गुरुवार, 29 मई 2008

तुम आओ तो

फूल भी खिलेंगे
तारे निकलेंगे
चांद चमकेंगे
खयाल बहकेंगे
तुम आओ तो

सावन बरसेगा
बादल गरजेगा
चमकेगी बिजुरिया
जिया लहकेगा
तुम आओ तो

शरद की सुहानी
चांदनी खिलेगी
कच्ची गुनगुनी
धूप निकलेगी
अकारण ही मेरी
पायलिया बजेगी
तुम आओ तो

सरदियों की शाम
अंगीठी जलेगी
शाल ओढ कर
अम्मा मटर भूनेगी
चाय की गरम गरम
प्यालियाँ चलेंगी
तुम आओ तो

हम तुम मिलेंगे
मन महकेंगे
नदी के किनारे फिर
संग संग चलेंगे
सारे के सारे गिले
प्यार में डूबेंगे
तुम आओ तो

आज का विचार
हमारा ईमान ही हमारा सबसे अच्छा दोस्त है । उसे बार बार सुनना जरूरी है ।

स्वास्थ्य सुझाव
आधीशीशी का सरदर्द यानि माइग्रेन से राहत के लिये रोज रात को सोने से पहले बादाम तेल की २ -२ बूंदे नाक में डालें ।

मंगलवार, 20 मई 2008

महाराष्ट्र का प्रांतवाद

महाराष्ट्र का प्रांतवाद आजकल बडी चर्चा में हैं । वहाँ के लोगों को आपत्ती है कि क्यूं उत्तर प्रदेश और बिहार के भैया लोग मराठी भाऊ लोगों का जीना मुश्किल कर रहे हैं, उनकी रोटी रोजी छीन रहे हैं । तो इसीलिये गुस्से मे आकर उन्होने कुछ कदम उठाये हैं । लेकिन शायद उन्हे किसीने बताया नही कि कमजोर ताकत गुस्सा भारी । हमारे काका (पिताजी) अक्सर ये मुंहावरा प्रयोग करते थे । और गुस्सा तो हर काम को सिर्फ खराब ही करता है । किसी भी लकीर को यदि छोटा करना है तो इसके आगे एक बडी लकीर खींच दो बस । पर ये बडी लकीर खींचना भी है तो कानून के दायरे में रह कर । हमारे ताई और भाऊ को समझना पडेगा कि अगर भैयाओं से जीतना है तो उनसे कम पैसे लेकर उनसे बढिया काम करें ओर थोडा ज्यादा करें फिर तो देखें कोई कैसे उनकी नोकरी या काम छीन सकेगा । ये समस्या कोई आज की या महाराष्ट्र की ही नही है । आसामी, नागा, बंगाली, पंजाबी सबने इस समस्या को झेला है और झेल रहे हैं ।



हमारा संविधान हर किसी को हक देता है कि वह देश के किसी भी भाग मे जाकर काम ढूंढ सकता है और मिले तो कर सकता है । मांगने से तो भीक भी नही मिलती भाऊ, साबित करो अपने आप को । यह नही हो सकता कि आप काम भी कम करें और फिर भी आप ही को नोकरी मिले । यदि आपको लगता है कि भैया लोग आपके शहर को गंदा कर रहे हैं तो पहले खुद तो उसे साफ रखो और कानून व्यवस्या मजबूत करो ताकि हर कोई शहर की हिफाजत करे । प्रांतों की रचना भाषावार हुई ये सही है । बडी बडी कंपनियों को जो महाराष्ट्र में काम कर रही हैं भूमि पुत्रों को काम देना चाहिये यह भी सही है, पर आप की काबीलीयत भी होनी चाहिये और अपने छबि को सुधारना भी जरूरी है । महाराष्ट्र के लोगों की छबी तो यूनीयन बाजों की है । इसे बदलना होगा । खुदी को कर बुलंद इतना कि खुदा बंदे से खुद पूछे, बता तेरी रजा क्या है ।

इसी चीज का एक और पहलू है कि यूपी और बिहार के राजनीतिबाज खुद तो अपने क्षेत्रों में ६० सालों में कुछ कर नही सकें ओर अपने लोगों को बद सो बदतर जीवन जीने को मजबूर कर रहे है पर दूसरे प्रदेशों मे जाकर दादा गिरी करने से बाज नही आते ।
बिहार जैसे प्राकृतिक साधनों से भरपूर प्रदेश में किसी भी पार्टी ने प्रदेश के विकास के लिये काम नही किया । और दूसरे प्रदेशों में जाकर छटपूजा मनाने का क्या तुक है, अगर व्यक्तिगत तौर पर मनायें तो किसी को आपत्ती भी न हो पर उसे राजनीतिक और धार्मिक रैली के तौर पर मनाना कितना उचित है । और असल बात तो यह है ये सब चुनावीं चोंचले हैं पर जनता को चाहिये कि वह इस नौटंकी से प्रभावित न हो ।

