सोमवार, 16 नवंबर 2009

मिलते रहिये

मिलते रहिये मिलाते रहिये
लोगों से बतियाते रहिये
शायद बात कोई बन जाये !

देखते रहिये दिखाते रहिये
सपनों को चमकाते रहिये
शायद कोई सच हो जाये !

राह को एक पकड के रहिये
चलते रहिये चलते रहिये
शायद मंजिल ही मिल जाये !

बूंदो पर भरोसा रखिये
बूंद बूंद जमाते रहिये
शायद गागर भी भर जाये !

मेरे करने से क्या होगा
ना सोचें, बस करते रहिये
काम कोई पूरा हो जाये !

हंसते रहिये हंसाते रहिये
काम किसी के आते रहिये
शायद जीवन फल पा जायें ।

मंगलवार, 10 नवंबर 2009

कैसा ये मौसम


कैसा ये मौसम, प्यारा सा मौसम
बरफ की सफेद चादर चांदनी सी
ठंडी हवाएँ और आग गुनगुनी सी
ये साथ अपना और मन में रागिनी सी
सर्दियां है कितनी कितनी प्यारी सी । कैसा ये मौसम.......

दिन की नरम नरम धूप बावली सी
पल भर में हो जाती शाम सांवली सी
कंपकंपा जाती है देह सलोनी सी
ऐसे में कांगडी गर्म सुहानी सी । कैसा ये मौसम....

मिट्टी के प्याली में चाय सौंधी सी
आंच से तपते चेहरों पे ऱौशनी सी
चूल्हे में मक्के की रोटी फूलती सी
मन प्राणों में एक आग सुलगती सी । कैसा ये मौसम....

थोडा सुकून और थोडी शांती सी
सीमा पार से घुसपैठ थमती सी
बम और गोलियों में होती कमती सी
जिंदगी भी लगती थोडी थमती सी । कैसा ये मोसम.......

सोमवार, 2 नवंबर 2009

अब तुमसे दूर



अब तुमसे दूर बहुत दूर चला जाता हूँ
रोकना अब न, यहां से मै कहां जाता हूँ ।
जो अपने बीच घटा था कभी कुछ नाजुक सा
वो तेरे पास अमानत सा रखे जाता हूँ ।
न पूछो मुझसे सवाल, जवाबों को न सह पाओगी
उलझे उलझे से इन सवालों को लिये जाता हूँ ।
जो कुछ था दिल में हमारे, कब किसने जाना
न उसको चौपाल पे लाओ, मै चला जाता हूँ ।
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिख्खी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।