शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

कुछ और क्षणिकाएँ


एक पत्थर उछाल तो दिया है कस कर
कि करे सूराख उनके ऊँचे महलो में
और झरें उसमें से हमारे प्राप्य,
पर अगर नही कुछ हुआ तो समझ लेना
कि गिध्दों नें दबोच लिया है उसे,
ताकि वे फोड सकें, हमारे जतन से
सेये हुए अंडे, अपनी हवस के लिये।

बहुत चाहते हैं कि तुम्हें मिले सफलता
पहली ही बार में, व्यवस्थापन के नियम की तरह
अगर कर सको, हमेशा सही, हर बार, पहली ही बार
पर मत होना निराश अगर ऐसा न हो,
क्यूं कि असफलता ही सफलता की पहली सीढी है।

वे करेंगे हर कोशिश तुम्हें बदनाम करने की
पर जारी रहे ये संघर्ष, यह मन में रखते हुए
कि बदनाम वही किया जाता है जिसका कोई नाम हो।

स्वार्थों की होड लेकर,
सब से आगे दौड कर
लड रहे हैं वे सारे खास
सिर्फ आम आदमी के लिये।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

शुभ नववर्ष




अब अंधेरे भी पिघलते जा रहे हैं,
फैलती हैं सूर्य की नव रश्मियाँ,
बह रही है पवन ताजी हर दिशा में,
खिल रही बदलाव की  नई कलियाँ।

धो कर के कर दो स्वच्छ, ये सारी व्यवस्था,
झाड दो  जाले वे भ्रष्टाचार के
उसको मिले वह लाभ जो जिसके लिये है,
बहने दो झरने अब सद्विचार के।

देश भक्ति के गीत अब सब मिल के गाओ
बच्चों का बचपन वो वापिस फिर से लाओ,
बंद कर दो बेशरमी के नाच गाने
प्रकृति के कुछ नये नगमें गुनगुनाओ।

नारी का सम्मान हो, न हो अपमान कोई
उसकी सुरक्षा देश सी सर्वोपरी हो
हो अगर संकट में अपनी बहन कोई
आगे बढे रक्षा को सारे पिता भाई।

देश को हम आगे आगे ले चलेंगे
हर काम अपना दिल से हम पूरा करेंगे
जो जहां पर है, रहे मुस्तैद बन कर 
तब ही तो वतन का सपना सच करेंगे। 


एक पूरा माह घुमक्कडी रही । इसीसे लेखन वाचन को विराम रहा। पर अब वापिस घर आ गई हूँ तो आप सब के ब्लॉग भी पढना है । शुरुवात लिखने से भले हो पर पढना भी जारी रहेगा। सभी को शुभ नववर्ष।