सोमवार, 10 मई 2010

इश्वर की अपनी भूमि केरल -३ (त्रिवेन्द्रम, कोवालम और अलेप्पी )

हम कोवालम के लिये निकले तो हमें ड्राइवर से ही पता चला कि रास्ते में ही त्रिवेन्द्रम पडता है इसीको तिरुअनंतपुरम भी कहते हैं (तिरु का मतलब शायद श्री होता होगा मुझे ठीक से पता नही पर लगता ऐसा ही है) । हमने कहा कि रास्ते में है तो चलते हैं हम पैलेस और पद्मनाभ मंदिर देखते हुए कोवालम पहुंचेंगे वहां तो वैसे भी बीच पर ही समय बिताना है । थोडे पीछे पडने के बाद ड्राइवर मान गया और हमें पहले राजा महेन्द्र वर्मा के महल जो कि राजा के वस्तुओं का संग्रहालय भी है ले गया । टेक्काडी से त्रिवेंद्रम का रास्ता २ घंटो का ही है और वहां से कोवालम कुल २० मिनिट की ड्राइव ।
महल देखना सार्थक हो गया । राजा महेंद्र वर्मा, प्रसिध्द चित्रकार राजा रवि वर्मा के ससुर थे, उनकी (रवि वर्मा की ) काफी पेंटिंग्ज यहां थीं । महेन्द्र वर्मा त्रिवेन्र्दम के आखरी प्रशासक थे । इसके पहले कोई १५० वर्षो तक यह महल बंद ही रहा । महल में राजा नें एकत्रित की हुई काफी चित्र विचित्र वस्तुएँ थीं । महल से ही राजा जी को पद्मनाभ मंदिर के कलश के दर्शन हो जाते थे और एक चोर रास्ता भी था जो सीधा मंदिर में खुलता था ।
महल देखने के बाद हम गये पद्मनाभ मंदिर । पता चला कि चार बजे खुलेगा तो वहां कुछ दुकाने थी, केरल हैंडलूम साडियँ और सलवार कमीज़ और छोटी बच्चियों के ड्रेस भी मिल रहे थे । अर्चना ने तीन साडियां खरीदीं, सुंदर थी और दाम भी ज्यादा नही थे, ३५०-४५० के बीच में थे। मैने श्रेया के लिये और अर्चना की पोती देवांशी के लिये एक एक घागरा और ब्लाउज का सेट खरीदा । इसके बाद मंदिर की सीढियों पर बैठ कर भजन सुनते रहे । विष्णु स्तुति । चार बजे मंदिर के कपाट खुले तो अंदर गये उस वक्त ज्यादा भीड भी नही थी पर बहुत सारा चल कर जब गर्भ गृह तक पहुंचे तो पता चला कि दर्शन तो पांच बजे से पहले नही होंगे । तो फिर उतना ही चल कर बाहर आये । वापिस सीढियों पर (विडियो) । फिर देखा एक जगह गरम गरम पकोडे और चाय और कॉफी मिल रही थी । तो सोचा पेटपूजा ही की जाये सिर्फ ब्रेकफास्ट कर के ही चले थे, भूख तो लग आई थी पकोडे वाकई बहुत अच्छे थे । हमने खाना शुरू किया था इतने में ही मंदिर के कपाट खुल गये हम तीनों जब इसके पहले गये थे तो सुरेश जूते कैमरा वगैरा की रखवाली कर रहे थे तो बोले, मै जल्दी से दर्शन कर आता हूँ । हमने जब तक खाया वे दर्शन कर के वापिस भी आ गये बोले अब चलते हैं बहुत भीड है तुम लोग छोडो अब दर्शन वर्शन । तो हम भी मान गये बडा अफसोस हुआ कि इतने देर इंतजार भी किया और दर्शन से भी वंचित रहे । सुरेश चाय कॉफी के पैसे देने के लिये गये तो एक मराठी महिला वहां आई बोली, “झालं ना दर्शन “। मै बोली,” नाही हो खूप गर्दी आहे म्हणे “। वह बोली, “नही कोई ज्यादा भीड नही है आप कर के आ जाओ दर्शन” । फिर तो हम तीनों फटाफट अंदर भागे और दर्शन कर के ही वापिस आये । पद्मनाभ की मूर्ती शेषनाग पर लेटे हुए विष्णु जी की मूर्ती है जिनके नाभी से कमल निकला है और ब्रम्हाजी उस पर विराजमान हैं । इस मूर्ती के दर्शन तीन हिस्सों में होते हैं एक दरवाजे से सिर और शोष नाग का फन दिखता है बीच वाले से धड और तीसरे दरवाजे से पैर दिखते हैं मंदिर में बिजली नही है दियों के प्रकाश से ही उजाला किया जाता है जो काफी नही होता पर फिर भी मन प्रसन्न हुआ । आंखे बंद की और जो बचपन से याद था वो स्तोत्र अपने आप मनमे साकार हो उठा ।
शांताकारम्, भुजगशयनम् पद्मनाभम् सुरेशम्,
विश्वाधारम् गगनसदृशम् मेघवर्णम् शुभांगम्
लक्ष्मीकांतम् कमलनयनम् योगिभिरध्यान गम्यम्
वंदेविष्णुम् भव भय हरम् सर्व लोकैक नाथम्।

