शनिवार, 23 मार्च 2013




कमनीय छवि वाली राधे, पिचकारी से रंग उडावत है,
सखियन के संग ठिठोरी करे, कान्हा से आंख चुरावत है .

आंधी सी चली है गुलालन की, सब रंग भरे मन भावत है,
कान्हा जो करे अब बरजोरी, सखि राधे मान दिखावत है ।

सब  गोपी ग्वाल उछाह भरे,  गा नाच के रंग जमावत है
मन रंगीला, तन रंग गीला, इस होरी पे जिय कछु गावत है ।

होरी की अगिनी, जलन सभी, मन के गुस्सा भी बुझावत है
इस होरी पे जाये जिया वारी, रंग के संग प्रेम लगावत है ।

जा प्रेम सरित में डूब रहो, अब कृष्ण कृष्ण मन गावत है
सब कृष्ण रंग में नहाय लिये, कछु और कहां सुहावत है ।

रविवार, 10 मार्च 2013

भरतपुर पक्षी-अभयारण्य-२








३ फरवरी
सुबह उठे तैयार होकर नाश्ता किया और बालकनी में आये तो बाहर घना कोहरा छाया हुआ था । गई भैंस पानी में... अब कोहरे मे क्या पंछी देखते । एडम को बाद में फतेहपुर सीकरी भी जाना था जो कि वहां से केवल १५ कि मी दूर है । तो सोचा क्यूं ना पहले फतहपुर सीकरी कर लिया जाये  और गाडी में बैठ कर चल पडे । कोहरा काफी घना था तो ड्राइवर को गाडी चलाने में भी काफी परेशानी हो रही थी । वह जब भी संभव होता किसी दूसरी गाडी के पीछे हो लेता ताकि रास्ते का पता चलता रहे । खरामा खरामा फतेहपुर सीकरी पहुंचे तो बहुत से गाइड पीछे पड गये । उनमें से एक को लेकर हम मज़ार पहुंचे दर्शन किये, धागे बांधे और काफी देर तक बाहर घूमते रहे । वहां दो आदमी बहुत सुंदर गायन वादन कर रहे थे । एक तबले पर था दूसरा हारमोनियम पर, वही गज़ल गा भी रहा था । खूब आनंद आया । (फोटो)

करीब १० साढे दस बजे जब हम वापिस जा रहे थे तो कोहरा छट चुका था । अब तो वापसी का प्रवास भी जल्दी हो गया । हम सीधे जा पहुंचे पक्षी-उद्यान । हमारा कल का गाइड जैसे हमारे लिये ही रुका था, गेट पर ही खडा मिल गया तो हमने उससे कहा कि हमारे पास कुल ३ घंटे हैं तो हमे बढिया बढिया पक्षी देखना है । तो साहब रिक्षा में बैठे और पक्षी निरीक्षण सैर शुरु ।
इस बार हम सीधे सीधे चलते गये और एक बडे से तालाब के किनारे पहुंचे जो केवलादेव मंदिर से थोडा ही आगे था । और इतने सुंदर सफेद झक पेलिकन दिखे और वे एक साथ इतने आराम से एक बोट की तरह तैर रहे थे । बहुत देर तक हम उन्हें देखते रहे इतना
सुंदर दृष्य था । पेलिकन समंदर पर तथा लेक और तालाबों पर रहते हैं । यह बडे सामाजिक पक्षी होते हैं और अधिकतर इकठ्ठे रहते और तैरते हैं । ये प्रजनन के समय भी कॉलोनी में ही रहते हैं ।  (फोटो)

