मंगलवार, 22 जनवरी 2013

सदी के महानायक



तुम थे स सदी के महानायक
तुमने जानी थी आज़ादी की सही कीमत
मुफ्त में या भीक में मिली चीज़ की कोई महत्ता नही होती
तुम्हें पता था ।
इसी लिये तो तुम चाहते थे लड कर अपना हक लेना
लडे भी ।
कितने दर्द सहे, परायों से अपनों से भी,
जिससे की उम्मीद उसीने मुंह फेर लिया
तुमने नही मानी हार, उठ खडे हुए हर बार।
शत्रु का शत्रु वह अपना मित्र यही कहावत मानी
और धैर्य से की प्रतीक्षा मदद की ।
जिसने दी मदद उससे ली ।
अपने बलबूते पर बनाई आज़ाद हिंद फौ
और चकित कर दिया दुष्मनों को भी ।
और कितनी करीब थी मंजिल जब रास्ता गुम हो गया ।
अपनों ने ही तुम्हें पराया कर दिया ।
चाहे यश किसी और दरवाजे पर चला गया,
पर तुम, सिर्फ तुम्ही थे उस सदी के महानायक ।



रविवार, 13 जनवरी 2013

सागर की गहराई



सागर की गहराई तेरी
और गगन की व्यापकता
पृथ्वी का कण कण भी तेरा
और प्रकाश की समानता ।

ओस की नन्ही बूंद भी तेरी
प्रपात का आवेशावेग
आंसू और मुस्कान भी तेरे
और भावना का आवेग ।

नन्हे शिशु का मोहक चेहेरा
वृध्दों की सिलवटी त्वचा
हाथी हो या नन्हीं चींटी
दोनों में तू ही बसता ।

सांझ भोर का धुंधलका तू
और रात का साया भी
संतों का चिंतन भी तू है
संसारी की माया भी ।

मेरे मन में तो तू बसता
मै भी बसूँ तेर मन में
तेरे आशीष से सदा ही
मुक्त हो रहूँ जीवन में ।