जैसा कि मंदिरों में होता है फोटो खींचने की इजाजत नही थी ।


बाहर आये तो सुरेश हमें ढूंढ ही रहे थे । कहां चले गये थे, के जवाब में दर्शन करने बता कर हम सब वपिस गाडी में बैठे और चल पडे कोवालम ।
कोवालम तो २० मिनिट में ही पहुँच गये । वहां हमारा होटल था सागर बीच । होटल एकदम नया था बल्कि कुछ भाग अभी बन ही रहा था । रिसेप्शन पर हमारा स्वागत ठंडे ठंडे पाइन एपल जूस से हुआ । हमें कमरे मिले थे बेसमेंट में और वहां तक लिफ्ट नही थी । कमरे तो बडे बडे और सुंदर थे पर सीढियां चढते उतरते मेरे घुटनों की तो जान ही निकल जाती थी ब्रेकफास्ट लंच डिनर सबके लिये ऊपर ही आना पडता था । सामान वामान रखा चाय पी और थोडा आराम किया । शाम को गये बाहर बीच पर घूमें पर शाम हो चली थी । यहां पर सीपियां वगैरा कुछ ज्यादा नही थी जो थीं वे समुद्र के लहरों से घिस घिस कर एकदम पतली हो गई थीं । वहां एक लाइट हाउस भी था पर बीच से ऊपर जाना पडता था और बहुत सारी सीढियाँ थीं तो मैने तो विचार त्याग दिया मेरे घुटनों की वजह से बेचारी अर्चना भाभी के उत्साह पर पानी पड जाता था पर वे अकेली जाने की हिम्मत नही जुटा पाईं । देर तक वहीं बैठे रहे । समुद्र की यही खासियत होती है कितनी भी देर बैठो मन नही भरता है । निरंतर किनारों को चूमती लहरें सुंदर साफ रेतीला किनारा और सूरज के प्रकाश के साथ लहरों की अठखेली सब कितना मनमोहक । फिर होटल वापिस आये डिनर किया और फिर ही कमरे में गये । इतने दिनों के बाद सुखद आश्चर्य कि टी वी पर झी टी वी का हिंदी चैनल आ रहा था वरना तो मलयालम ही था टी वी पर । थोडा प्रोग्राम देखा न्यूज सुनी और सो गये । अगले दिन सुबह उठने की कोई जल्दी नही थी ये दिन भी हमारा कोवालम का ही था । तो आराम से उठे तैयार हुए और नाश्ता कर के बाहर जाने को निकले । ड्राइवर ने कहा यहां तो समंदर ही है और तो कुछ है नही । पर हमारे होटल के आगे ही एक एक्वेरियम दिखा टिकिट भी केवल १० रु. था । मेरी तो इसमे स्वाभाविक रुचि थी पर और लोग भी इंटरेस्टेड दिखे तो देखने गये । एक्वेरियम छोटासा था पर मछलियों की काफी प्रजातियां रखी थीं । सी हॉर्स, पफर मछली, एन्जल मछली स्कॉरपियन मछली और भी बहुत सी ।
एक्वेरियम देख कर निकले तो तय किया यहां का बाजार घूमेंगे । तो गाडी मे बैठे । ड्राइवर हमे एक टूरिस्ट इंटरेस्ट की दुकान मे ले गये । वहां पर शो पीसेज मूर्तियां ज्वेलरी आदि थे । तय तो किया था कि हम कुछ नही लेंगे । मै तो सबसे ज्यादा ना ना कर रही थी । पर अंत में ४ हजार रु. खर्च करके निकले । वहां सोचा था कि कोई ढंग की जगह हुई तो लंच करेंगे पर नही मिली तो आ गये बीच पर । वहां जाने के लिये भी काफी चलना पडता । तो हम ने ड्राइवर से कहा हमें बीच पर ही छोड दे । वहीं पर फिर लहरे गिनते रहे । चलते रहे । सीपियां उठाते रहे और फेंकते रहे । कोवालम का सागर है बडा सुंदर मुंबई के जुहू बीच से तो लाख दर्ज अच्छा । कचरा तो था पर अपेक्षाकृत बहुत कम था । शाम होने तक रुके और सूर्यास्त की कई तस्वीरें उतारी । क्या खूबसूरत नजारा था । फिर वापिस होटल । (विडियो)