हम पेलिकन्स को देख ही रहे थे कि पानी पर उछलता हुआ एक सांप सा दिखाई दिया ।
 इसका सिर्फ सिर ही दिख रहा था । गाइड ने हमें बताया कि यह सांप नही बल्कि स्नेक
बर्ड है । इसकी गर्दन लंबी होती है और यह तैरते समय सिर्फ अपना सिर ही पानी के बाहर रखता है, और बहुत तेजी से आगे बढता है । इसमें नर बहुत सुंदर काले रंग का होता है और मादा थोडे हलके रंग की । इसकी गर्दन को यह डार्ट की तरह आगे फेंक कर अपना शिकार मछली या मेंढक पकडता है इसी लिये इसको डार्टर (इन्डियन डार्टर या अमेरिकन डार्टर जिस भी जगह पाया जाता है ) भी कहते हैं ।

वहां से वापिस मुडे तो एक जगह रुक कर गाइड ने बताया कि यहां दूर से ही सही लेकिन आपको स्पून बिल (चम्मच चोंच) और आयबिस दिखेंगे । तो हम उतर कर चल पडे । गाइड अपनी दूरबीन से देखता रहा और फिर उसने अचानक दूरबीन मुझे थमा दी । देखिये वहाँ दूर सामने उस टीलेनुमा चीज़ पर स्पूनबिल और आयबिस दोनों हैं । वाकई वहां स्पून बिल दिखा और आयबिस भी । दोनों दोस्तों की तरह पास पास खडे धूप सेंक रहे थे । स्पून बिल एक लंबा बडे आकार का पक्षी है जिसकी गर्दन और पैर काले होते हैं और चोंच भी जो चम्मच की तरह आगे से गोल होती है । (फोटो)

यहां का आयबिस बडे आकार का छिछले पानी में मछली कीटक और छोटे मेंढक तथा उनके टेडपोल खाने वाला पक्षी है । इसके पंख सफेद तथा सिर और चोंच काली होती है चोच सिरे पर थोडी मुडी होती है । यह चोंच से पानी को चलाता रहता है और अपना भक्ष ढूंढता है । तब अक्सर इसका सिर भी पानी के नीचे रहता है । (फोटो)

थोडी ही दूरीपर दिखा काली गर्दन वाला स्टॉर्क । यह बडा पक्षी वैसे तो तिब्बत के टंडे प्रदेश का रहिवासी है पर प्रजनन के लिये यह नदी या तालाबों के किनारे आता है यह कभी कभी गेहूं या जौ के खेतों में भी दिखता है । उसने जब उडान भरी क्या ही सुंदर दृष्य था । यहीं कुछ पीछे एक बडा सा नर नील गाय खडा था । व्याकरण की गलती लग रही है ना ?


यहीं पर हमने भूरे पैरों वाली बत्तखें ( ग्रे लेग्ड गीज़ ) देखीं जो प्रजनन के लिये यहां सुदूर साइबेरिया से आती हैं । इनके पैरों में वाकई मोजे पहने हुए लगते हैं ।

साइबेरिया से आनेवाले क्रेन्स अब नही आते इनका आखरी जोडा पिछले साल देखा गया था पर वापसी पर वह शिकारियों का शिकार हो गया । अब वहां से आने वाले पक्षियों को राह बताने वाला कोई पक्षी नही बचा ।
यहां अक्सर खुली चोंच वाले स्टॉर्क भी दिखते हैं पर हम तो नही देख पाये ।

और देखे छोटे कोरमोरन्ट । ये मझोले आकार के पक्षी होते है ।इनका शरीर प्रजनन के समय पूरा काला रहता है । अन्य समय ये भूरे रंग के होते हैं तथा गले पर एक सपेद सा धब्बा होता है ।  ये पूरे भारत में पाये जाते हैं ।

