास्तव में भारत ) खोजने की मुहीम को पैसे दिये थे । बडे बडे स्पेनिश वैज्ञानिक भी यहां पढे थे । मेरी लू के घर के नीचे ही उसका एक छोटासा बुटीक है जिससे उसकी जीविका चलती है । बीट्रीस के पिता से उनका बहुत पहले तलाक हो गया था और तीनो बच्चे उन्होने अपने बल बूते पर बडे किये । एक बहन बीट्रीस से बडी है और भाई छोटा । बहन की शादी हो चुकी है और वह लंदन में रहती है ।
मेरी लू का घर किसी म्यूजियम की तरह सजा हुआ था । दीवारों पर बहुत सारे पेंटिंग्ज, और आईने । एक घोडे के शेप की कुर्सी, तरह तरह के फूलदान, फ्रूट बोल और भी कितनी सारी चीजें । तस्वीरों में एक भारतीय मुगल शैली की पेंटिंग भी थी और एक झूले पर राधा कृष्ण की भी ।  वे कभी भी हिंदुस्तान नही गईं पर पेंटिंग कहीं से खरीदी है  ।
 बच्चों के बचपन के और अभी के फोटो भी हैं और है एक एन्जेल्स का कलेक्शन । सारा घर करीने से सजा हुआ । “मेरा घर हमेशा ही ऐसे ही रहता है, आप के लिये कुछ खास नही सजाया”, मेरी लू ने कहा था । अपने एन्जेल्स का कलेक्शन उन्होने बडे प्यार से दिखाया हर एन्जेल एक अलग जगह से लाया हुआ, हरेक के  पीछे एक कहानी ।  माँ के शौक को देख कर बेटा और बेटियाँ भी मां के लिये जगह जगह से एन्जेल्स लाते हैं । वह खुद तो लाती ही हैं । अमेरिका, यूरोप, के एन्जेल्स तो हैं ही नेपाल, फिलिपीन्स पेरू और ब्राजील के भी हैं । एक एन्जेल तो उन्हे कचरे के डिब्बे मे मिला जो वह बडे प्यार से उठा लाईं कि, हाय हाय एन्जेल कैसे किसीने फेंक दिया । इनमे एक एन्जेल ऑफ होप और एन्जेल ऑफ लाइट भी हैं । एक बेबी एन्जेल है जो चांदी का बना हुआ है बडा मॉडर्न, आदिदास के जूते और शॉर्टस में ।  वह हमेशा उनके सोने के कमरे में रहता है । मेरी लू और बीट्रीस ने हमे चाय पिलाई । वह रेकी में बडा विश्वास रखती हैं हमे उन्होने हाथ रगड कर शक्ती भी दी । मुझे कहा कि तुम से ज्यादा शक्ती सुहास मे है ।  उन्होने भारत का अभिवादन नमस्ते भी सीखा और कहा कि आसान है स्पेनिश में No Mas Te  का अर्थ है  No more tea . यही याद रख लेंगे । फिर  उन्होने बीट्रीस से कहा कि भारत का कल्चर बडा पुराना है मेरी जो ज्वेलरी मिल नही रही उसे पाने के लिये इनके यहां जरूर कोई मंत्र होगा तुम पूछो । संयोग से हमे कार्तवीर्य का मंत्र मालूम था
 कार्तवीर्यार्जुनो नाम राजा बाहू सहस्त्रवान
तस्य स्मरण मात्रेण गतम् नष्टं च् लभ्यते ।
जिसका जाप करने पर वाकई हमे भी कई इधर उधर रखी पर भूली हुई वस्तुएं मिल गई थीं ।  हमने कहा कि हम बीट्रीस को वह मंत्र रोमन मे लिख कर दे देंगे वह आपको स्पेनिश मे समझा देगी । मेरी लू  से फिर प्यार भरी विदा ली और आदिओस  यानि बाय बाय कह कर हम चले ।

रास्ते मे बीट्रीस ने हमे वह चर्च दिखाया जहां उसका बाप्तिस्मा हुआ था । चर्च के ऊपर सफेद स्टॉर्क के घरौंदे भी दिखाये जो यहां की खासीयत है वहां सफेद स्टॉर्क पक्षी भी दिखे जो अंडों की देखभाल कर रहे थे । हमने उससे बुल फाइट के बारे में भी पूछा पर उसने कहा कि मैने तो आज तक नही देखी । हमे बस में बिठा कर उसने हमे समझा दिया कि हमे कहां उतरना है और किस स्टॉप पर हमे मेड्रिड विजन की बस मिलेगी । पर हम बायें की बजाय दाये मुड गये और हमे करीब एक मील चलना पडा तब जाकर स्टॉप मिला और बस भी । इतना करने के बाद बहुत थक गये थे तो ऊपर गये और सिर्फ बैठे रहे और मेड्रिड की सैर कर ली आप भी देखें आधुनिक मेड्रिड । देखे टोरे यानि टॉवर । खूबसूरत इमारतें पर एक दूसरे से सटी हुई ।  मेड्रिड की इस सैर के बाद हम जब उतरें तब हमे पता चला कि ये बस स्टॉप कितना पास था और हम ऐसे ही खूब सारा चले । खैर उतर कर फिर स्टेशन गये और उलटी तरफ जाने वाली ट्रेन ली इसी रास्ते पर बीच में हमारा स्यूदाद लिनीअल आना था । स्टेशन से उतर कर हमारे होटल की तरफ जाने वाली बस ली जिसका पता अब हम लगा चुके थे आज हमारा माद्रिद का आखरी दिन था कल तो हमे बार्सीलोना के लिया प्लेन पकडना था । शाम को हमने एक रेस्टॉरेन्ट से जो काफी सस्ता था पिज्झा और पास्ता मंगवाया और डिनर किया । (क्रमशः)