मंगलवार, 13 मई 2008

हादसे

चीन में भूकंप से १२ से १५ हजार आदमी मर गये ये खबर अभी जेहन में खलबली मचा ही रही थी कि जयपुर के सात धमाकों की खबर सुनी । क्यूं हो रहा है ये सब, कभी प्रकृति तो कभी आदमी हमारी जान के पीछे पडे हैं । प्रकृति के प्रकोप को तो हम रोक नही सकते पर क्या आतन्कवादी हमलों के खिलाफ हम कुछ भी नही कर सकते ? हर बार हादसा होने पर ही थोडी बहुत लीपा पोती करते हुए हम नजर आते हैं । क्यूं नही हमारी पुलिस, जनता, और सरकारी यंत्रणा कम से कम हर राज्य के राजधानियों में और महत्वपूर्ण संवेदनशील जगहों में सचेत रह सकती । और तारीख विशेषों पर होने वाले हादसों को देखते हुए तो ऐसा लगता हैं कि इन विशेष अवसरों पर तो हम चौकन्ने रह ही सकते हैं ।





बाबू लोगों को ६ टे वेतन आयोग के तहत ३ गुना तनखाह बढाने की बजाय या संसद सदस्यों का अलॉटमेन्ट बढाने की बजाय यह ज्यादा जरूरी है ऐसा हमारी सरकार को क्यूं नही लगता । विशेष सुरक्षा दस्तें इस के लिये क्यूं नही बनाये जा सकते ? जनता की सुरक्षा की जो सरकार चिंता नही करती उसकी हाथों में देश कितना सुरक्षित है । अब जब भी वोट मांगने नेता लोग आयें तो यह सवाल आम आदमी को और खास कर मीडिया को उठाना चाहिये क्यूंकि अगर ये एसा ही चलता रहा तो क्या कल हादसे का शिकार हम नही हो सकते ।
हमारे टी वी चेनल और अखबारों के पास तो सिनेमा और क्रिकेट सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं ।
खेलों को खेल जितना ही महत्व दो और मनोरंजन को मनोरंजन जितना । हमारे जीवन से जुडे मुद्दों को उठाना क्या समाचार माध्यमों का काम नही है । महंगाई से मार खाती जनता के हित में सरकार को कटघरे में क्यूं नही खडा करते ये टी वी वाले, करते भी हैं तो सब को बुला कर हो हल्ला मचाने देते हैं और बिना किसी निष्कर्ष के विवाद खत्म हो जाता है । मुझे लगता है हम सबको थोडा ज्यादा जिम्मेवार होना पडेगा नहीं तो इस हादसे के बाद भी थोडा बहुत रो धो कर हम अगले हादसे तक अपने में मशगुल हो जायेंगे ।

गुरुवार, 8 मई 2008

हम क्या कर रहे हैं


हम क्या कर रहे हैं
कहाँ जा रहे हैं
एक पल को रुक कर सोचें जरा
क्या पाने की ललक में हम क्या खो रहे हैं।
वर्तमान के क्षणिक सुख की खातिर
अपना भविष्य खोते जा रहे हैं






इन नन्हे से फूलों को प्रकाश दो
छाया दो
वर्षा का पानी दो ममता की माया दो
इस जानलेवा तेज धूप में वे कुम्हला रहे हैं ।

इतना न डालें दबाव उनके मन पर
कि दाब से कोई विस्फोट हो जाये
हम संभाल सकें इससे पहले
दिल पर भीषण चोट हो जाये
अपने से खिलने दो, दो सारी सुविधाएँ
न दो अपने सपनों का भार
जो वे ढोते जा रहे हैं



ये किशोर ये युवा भविष्य हैं, हमारा ही नही
देश का भी
ये जागीर नही है हमारी, धरोहर है
मालिक नहीं हैं हम, पालक हैं
ध्यान रखें, कोमलता जतन करें
आकांक्षा का क्षितिज दे
पर चुनाव का हक भी दें
इन्हें न लगे कि वे जीने का हक ही
खोते जा रहे है ।

आज का विचार
सफलता का सबसे बडा मंत्र यह है कि
हम जो भी कार्य करना चाहते हैं अभी करें।

स्दास्थ्य सुझाव

आंखों की रोशनी सुधारने के लिये तुलसी के पत्ते चबाना लाभकारी है ।
छह पत्तो से शुरू करें और रोज एक एक बढाते हुए इक्कीस तक जायें
और वापिस एक एक कम करते हुए छह तक आयें ।