वापसी पर एक हिरण भी दिखा (स्पॉटेड डियर) पर फोटो नही ले पाये । सुर्खाब  और गदवाल (वॉटर फाउल ) भी दिखे ।
आगे जाकर ३-४ जैकॉल (सियार) दिखे ।
मन तो बहुत था कि कुछ देर और सैर करें पर चलने का वक्त हो रहा था । दिल्ली अभी ४-५ घंटे दूर थी । एडम को कल काम पर भी जाना था । तो वापिस गेट पर आये
। गाइड और रिक्षावालों को धन्यवाद कहा मजदूरी और बक्षीश दी और गाडी में बैठे वापसी के लिये । रात के साढे आठ बजे  पहुंचे घर । खाना रास्ते में महारानी पैलेस मे खा लिया था तो और कुछ करना नही था ।  आप को कैसे लगी हमारी भरतपुर की सैर ? मुझे तो बडा मज़ा आया ।

बहुतसे चित्र गूगल के सौजन्य से ।


सोमवार, 4 मार्च 2013

भरतपुर पक्षी अभयारण्य




भरतपुर पक्षी अभयारण्य

दिल्ली में रहते रहते कोई 32 वर्ष हो गये हैं, इस दौरान कितनी बार मन में खयाल आया था कि एक बार भरतपुर जरूर जाना है । पर हो ही नही पाया । इस बार तो मैनें तय ही कर लिया था कि इस सर्दी में जाना ही है भरतपुर । तो हमने फरवरी को इस पर अमल कर ही लिया । हमारे साथ एडम भी था । सुहास का ये अमेरिकन विद्यार्थी हमारे यहां वह जब ११ वी १२ वी में पढता था तब पहली बार आया था । अब तो अमेरीकन एम्बेसी में काम करता है । अभी साउथ अफ्रीका में नियुक्त है और यहां दिल्ली काम से आया है । हमने पूछा, चलोगे भरतपुर, तो खुशी खुशी हामी भर दी । हॉटेल का बुकिंग भी कर दिया ।  तय किया था कि टैक्सी से ही जायेंगे ताकि हमारा वाहन हमारे साथ ही हो, और जरूरत पडी तो और कहीं जाने के लिये भी इस्तेमाल कर सकते हैं । भरतपुर दिल्ली  कोई 185 कि.मी. का रास्ता है ।
भरतपुर पक्षी अभयारण्य को महाराज केवलादेव ने बनवाया था । यहां पर हर वर्ष हजारों की संख्या में  प्रवासी पक्षी आते हैं और हमारे जैसे पर्यवेक्षक भी । इनमें से कुछ भारत के ही अन्य प्रदेशों से आते है तो कुछ विदेशों से । इसे १९८२ में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा ( नेशनल पार्क ) मिला  और १९८५ में यह विश्व की धरोहरों (नेशनल हेरिटेज) में शामिल किया गया । 

हम सुबह साढे सात बजे चल पडे । मन में गीत गूंज रहा था पंछी बनू, उडती फिरूं, मस्त गगन में............... दो ढाई घंटे के सफर के बाद भूख लग आई तो रास्ते  रुके महारानी पेलेस नामक रेस्तराँ में । आलू पराठे का नाश्ता किया बढिया गरम गरम चाय पी और चल पडे आगे । कोई साढेबारह बजे हम भरतपुर के हमारे हॉटेल पहुंच गये
नाम है, सूर्या विलास पैलेस । सुंदर नया हॉटेल जो कि एकदम पुराने राजमहल के स्टाइल में बना हुआ । मैनेजर ने सुझाव दिया कि हम लंच करें और फिर जायें अभयारण्य । पर हमारे तो पेट के पराठे अभी हिले भी नही थे, तो हमने पहले अपने गंतव्य पर जाना ही उचित समझा । टिकिट लेकर कैमेरा से लैस हो हम पक्षी अभयारण्य में प्रवेश कर गये ।
एक गाइड कर लिया और दो साइकिल रिक्षा भी ले ली क्यूं कि पता चला कि ये अभयारण्य कोई २९ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है । इसमें करीब १० वर्ग किलोमीटर पानी के सरोवर और दलदली इलाका है जहां पानी के पक्षी आते हैं ।  ऱिक्षा जब चल पडे तब पहले पहल कोई २-३ किलोमीटर तक कुछ दिखा ही नही ।