दूसरे दिन यानि २१ को हमें जाना था अलेप्पी जहां बोट लेकर केरल के सुप्रसिध्द बैकवॉटर्स की सैर करनी थी । समुद्र का पानी काफी अंदर तक यहां आ जाता है और आप बोट से पानी के बिल्कुल संकरे गलियारे मे से और फिर चौडे पाट से होकर एकदम खुले सागर तक पहुँच जाते हैं । दोनो और की हरियाली, खुली हवा इसका आनंद लेना था ।

तो दूसरे दिन नाश्ता कर के हम अलेप्पी चल पडे । अलेप्पी में हमारा होटल था पागोडा रिसॉर्ट । सुंदर सा था । हांलांकि कमरे छोटे थे । ड्राइवर नें बताया कि बोट एक एक घंटे बाद जाती रहती है । तो हमने सामान कमरे में रखा और चल पडे सैर को । यहां ओपन बोट के अलावा हाउस बोट भी होती हैं कुछ लोग शायद होटल की बजाय बोट में ही रहना पसंद करते हैं । हमने तो एक ओपन बोट की जिसपर छप्पर भी था । पर साइड से खुली होने के कारण दृष्यावलोकन अच्छी तरह संभव था । चारों के चारों बोट में डटे और बोट चल पडी । दोनों और क्या हरियाली थी । आम नारियल की तो भरमार थी पर और भी बहुतसी वनस्पतियां थीं और तरह तरह के पक्षी भी जिनकी फोटो कभी तो ले पाये और कभी नही । जब तक कैमरा साधते चिडिया फुर्र । बहर हाल जो कुछ देखा वर्णनातीत था । वो हरियाली और पानी दोनोंने मिलाकर एक अति सुंदर दृष्य की सृष्टी की हुई थी । आप तो विडियो देखें । दो से चार घंटे की सैर आप ले सकते हो हमने दो घंटे की सैर की औऱ ७५० रुं अदा किये । पर पैसा वसूल लगा । पानी के किनारे ही रेस्टॉरेन्ट, पानी वाले नारियल की दूकान वगैरह थीं तो हमने बोट रुकवा कर नारियल पानी पिया । खूप सारी हाउस बोटस घूम रही थीं जो बहुत सुंदर थीं आप ने विडियो मे देखा ही होगा । आखिर में जब खुला समंदर आप देखते हैं तो एकदम क्लायमेक्स पर पहुँचते हैं । वापसी पर फिर वही हरी भरी प्राकृतिक सुंदरता ।
वापिस आये तो भी उसी में खोये हुए थे । आज का काम हो गया था पागोडा में आ कर विश्राम किया शाम को टहलने चले गये । यह हमारा आखरी पडाव था ।

