सोमवार, 28 मार्च 2011

हासिल



आसमान के चांद तारे तोड लाने की बात करते थे तुम
फूल तक तो ला नही पाये कभी आज तक

ऐसा क्यूं होता है कि पत्नि बनते ही
प्रेमिका की अर्थी उठ जाती है
रोमांस और रोमांच खुदकुशी कर लेते हैं
या फिर जर्जर हुए, दम टूटने का इन्तजार

क्यूं मै हमेशा रही हासिल की तरह, तुम्हारे लिये
कभी उत्तर नही बन पाई हमारे गणित का

मेरे साथ चलते हुए भी इधर उधर भटकती तुम्हारी आँखें
फूल फूल पर मंडराने वाले भौरें की ही याद दिलाती रहीं
मै तो नन्दादीप बनी जलती रही तुम्हारे मंदिर में
पर तुमने कब आंख खोली मेरे लिये

छोडो अब, इस बहस की कोई जगह नही
मैनें सीख लिया है अपने लिये जीना ।

26 टिप्‍पणियां:

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सच और बस सच की अभिव्यक्ति है आपकी कविता में !
आभार !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कल्पना और यथार्थ का अन्तर है. खूबसूरत अभिव्यक्ति दी आपने..

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हर घर की यही कहानी है।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

छोडो अब, इस बहस की कोई जगह नही
मैनें सीख लिया है अपने लिये जीना ।

बहुत सुंदर......प्रभावित करते हैं भाव....

मनोज कुमार ने कहा…

सुंदर भावाभिव्यक्ति।

mridula pradhan ने कहा…

ye naya andaz bahut achcha laga

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

@छोडो अब, इस बहस की कोई जगह नही
मैनें सीख लिया है अपने लिये जीना ।

यही अंजाम है।

Aruna Kapoor ने कहा…

वाह वाह!....क्या खूब अभिव्यक्ति है आशाजी!...अति सुंदर!

मीनाक्षी ने कहा…

मैनें सीख लिया है अपने लिये जीना -- यही खूबसूरती है ज़िन्दगी की.. बहुत दिनो बाद आना हुआ..आपके छोटे छोटे सुवचनों की कमी खल रही है.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

मनुष्य की ये प्रकृति है और इसे बदलना असंभव है...बहुत अच्छे से इस बात को आपने शब्द दिए हैं...बधाई

नीरज

k.joglekar ने कहा…

आपके ब्लॉग पर पहली बार रचना पढ़ी. कथा की व्यथा पुरानी है. लेकिन अभिव्यक्ति में नयापन. बधाई

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आसमान के चांद तारे तोड लाने की बात करते थे तुम
फूल तक तो ला नही पाये कभी आज तक

ओये होए .....!!
सुरेश जी किधर हैं ....?

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर.....खूबसूरत अभिव्यक्ति

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सशक्त अभिव्यक्ति
कल आपकी यह पोस्ट चर्चामंच पर होगी...
चर्चामंच
मेरे ब्लॉग में भी आपका स्वागत है - अमृतरस ब्लॉग
आप वहाँ आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करियेगा ... सादर

Sadhana Vaid ने कहा…

क्यूं मै हमेशा रही हासिल की तरह, तुम्हारे लिये
कभी उत्तर नही बन पाई हमारे गणित का
बहुत अर्थपूर्ण पंक्तियाँ ! ना जाने कितनी नारियों के मन की पीड़ा को आपने शब्द दे दिए ! इतनी संवेदना से परिपूर्ण रचना के लिये बधाई !

शोभना चौरे ने कहा…

जो मजा इंतजार में है वो वस्लेयारमें कहाँ ?
ऐसे ही तो होता है प्रेमिका का पत्नी बन जाने का
मैंने जीना सीख लिया है जीवन को न्य अर्थ दे दिया है
बहुत सुन्दर |

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ज़िंदगी के गणित को कहती अच्छी रचना

Suman ने कहा…

वाह ताई,
बहुत खुबसूरत लिखी है रचना
मै तो नंदादीप बनी जलती रही तुम्हारे मंदिर में
पर तुमने कब आँख खोली मेरे लिए ....
bahut badhiya .....

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

पहली बार आपको पढा ,बेहद अच्छा लगा ।संभवत:अधिकतर नारियों के मन में यही बात है ।

Dr Varsha Singh ने कहा…

मै तो नन्दादीप बनी जलती रही तुम्हारे मंदिर में
पर तुमने कब आंख खोली मेरे लिये.....

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

आसमान के चांद तारे तोड लाने की
बात करते थे तुम
फूल तक तो ला नही पाये
कभी आज तक.......

आपने अपनी कविता के कैनवास पर सच का रंग बिखेर दिया है....

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

समाज की सच्चाई बयान करती रचना, आशा जी बहुत बहुत बधाई.
वैसे जो सवाल आपने उठाया है, उसका जवाब एक शायर ने कुछ यूं दिया है-
उन्हें ये ज़िद कि मुझे देखकर किसी को न देख
मेरा ये शौक कि सबको सलाम करता चलूं.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कुछ हद तक सचाई ... पर सभी तो ऐसे नही होते ...

Satish Saxena ने कहा…

भावनाओं को बड़ी प्यारी अभिव्यक्ति दी आपने ! हार्दिक शुभकामनायें !!

ज्योति सिंह ने कहा…

छोडो अब, इस बहस की कोई जगह नही
मैनें सीख लिया है अपने लिये जीना
atal aur antim nirnaya bas yahi hai ,pyaar jimmedariyon me dab kar gum ho jaata hai .bahut sundar rahi rachna .

केवल राम ने कहा…

क्यूं मै हमेशा रही हासिल की तरह, तुम्हारे लिये
कभी उत्तर नही बन पाई हमारे गणित का

बस यही तो जीवन का अन्तर्विरोध है ...सच्चाई को बखूबी अभिव्यक्त किया है ....आपका शुक्रिया