आगे जा कर दिखे रोज रिंग्ड पेराकीट यानि वे तोते जिनके नर गले में एक लाल रंग का छल्ला सा होता है । पर ये तो हमने नीमराना में भी देखे थे । एक छोटा धब्बेदार उल्लू ( स्पॉटेड आउलेट )
भी दिखा (फोटो) ।


एक जगह दिखा धब्बेदार बाज़ (स्पॉटेड ईगल)।


थोडा आगे जाने पर दिखा कि एक पेड गिरा हुआ था सूख भी गया था उसके कोटर में से गर्दन निकालता  हुआ मॉनिटर लिझार्ड  दिखा । (फोटो)



अब थोडा मज़ा आने लगा था । हमारा गाइड भी काफी जानकार था । हम आगे गये तो पानी का लम्बा सा तालाब लगा वहां बहुत सी काली बत्तखें तैर रही थीं । उनका नाम है कॉमन कूट । काफी शोर मचा रहीं थीं ।  ये दूसरे पक्षियों के साथ सर्दियों में तो सामंजस्य बठा लेती हैं पर प्रजनन के समय अपने रहने के स्थान के लिये काफी आक्रामक हो जाती हैं । ये यहां के ही पक्षी हैं । (फोटो)


आगे जा कर सफेद झक बगुले दिखे । इनकी गर्दन थो़डी लंबी होती है । गाइड ने बताया कि इनको इग्रेटस् कहते हैं ये बडे छोटे और मझौले आकार के होते हैं । बडे ईग्रेटस सुंदर और ग्रेसफुल होते हैं। इनको हेरॉन भी कहते हैं और होते भी हेरॉन कुल के हैं ।
 हेऱॉन की तरह ही ये उडान के समय अपनी गर्दन अंदर की और खींच कर उडते हैं । इनकी उडान भी देखनेवाली होती है और इनको दूसरे ईग्रेटस् से अलग करती है इनके सफेद रंग की वजह से ही इन्हे इग्रेटस् कहते हैं । (फोटो )

सफेद ईग्रेटस् के अलावा दूसरे हेरॉन्स भी दिखे जैसे कि ग्रे हैरॉन, पर्पल हैरॉन, पॉन्ड हेरॉन वगैरा ।


ग्रे हेरॉन पानी के आस पास रहने वाला पक्षी है यह दिखने में व्हाइट हेरॉन या लार्ज ईग्रेट जैसाही लगता है पर इसके बाहरी पर और पंख स्लेटी रंग के होते हैं । नीचे के पर बिस्किट के रंग के होते हैं यह बडा पक्षी है और करीब १०० से.मी. लंबा होता है । इसका सिर सफेद होता है पर उस पर एक काली पट्टी सी होती है । इनकी चोंच गुलाबी रंगत लिये पीले रंग की होती है ।

ग्रे हैरॉन

पर्पल हेरॉन को इसका नाम इसके पंखों की वजह से मिला है । नीले जामनी पंखों वाले इस पक्षी की चोंच लंबी और पीली होती है ।यह भी पानी का पक्षी है और मछलियां इसका आहार है । यह अफ्रीका योरोप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है ।

फिर दिखे पॉन्ड हेरॉन या  पैडी बर्ड । यह एक छोटे आकार का हेरॉन है और दक्षिणि ईरान, भारत, श्रीलंका, बांगला देश में पाया जाता है । यह सुंदर सफेद और भूरे रग के परों वाला होता है और इसके पीठ पर एक गहरे भूरे रंग की पट्टी होती है । चोंच पीली होती है । (फोटो)
     
नीलकंठ और किंगफिशर भी देखे ।  नीलकंठ को इंडियन रोलर भी कहते हैं । ये भारत में खूब पाये जाते हैं । इनके दर्शन शुभ माने जाते हैं । ये प्रवासी तो नही माने जाते पर
मौसमी बदलाव के साथ स्थलांतर करते पाये जाते हैं ।  इनके पर और सिर नीला होता है पर छाती भूरी होती है इनका कंठ नीला नही होता वरन भूरा ही होता है । (फोटो)