कल तो हमें अर्नाकुलम या कोची पहुँच कर दिल्ली की उडान पकडनी थी । उसके पहले खरीदारी करनी थी । अलेप्पी से कोची २ घंटे का रास्ता है । दूसरे दिन ब्रेकफास्ट के बाद हम निकल पडे । कोची में रुक कर हमने वहां के सबसे बडे सिल्क की दूकान कांचन सिल्क से केरल सिल्क की साडियां खरीदी । फिर हमारी गाडी ने हमे हवाइ अड्डे पर छोड दिया वहां सारे चेक वगैरा करवा कर हमने थोडा खाना पीना किया । फ्लाइट समय पर थी । तो ४ घंटे बाद शाम को ६ बजे हम दोनो और शरदिनि वैनी दिल्ली पहुंच गये । अर्चना वैनी को पूना जाना था तो वह कोची से ही ट्रेन से पूना के लिये निकल गई । भाभी ने गाडी बुला रख्खी थी तो हमें वसंतकुंज छोडते हुए वे घऱ चली गईं । बहुत दिनों की साध पूरी हो गई थी ।

मंगलवार, 4 मई 2010

ईश्वर की अपनी भूमि-केरल -२

पिछली बार हमने आपको मुन्नार की सैर कराई थी ।
दूसरे दिन सुबह हमें टेक्काडी के लिये निकलना था पर हमारे इग्लू होटल के स्वागतिका ने हमे बताया कि हमें चाय और काजू मुन्नार से ही खरीदना चाहिये तो दूसरे दिन यानि १८ को भारी नाश्ता कर, आज तो दोसे मिले थे , चल पडे । टेक्काडी जाते हुए पहले हमारे ड्राइवर हमें एक बडी सी दूकान में ले गये दूकान अच्छी थी चीजें भी खूब थीं पर महंगी लगी, काजू ४६०रु किलो । पर काजू बढिया थे बडे बडे और स्वादिष्ट । वहां से चाय, काजू और बहुत से तेल खरीदे । ब्राम्ही, आर्थऑयल, निलिनि ऑयल, मसाज ऑयल इत्यदि । सांबार और रसम के मसाले भी खरीदे । और फिर चल पडे टेक्काडी की और यह मसालों के लिये प्रसिध्द है । मुन्नार से टेक्काडी ३-४ घंटों की ड्राइव है । रास्ते में रुक कर चाय की जगह नारियल पानी का मजा लिया । बीच में एक जगह केरल के खास लाल केले दिखाई दिये वे खाये स्वाद काफी अच्छा था ।
टेक्काडी शुरु होते ही जगह जगह स्पाइस गार्डन के बोर्ड दिखाई दे रहे थे । इसकी सैर के लिये बडा सा टिकिट होता है पर है तो देखने वाली चीज । हमें तो पहले होटल जाना था और रूम हाथ में लेने थे । यहां हमारा होटल था माइकेल्स इन । यहां कमरे अपेक्षाकृत छोटे थे पर साफ सुथरे थे ।

वहां गये और चाय पी कर निकल पडे स्पाइस गार्डन देखने । हमारे ड्राइवर हमें एक spice Garden ले गये वहां हमने मसालों का दाम पता किया तो बहुत महंगे थे पर थे बढिया, क्या खुशबू थी । इलायची १२०० रु. प्रति किलो । हमने मसाले तो नही खरीदे । अब तक हम जान गये थे कि दुकान मालिक और ड्राइवरों में कमिशन और ग्राहकों का लेन देन होता है । पर बगीचा देखना तय किया टिकिट था २००रुं प्रति व्यक्ति हमने जब कहा कि हमारे बजट में नही बैठता तो तुरंत दाम १५०रु प्रति व्यक्ति हो गया । पर हमारे साथ जो गाइड दी थी वह बहुत ही प्यारी थी ।(वि़डियो)


अपना काम अच्छे से अच्छा करना चाह रही थी और कर भी रही थी । उसने हमें हर पेड और पौधे की जानकारी दी । दालचीनी का पेड जिसकी छाल दाल चीनी होती है और पत्ते तेज पत्ता । जायफल का फूल ही जावित्री कहलाता है । इलायची के पौधे, ब्राम्ही का पौधा, लौंग का पौधा भी देखा पर लौंग निकाली जा चुकी थी । असली रबर का पेड भी देखा जो हम अपने बगीचे में लगाते हैं वह तो शोभा का पेड है । इसके अलावा, इनसुलिनका पौधा भी देखा जिससे मधुमेह का इलाज होता है ।


