बुधवार, 12 नवंबर 2014

जल्दी आना -2






कल चले जाओगे सीमा पर
अपने कर्तव्य पूर्ति हित
अभिमान है तुम पर।

पर क्या करूं इन आखों का
इतना रोकने पर भी
आती हैं भर भर।

कितनी आयेगी तुम्हारी याद
तुम्हारे जाने के बाद
कैसे बताऊँ।

खबरों पर ही टिकी रहेंगी
जरा ना डिगेंगी
मेरी ये नजरें।


हर फोन, हर चिठ्ठी
हर मेल को तरसेंगी,
पनियाली आँखे।

दुष्मन को हल्के ना लेना
लोहे के चने चबवाना
रक्षा करना देश की।

विजयी हो कर आना
यहां की चिंता न करना
वापिस जल्दी आना।

सोमवार, 3 नवंबर 2014

जल्दी आना





मंदिर के घंटियों की टुन टुन,
तुम्हारे भजन की गुन गुन
बना देती है दिन मेरा।

चाय के कप से उठती भाप
ठंड में उसका सुखद ताप
अद्भुत अहसास-ए-सवेरा।

गर्म नाश्ता ही सर्दी में
तुम्हारे नियम हिदायतें
मै बस नही तोडता।

शाम के चाय की प्याली
तुम्हारी ये अदा निराली
भाती है खूब मुझे।

जाना है तुम्हें पिता घर
मन को खुशी से भर
क्या अब होगा मेरा।

वापस जब तुम आओगी
घर को ऐसा ही पाओगी
तुमसे वादा है मेरा

वहां मन को ना लगाना
मेरी याद ना भुलाना
बस जल्दी आना।


Picture from Google with thanks.