शनिवार, 28 जून 2014

बुढापे का सुख















बुढापे में भी सुख होता है।

सुख- किसी भी बात की जल्दी ना होने का,

सुख- कोई जिम्मेवारी ना होने का,

सुख- दोपहर में किताब लेकर लेट पाने का,

सुख- नाती पोतों को प्रति-दिन बडा होते देखने का,

सुख- नातेरिश्ते में गप्पे लगा पाने का,

सुख- दोस्तों से लंबी बातें कर पाने का,

सुख छुट्टी ही छुट्टी होने का,

सुख सिर्फ ३० से ५० प्रतिशत किराये में इधर उधर घूम पाने का,

सुख- फटी बिवाइयों में घंटों मरहम मलने का,

बुढापे में भी सुख होता है, सिर्फ उसे मजे लेकर भोगना आना चाहिये।



चित्र गूगल से साभार



मंगलवार, 17 जून 2014

यादें

घने कोहरे सी मन को भर देती हैं यादें
भूल तो जाऊँ पर भूलने कहाँ देती हैं यादें।

वह पुराना गीत जब कोई गुनगुनाता है,
जाने कहां से जहन में चली आती हैं यादें।

पलटने लगती हूँ जब कोई पुरानी सी किताब,
कोई सूखा सा फूल कर देता है ताज़ा यादें।

किसी सहेली को जब देखती हूँ प्रेम में मगन
जाने क्यूं आँखों से आंसू सी छलकती हैं यादें।

वे नोट्स के मार्जिन में तुम्हारे मैसेज
पढूं या ना पढूं दिल पे लिखी रहती हैं यादें।

यह क्या मेरे ही जहन की हैं खुराफातें
या फिर सब को ऐसे ही सताती हैं यादें।

क्या तुम सचमुच ही भूल गये हो मुझको
या फिर कभी कभी आती हैं तुम्हें मेरी यादें।


मंगलवार, 10 जून 2014

मेरा सब सामान गया



शमा जली है जलने दे
मन को आज मचलने दो
तेरा मेरा किस्सा क्या
जो किस्सा है चलने दो।

हमने सबसे प्यार किया
कोई जलता है जलने दो
मैं क्यूँ उस पर ध्यान करूं
मुझे अपने रस्ते चलने दो।

अफसर को ये कहते सुना
लोग बला हैं टलने दो
ये कैसा जनतंत्र चला
कि जनता को कुचलने दो।

सब सबूत जिस फाइल में
हैं, उसको ही जलने दो,
या फिर तेजाब में डुबो
और फिर उसको गलने दो।

आज का बेटा ये कहता
समय के साथ बदलने दो
हुई पुरानी आपकी बात
नई हवा को चलने दो।

इन बातों के बीच कोई
गर्माये तो उबलने दो
मेरा सब सामान गया
अब मुझको भी चलने दो।