कॉफी के पेड देखे जिसमे हरे और लाल फल लगे थे । हमें पता चला कि दो तरह की कॉफी होती है एक देसी और दूसरी अरबी , अरबी कॉफी का फल बडा होता है । उसने बीज निकाल कर दिखाये और बताया कि जब तक बीज सुखा कर भून कर पाउडर नही बनता आपकी कॉफी तैयार नही हो सकती । काली मिर्च दिखाई (फल लगे हुए) उसने ये भी बताया कि इसकी खेती नही होती ये सब प्राकृतिक रूप से उगते हैं । हींग जो कि पेड का सूखा हुआ रस होता है जैसे कि गोंद । तकनीकी भाषा में इसे Resin कहते हैं । नारियल के पेड तो जैसे गिनती में ही नही आते थे । राम तुलसी का पेड भी देखा, अब तक तो पौधे ही देखे थे, उसके पत्ते भी काफी बडे थे । लेमन ग्रास भी देखा । अननास के पौधे देखे उसमे अननास लगे हुए । एक जगह एक खूबसूरत पेड पर बना घर (कमरा) था वहां भी गये । (विडियो )


वहां से गये पेरियार लेक (पेरियार वाइल्ड लाइफ सेंक्चुअरी) बडी उम्मीदें लेकर गये थे कि शेर, हाथी, बाय़सन देखने को मिलेंगे । टिकिट लेने के लिये ही इतनी भागमभाग करनी पडी यहां नही वहां नीचे नही ऊपर करके खिडकी तक पहुंचे उसके पहले फॉर्म भरने पडे कि यदि कुछ होता है तो किसे सूचित करना है आदि । टिकिट लेकर पहले खाना खाने के लिये सरकारी केंटीन में गये । खुली अच्छी जगह थी खाना भी ठीक था पर इतने बंदर कि बैठ कर खाना मुश्किल हो रहा था । कुछ गोरे विदेशी भी थे जो हाथ में लकडी लेकर बंदरों को भगा रहे थे । पर बंदर भी ढीठ थे । बडे तो बडे छोटे छोटे बच्चे भी छलांगे मार मार कर खाना छीनने आते । खैर खाना तो हमने खा ही लिया । किर वापिस आकर बोट के लिये जेटी पर आ गये ।

थोडी देर के इंतजार के बाद बोट में बैठे किनारे की सीट पकड कर, कि कुछ दिखे तो फोटो ले सकें । पहले तो हमे लाइफ जैकेट पहनाये गये फिर बोट चली । हम गरदन मोड मोड कर कोशिश करते रहे कि कोई तो कहीं तो दिखे पर कहाँ । धूप में बैठे बैठे आंखें चुंधिया गईं पर बहुत दूर से थोडे हिरन और जंगली भैसे ही देख पाये । वापिस गाडी तक पैदल आना पडा क्यूंकि पार्किंग बाहर था ।(विडियो )

पर लेक अच्छा था और बोटिंग का मज़ा तो हमने ले ही लिया !!!! शाम को वापिस आये माइकेल्स इन मे । सौभाग्य से खाना अच्छा था तो मूड ठीक हो गया । अर्चना चाहती थी कि कथाकली डांस का प्रोग्राम देखें पर समय था साढे पांच बजे का और पांच बजे तो हम होटल पहुंचे ही थे और चाय की तलब थी तो उसे मायूस करना पडा । फिर खाना खाने के बाद मार्केट निकल गये । मसाले की दूकानों से लौंग इलायची खरीदी दाम यहां अपेक्षाकृत सही थे । ड्राइवर यह कहके कि वह कल सुबह हाजिर हो जायेगा हमसे छुट्टी लेकर मुन्नार चला गया था । आगे और पैदल चलते गये कपडों की बहुत सी दुकानें थीं पर सब कश्मीरी माल । केरल से कश्मीरी कपडे दिल्ली ले जाना तो बनता नही था । तो घूम घाम कर वापिस आये थक तो गये ही थे तो पडते ही सो गये ।
आज १९ तारीख, आज हमें कोवालम जाना था । तो हम बढिया सा ब्रेकफास्ट कर के निकलने ही वाले थे । रिसेप्शन पर चाभियां देने और बिल निपटाने गये तो पता चला कि हमारे बिल मे ब्रेकफास्ट का बिल भी लगा दिया गया था जब कि ब्रेकफास्ट कायदे से फ्री होना चाहिये था। हमारे पैकेज में जो था । खैर बडी फोना फोनी हुई और फिर बात सुलझ गई पर फिर भी माइकेल-इन वाले भुनभुना रहे थे कि मेक माय ट्रिप वाले हमेशा ऐसा ही करते हैं, आप तो यहां पेमेंट करो फिर उनसे दिल्ली में ले लेना पर हमने कहा नही ये मसला आपका और मेक माय ट्रिप वालों का है आप निबटो हमें तो ये पता है कि हमारे स्टे में ब्रेकफास्ट शामिल है । खैर बिल दिया और निकले । (क्रमशः)

