मंगलवार, 28 दिसंबर 2010


ग्यारा नवम्बर रात के नौ बजकर चालीस मिनिट पर जब हवाई जहाज दिल्ली की हवाई पट्टी पर उतरा तो जैसे घर पहुँचने का सुकून मिल गया । सामान लेकर घर आये तो  उस वक्त बिस्तर पर लेट कर पीठ सीधी करने की आवश्यक्ता तीव्रता से महसूस हो रही थी । तो उस वक्त तो लेट गये पर तीन बजे ही नींद खुल गई । जिन्हे उठते ही चाय चाहिये, चाय के बिना दिन शुरू नही होता वे ही समझ सकते हैं कि दूध न होने से कितनी बेचैनी हो सकती है । काली चाय तो कभी पी नही तो आज कैसे पी लेते । जैसे तैसे सामान निकाल कर सूट केस खाली करने में थोडा समय बिताया । पाँच बजे मैने इनसे कहा, "चलते हैं शायद मदर डेयरी खुली हो दूध मिले तो चाय पी जाये ।" तो चल पडे । ठंड तो ज्यादा थी नही तो बिना स्वेटर के ही निकल गये । मदर डेयरी पहुँचे तो बंद पर सब्जी की दुकान में सब्जी उतारी जा रही थी । पता था कि दूध यहां मिलने के चान्सेज कम ही हैं फिर भी पूछने में क्या हर्ज की तर्ज पर पहुँच गई उनके पास, ”दूध तो न होगा आपके पास” तो बोले, ” ना जी दूध तो नही है “। फिर मै दुखी हो कर वापिस मुडने ही वाली थी कि दूसरा बोला, "टेट्रा पैक है, चालीस रुपये का टोन्ड मिल्क का ।" जैसे अंधे को दो आँखें मिल गई हों ऐसी खुशी हुई । टैट्रा पैक लेकर घर आये चाय बनाई और चाय पी । उसकी खुशामद कर के अद्रक भी ले लिया था । आनंद आ गया । पर 12 तारीख को मै और 14 को सुरेश दोनो फ्लू से बीमार । डर था कि कहीं चिकन गुनिया ना हो । उसकी काफी खबरें सुनने में आ रही थी । मेरे पास एक होमियो पैथिक दवा रखी थी चिकन गुनिया को रोकने की सो चार चार गोली दोनों ने खा ली । खैर चिकन गुनिया न था और तीन चार दिन में दोनो आदमी ठीक ठाक हो गये । अब घर की खबर ली तो पाया सीपेज था दो चार जगह और  दीवार की पपडी सी उखड रही थी, एक खिडकी से वह जबरदस्त पानी आया था कि उसके नीचे की छोटी अलमारी फफून्द से भर गई थी । तो सोचा घर सैट करने से पहले सफाई, रंग रोगन करा लेते हैं । छैः साल पहले जिन रामदास ठेकेदार से काम कराया था उनका फोन नंबर भी मिल गया । फोन मिलाया तो वह जैसे मेरे लिये ही  लाइन पर बैठे थे । बात की और शाम को वह हाजिर । कल से शुरू करा देते हैं जी काम और उन्होने फटाफट एस्टिमेट दे दिया । काफी ज्यादा  लग रहा था पर काम तो कराना था तो मरता क्या न करता  । तो काम शुरू, तीन दिन तक तो दीवार की मरम्मत होती रही फिर घर के अंदर आये पुताई के लिये । पहला पेन्ट खुरचा तो रामदास जी बोले घिसाई भी करवा लेते फर्श भी साफ हो जायेगा । एस्टिमेट में और इजाफा हुआ हमने सोचा इसके आगे हम तो और थकते ही जाने वाले हैं सो अभी करा ही लेते हैं आगे की किसने देखी । तो वह भी शुरू ।  घर में जो काम फैला है कि हमारा घर रेल्वे प्लेट फॉर्म और बस अड्डे से भी बदतर दिखने लगा । जब सफाई वाली आती तो काम चलता रहता और वह सिर्फ बर्तन कर के चली जाती । जब ये लोग जाते तो हम ही थोडी बहुत सफाई करके घऱ को  सोने लायक बना लेते । झाडू लगाते लगाते समय मुझे भाई साहब की पैरॉडी याद आ जाती ।

सुनहरी ये धूल और हम सा हँसीं
हमें डर है हम खो न जाये कहीं ।। सुनहरी
ये झाडू चलती है जैसे जमींपर
वो धूल उडती है मेरे बदन पर
मेरा पाउडर, मेरा लिपस्टिक,
है सब कुछ शायद यही ।। सुनहरी..

