मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

सूरज से बडे




रात की महफिल में छलके जाम कितने
किसने गिने हैं किसने देखे ख्वाब कितने ।

किसने सुनाई नज्म यार-ए बेरुखी की
और मुहब्बत को नवाज़ा किसने किसने ।

अपनी बारी का किये हम इन्तजार,
पर शम्मा को आगे बढाया, हाय, किसने ।

कितनी आहें, कितने उफ, तौबायें कितनी
कह न पाये कुछ, हुए गुमनाम इतने ।

वो रकीब, वो बन गया महफिल का सूरज
वो ही रहा कहता गज़ल, वाह, वाह, कितने ।

हम उठे मेहफिल से जब मायूस हो कर
पूछा किया वह आसमाँ में चांद कितने ।

दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने ।

रविवार, 17 अप्रैल 2011

प्यार की कुछ क्षणिकाएँ

मन में मचती है खलबली सी
आ जाती हैं जब वो, अच्छे नसीब सी
जाते जाते हो जाती हैं कुछ और करीब सी

मेरे मन की तरह ही समंदर में उठती लहरें
मेरे मन जैसे ही इसके भाव कुछ छिछले, गहरे
पर ये उन्मुक्त, और मुझ पर कितने पहरे

कुछ दिन कैसे बन जाते हैं खास
मन में जगाते हैं कोमल कोमल अहसास
वो आयें या ना आयें लगे कि बस हैं आस ही पास

प्यार किसे कहेंगे, कैसे समझायेंगे
कोशिश करते हैं, शायद कामयाब हो जायेंगे
जैसे आ जाता है न बुखार, वैसे ही हो ही जाता है प्यार ।

कितनी उदासी छा जाती है ,
जैसे सूरज पे बदली मंडराती है
जब कई कई दिन फोन नही आता, न कोई मेल आती है ।

पॉवर कट के बाद बिजली की तरह, जब तुम आते हो
यूं लगता है कि गरमी में ए सी की ठंडक लहराती है
तबियत बाग बाग मन में हरियाली छा जाती है ।

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

दुनिया झुकती है


ये कौनसा सूरज निकला है
ये किरण कहां से फूटी है
जो सालों में नही हुई
हो रही वो बात अनूठी है ।

“झुकाने वाला चाहिये”
आज फिर सच होते देखा
सैलाब ये जनता का हमने
फिर आज उमडते देखा ।

आंदोलन किसको कहते हैं
जनता की ताकत क्या होती
ये आज पता लग जायेगा
मगरूर सी इस सरकार को भी ।

जड से है हिला दिया इसको
ये डर के मारे ही चुप है
चलते चुनाव में क्या होगा
यही तो इसकी धुक धुक है ।

इसकी ही क्यूं उन सारों की
है अब खडी हुई खटिया
राजनीति के नाम पे ही
जनता को जिनने सदा दुहा ।

अण्णा तुम बापू बन आये
और बन आये तुम जयप्रकाश
मिटाने भ्रष्टाचार का तम
और फैलाने सच का प्रकाश ।

अब देश का बदलेगा स्वभाव
इसका चरित्र भी बदलेगा
जब हम सब साथ खडे होंगे
और युवा देश उठ गरजेगा ।