शनिवार, 1 मई 2010

ईश्वर की अपनी भूमी केरल



हाल ही में यानि कोई दो महीने पहले हम केरल घूमने गये थे, मै, सुरेश और मेरी दोनो भाभियाँ, शरदिनि और अर्चना, जो मेरी ही हम उम्र हैं । यानि सब के सब सीनियर सिटिझन ओर सब के सब वेल्ले (ये दिल्ली वालों का शब्द है फुरसतियों के लिये) ।
तय किया कि पैकेज़ टूर लेंगे जिसमे एयर फेयर भी शामिल हो । ट्रेन से नही जायेंगे क्यूं कि दिल्ली से कोची पहुंचते पहुंचते ही हालत बुरी हो जायेगी । तो हमने पैकेज टूर लिया Make my trip वालों का ।
टूर ७ दिन और ६ रातों का था (१६ फरवरी से लेकर २२ फरवरी तक ) । हवाई जहाज का टिकट और केरल के ४-५ महत्वपूर्ण स्थल दिखाने के लिये टैक्सी भी उसमें शामिल थी जो हमें कोची हवाई अड्डे से लेती और वहीं वापस छोडती । पैकेज़ की कीमत थी २२,००० रु. प्रति व्यक्ती ।
तो १६ तारीख को ८ बजे हम पहुँचे दिल्ली के हवाई अड्डे । चमचमाता हवाई अड्डा देख कर तबियत खुश हो गई । साढे नौ बजे की उडान थी ऑन टाइम । अर्नाकुलम यानि कोची पहुँचे १ बजे । (वि़डियो)
टैक्सी का फोन नं.हमारे पास था ही, फोन किया तो पता चला बाहर ही हमारा इन्तजार हो रहा है ।
बाहर आकर फटाफट टैक्सी में बैठे और चल पडे हमारे पहले पडाव की और, जो था मुन्नार, केरल का हिल स्टेशन । बीच में एक जगह रुक कर पूरी आलू का लंच कर लिया । कोची से मुन्नार कोई ५ घंटे का सफर है कार से ।
शुरु में थोडी गर्मी महसूस हुई दिल्ली से जो चले थे और क्या गज़ब की ठंड पडी थी इस बार दिल्ली में । थोडी देर में मौसम सुहाना हो गया । खूबसूरत हरे भरे जंगल देखते हुए हम चले जा रहे थे । इसीसे शायद इसे God’s own Land कहते हैं । एक जगह खूबसूरत जल प्रपात देखा तो वहीं रुके और तस्वीरें खींची। नारियल पानी भी पिया जो यहां का तो अच्छा नही था यानि कि गरम था । पर बाद में जितने दिन केरल में रहे बराबर नारियल पानी पीने का सिलसिला चलाते रहे वह भी मलाई वाला नारियल क्यूं कि वह तो शर्तिया मीठा निकलता है और प्यास के साथ भूख भी मिट जाती है ।
मन्नार पहुंचे तो होटल देख कर मन प्रसन्न हो गया साफ सुथरे सुंदर कमरे । एक छोटी सी बालकनी वालकनी से दिखते पहाड़ और चाय के गहरे हरे रंग के बागान । होटल का परिसर एक खूबसूरत बगीचा था । जहां नारियल कटहल पाम आदि पेड थे और तरह तरह के फूलों वाले पौधे । हमे पहुंचते पहुंचते साढे पांच बज गये थे तो घूमने का प्रोग्राम तो अगले दिन ही हो सकता था । तो हम हाथ मुंह धो कर नीचे उतरे और बागीचे की सैर कर ली वहां एक छोटे से तालाब में दो बत्तख थे वे लोगों को देखते ही चिल्लाचिल्ला कर खाना मांगते थे (वि़डियो) । ऊपर आये थोडे टी वी के रिमोट से खेला और फिर डिनर के लिये पहुंचे । खाना बहुत स्वादिष्ट था और तेल भी ठीक ठीक इस्तेमाल किया था न ज्यादा न कम ।