अंततः जब चार दिसंबर को काम खत्म हुआ तो हमने इत्मिनान की सांस ली । अब बारी थी जो सामान फैला है उसको ठिकाने लगाना । एक दिन में सब कुछ समेट लेने का माद्दा तो अब रहा नही सो सोच लिया सुबह सुबह जितना हो पायेगा कर लेंगे एक बार दो बज गये कि काम बंद फिर अगले दिन करेंगे । तो वही किया बचे समय में टी वी पर प्याज के आसमान छूते भाव, बाकी वस्तुओं की महंगाई, नीरा राडिया, अनंत कुमार, और स्वामी आदि आदि को देखते और सुनते रहे । क्या क्या हो रहा था और हो रहा है । पर क्या आखिर तक जायेगा या; ये सफाई अभियान या थोडे दिन तक ढोल पीट कर ये मीडिया वाले भी बंद हो जायेंगे (जब इनको इनकी वाजवी कीमत मिल जायेगी) और आम आदमी हमेशा की तरह हाथ मलता रह जायेगा । अपने साफ सुथरे घर को देख कर अब एक सुकून सा महसूस होता है । क्या यही सुकून हमारे देश को साफ सुथरा देख कर पा सकेंगे हम । कितना कचरा, जाले, फफूंद और तिलचट्टे निकल बाहर आ रहे हैं, क्या होगा इनका सफाया या फिर ये अंधेरे कोनों में घुस कर ये फिर हम पर राज करेंगे ? क्या लायेगा नया साल हमारे लिये ? क्या छिपा है भविष्य के गर्भ में ? बहर हाल आप सब को नया साल मुबारक । आशा करते हैं कि हम थोडा अधिक साफ सुथरा समाज और व्यवस्था पायेंगे । बहुत कुछ अच्छा हो रहा है पर अभी काफी कुछ होने की जरूरत है ।

वे कहते हैं इस दशक में भारत समृध्द हुआ है ।
कितनी विशाल अट्टालिकाएँ, चौडी सडकें, उड्डान पुल,
खेल के मैदान, मेट्रो रेल, नये मॉडेल की कारें,
और नये आयाम छूते सेन्सेक्स और निफ्टी
और सब चीजों के आसमान छूते भाव ।
जिनकी जेबें गर्म हैं वे तो पार पा सकते हैं ।
अब भी होटलों में खा सकते हैं ।
छुट्टी में घूमने जा सकते हैं
बच्चों को महंगे स्कूलो में पढा सकते हैं ।
बीवियों की मोटी फरमाइशें पूरी कर सकते हैं ।

जिनकी गर्मागर्म हैं उनकी तो चांदी ही चांदी है ।
इच्छा करो और पैसे का जिन्न चीज हाज़िर कर देगा ।

जिनकी गुनगुनी है वे भी जी ही लेंगे ।


पर
उनका क्या जो
बढती कीमतों के साथ जद्दो जहद करते करते
अपनी जवानी गवाँ रहे हैं,
बुढापा झेल रहे हैं ।
बचपन खो रहे हैं ।
उन किसानों का क्या जो बैंक का कर्जा ना चुका पाने पर आत्महत्या करने पर मजबूर हैं ।
उन बच्चों का क्या जो  चाय के कप धोते धोते,
कार्पेट बुनते बुनते,
चूडी बनाने के लिये कांच गलाते गलाते,
स्कूल जाते बच्चों को ललचायी नजर से देखते हैं ।
उनका क्या जिन्हें सरकारी स्कूल के मास्टर केवल ट्यूशन पर ही पढाते हैं ।
अगर टयूशन के पैसे नही तो पढो अपने आप ।
या न पढो मेरी बला से ।
उनका क्या, कि आज काम है खाना है पर कल.........?
और उनका जो मेम साहबों के बर्तन घिस कर, घर चमका कर ,
गर्म फुलकें परोस कर भी किसी इनक्रीमेन्ट की हकदार नही हैं ।
महंगाई की दुहाई दे कर भी तनखा में बढोतरी दस प्रतिशत भी नही ।
सुबह से रात तक जूझने का मोल
हाडतोड मेहनत और रात में शराबी पती के लात घूसे
उनका क्या ?
उनके बारे में सोचने की न फुर्सत है न जरूरत ।
कितनी तरक्की की है हमने इस गये दशक में,
क्या यह काफी नही है  ?
फिर से एक बार नया साल मुबारक !