किंगफिशर बहुत सुंदर रंगबिरंगे परों वाला पक्षी है । चिडिया से थोडे बडे छोटी पूंछ वाले
किंग फिशर का सिर उसके देह के हिसाब से बडा होता है । इसकी चोंच लंबी और मजबूत होती है ताकि मछली आसानी से पकड सके । इसके पंख और पीठ नीले तथा पेट नारंगी रंग का होता है । ये पानी के अंदर का अपना शिकार बखूबी देख लेता है ।
(फोटो)

और थोडे आगे जाकर दिखे पर्पल हेन मूर या जामनी जल मुर्गी । यह मझोले आकार के पक्षी खूबसूरत भूरे,नीले, बैंगनी रग के पर वाले होते हैं ।  नर का रंग ज्यादा चमकीला तथा मादा का थोडा हलका होता है । ये कम पानी वाले क्षेत्र में घूमते पाये जाते हैं । ये स्वभावतः शरमीले होने से हम इन्हे दूर से ही देख पाये ।

  एक जगह खूब दूर से सुर्खाब भी दिखीं इन्हें गोल्डन गीज़ कहा जाता है । इनके पंख
सुनहरे रंग के होते हैं । 'सुर्खाब के पर 'वाली कहावत याद आ गई । हमारे गाइड के पास एक अच्छी सी दूरबीन भी थी जिससे पक्षी दूर भी हो तो अच्छा व्यू मिल जाता था । सिर्फ फोटो नही खिंच पाते थे ।

आगे जा कर देखे पेन्टेड स्टॉर्कस् । बहुत ही खूबसूरत रंगो वाले और बडे आकार प्रकार के ये प्रवासी पक्षी भरतपुर में प्रजनन के लिये आते हैं और सेप्टेंबर से मार्च तक यहीं डेरा डाले रहते हैं । जब तक कि बच्चे बडे होकर उडने लायक नही हो जाते । हमने माता पिता को बच्चों को उडने का प्रशिक्षण देते हुए देखा । इनकी पूरी की पूरी बस्तियां है यहां । (फोटो) 

ये बडे आकार प्रकार वाले पक्षी लंबी चोंच वाले होते हैं जो कि अंत में जा कर एक हुक की तरह मुड होती है जो आयबिस पक्षियों में भी पाई जाती है ।
पूर्ण वयस्क में सिर नारंगी लाल  होता है और दोनो पंखों पर काला सफेद धब्बों वाला आकर्षक  डिजाइन होता है  ये यहां दक्षिण भारत से प्रजनन के लिये आते हैं ।
इन सब पक्षियों को उनके प्राकृतिक वातावरण में देख कर बहुत आनंद आ रहा था ।  पर अब काफी थकान हो गई थी । जब कि हम तो रिक्षे पर थे । बेचारे रिक्षा चालक ! वापसी पर दोनो तरफ सांप की बांबियां बनी दिखीं और एक पर एक कोब्रा भी दिखा पर वह ठंड की वजह से काफी सुस्त था और धूप  सेंकने बांबी के ऊपर आकर लेटा था ।

 एडम ने एक फोटो क्लिक किया और हम वापस गेट पर आये और हमारी टैक्सी में बैठ कर वापिस अपने होटल । फ्रेश होकर चाय पी बिस्किट खाये और टीवी चला कर चैनल चेन्ज करते रहे । थोडी देर बाद नीचे जाकर खाना खाया । बहुत बढिया खाना था । पनीर पसंदा, नान, दाल चावल और आलू गोभी । थकान के कारण नींद जल्दी आ गई ।
हमें फिर से सुबह पंछी देखने जाना था ।

बहुतसे चित्र गूगल के सौजन्य से ।