अगले दिन ९ बजे तैयार होकर निकल ना था तो थोडी देर गपशप लगाई और सो गये ।
हमारी टैक्सी क्यूं कि मन्नार की ही थी तो वह ठीक ९ बजे हमे लेने आ गई । उसके पहले हमने बडा सा नाश्ता कर लिया इडली सांबार चटनी , टोस्ट, जाम और बटर, फल, जूस और कॉफी ।
पहले गये मुन्नार के फूलबाग (Flower Garden ) .इतने सारे और इतने तरह के फूल थे कि नाम याद रखना मुश्किल लग रहा था । आप तो बस ये विडियो क्लिप देखें और शेक्सपीअर जी को याद करें जो कह के गये हैं कि नाम में क्या रख्खा है गुलाब को किसी भी नाम से पुकारो रहेगा तो वो गुलाब ही । पर नही शायद विडियो आपकी मदद करे, क्यूंकि नाम तो हैं फूलों के और हमें जानना भी चाहिये ।(वि़डियो)
 बीच में एक जगह हाथी की सवारी के लिये जगह थी । कोई ४- ५ हाथी थे जो लोगों को सवारी करा रहे थे । हमने सवारी तो नही की पर फोटो जरूर खींचे । लोग हाथी पर एक सब्जी और फलों से भरी टोकरी लेकर चढते और हाथी सूंड ऊपर कर उनसे वह टोकरी ले लेता खाकर फिर वापस कर देता, आप भी देखिये । मेरी पोती के लिये टी वी से नोट की हुई एक कविता याद आ गई ।
हौदा हल्लम हल्लम और हाथी चल्लम चल्लम,  
हम बैठे हाथी पर और हाथी टल्लम टल्लम
बगीचे की सैर कर के  और हाथी देख कर, हम गये ईको पॉइंट यहां एक खूबसूरत झील है जहां खडे होकर जोर से चिल्लाओ तो आवाज लौट कर आती है । पहाड जो है सामने , हाँ आवाज में दम होना चाहिये । यहीं बहुत से नारियलपानी वाले भी थे, तो पिया नारियल, बडा ही मीठा । यहीं पर कुछ ठेले वाले थे जो छोटी छोटी प्लास्टिक की बोतलों में तेल बेच रहे थे । नीलगिरी (यूकेलिप्टस) का तेल, लेमनग्रास ऑयल, लौंग का तेल वगैरा । कुछ दुकानों में बच्चों के लिये बैटरी से चलने वाले खिलौने भी थे । इनमें एक लाल रंग की चिडिया थी जो पेड की डंडी पर बैठी थी ताली बजाओ तो पंख फडफडाती और कूकती । हमने एक एक खरीद ली । कुछ इमिटेशन ज्वेलरी की दुकानें भी थीं सब मेड इन चायना पर थीं बडी खूबसूरत । हमारे ही देश में हमे ही मात दे रहे हैं चीनी । (वि़डियो)


सैर तो हो गई तो अब पेट पूजा, तो एक रेस्तरां ढूंढा और खाना खाया । खाना कुछ खास नही था तो तय किया कि अब से होटल में ही खायेंगे बाहर नही ।
खाना खाकर फिर एक और पार्क में गये वहां भी टिकिट था पर पार्क सुंदर था हालांकि रख रखाव और अच्छा हो सकता था । लेकिन यहां टिकिट ही पिक्चर पोस्ट कार्ड थे  बडे ही सुंदर, जिन्हें हम बाद में प्रयोग कर सकते हैं । वहीं से फिर एक जगह चाय बागान भी देखे ।
फिर लौटे होटल इग्लू । पूरे घूमने में कहीं भी रास्ते पर प्लास्टिक की थैलियां फिकी नही दिखी, रास्ते भी साफ सुथरे थे । बडा अचछा लगा पर यह सिर्फ मुन्नार तक ही सीमित था ये बाद में पता चला । (क्रमशः)