रविवार, 28 अक्तूबर 2012

चांदनी का दरिया




ये जगमगाता चांदनी का दरिया
और उसमें दमकता सा तुम्हारा चेहेरा
ये अनोखी सी मदभरी ठंडक
अपनी नजदीकियों की ये गरमाहट ।

ये शरद की लुभावनी सी ऋतु
ये फिज़ा भी महकती महकाती
ये चारों और बिखरी सुंदरता
चांदनी में कुछ और ही चमचमाती  ।

जुबाँ खामोश, आँख बात करती सी
उंगलियां हाथों में थरथरातीं सी
ये हलकी सी होंटों की जुंबिश
जुल्फों की छांव घने बादल सी ।

ये प्यारे पल हमारे प्रेम-पगे
इनको हमेशा जहन में रख्खेंगे
फिर चाहे आये अंधेरी अमावस कोई
रोशनी से उसको भी नहला देंगे ।



बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

बुराई पर अच्छाई की विजय



बुराई पर अच्छाई की विजय आसान नही होती
बिना हौसले हिम्मत के आन बान नही होती ।
दुर्गा मैया ने, श्री राम ने किया नौ दिन संग्राम
तब जाकर विजय का हुआ सिंहनाद ।
मधु, कैटभ, महिषासुर ,शुंभ, निशुंभ,
चंड मुंड, रक्तबीज,
खर, दूषण, ताडका,
कुंभकर्ण,रावण
कितने  शत्रू संहारे
जन मुक्त किये बेचारे
तब जाकर हटे पहरे
सीता मैया को किया मुक्त
रावणसे ।
पृथ्वी को असुरों से 
पर रावण कहां खत्म हुआ न ही हुए खत्म असुर
अब तो हम में से हर पुरुष को बनना होगा राम और हर नारी को दुर्गा
क्यूं कि बुराई पर अच्छाई की विजय आसान नही होती ।।

चित्र गूगल से, साभार ।

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012

प्रलय सृजन


प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।
वेदना में है निहित उसका का हरण
वेदना की धार से तुम मत डरो ।

संतुलन ही, नियम है इस प्रकृती का
क्रिया-प्रतिक्रिया ये सदा घर्षण है होता
संतुलन को ही निजी जीवन में लाओ
कमी जो जो है जहां पर वह भरो ।।

दुःख औ उसके बाद सुख, चलता ही जाता
उपरान्त कटनी के कृषक फिर बीज बोता,
तपती धरती, तब ही  तो वर्षा है होती
अमिय की इस धार को हिय में धरो ।।

आज आँसू, कल खुशी की जगमगाहट
आज पीडा है तो कल फिर मुस्कुराहट
दोनों ही के परे जा तुम जी सको तो
जीत के, जीवन के अपयश को हरो ।

कर्म के अनुसार सबको फल है मिलता
जो यहां जैसा है करता वैसा भरता
बात को इस मान के आगे बढो तुम
और अपना कर्म सुख पूर्वक करो ।

प्रलय के उपरान्त होता है सृजन
तुम प्रलय की वेदना से मत डरो ।।