मंगलवार, 11 सितंबर 2012

अंतर्विरोध




सन्नाटे की गूंज सुनाई देती है
और गर्जन का मौन दिखाई देता है
अंधकार के बीच उजाले का बिन्दू
अंधकार को चीर दिखाई देता है ।

दोपहरी सी तपती इस रेत पर भी
छाया का आभास हुआ सा लगता है
वर्षा के घनघोर बरसते बादल में
किसी किरण का ठौर दिखाई देता है ।

दुख के इस घने घने अंधियारे में
सुख की बांसुरी सुनाई देती है
और सुखों के बीच न जाने अंदर तक
ये मन क्यूं बेचैन दिखाई देता है ।

प्रेम ताल में डूबते उतराते हुए
बेरुखी का छेद दिखाई देता है ।
और प्रिया की झुकी झुकी सी आँखों में
जाने क्यूं कुछ भेद दिखाई देता है ।

उनकी ना ना करनें की आदत में भी
हाँ हां की आवाज सुनाई देती है
और मेरे लिखने रुकने के झूले में
लिखने का ही विचार दिखाई देता है ।

21 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

आशा का संचार हो रहा |
अब बढ़िया व्यवहार हो रहा ||
आभार दीदी ||

Anupama Tripathi ने कहा…

तमसो माँ सदगमय ....
ये अंतर्विरोध ही हमें सतत खींच लेता है ...अच्छाई ही और ...!!बहुत सुन्दर रचना ...!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

बहुत बेहतरीन रचना,,,

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संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ऐसा विरोधाभास जीवन भर चलता है .... सुंदर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

इन्हें तो क्षितिज पर जाकर मिलना होता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है

.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

यह दुनिया ही परस्पर विरोधों का पुलिन्दा है -
संयोजन करते हमें चलना है!

Maheshwari kaneri ने कहा…

वाह: बहुत भाव पूर्ण अभिव्यक्ति..

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सन्नाटे की गूंज सुनाई देती है
और गर्जन का मौन दिखाई देता है
अंधकार के बीच उजाले का बिन्दू
अंधकार को चीर दिखाई देता है ..

प्रभावी .. बहुत ही भावपूर्ण रचना ... उजाले की एक किरण ही काफी है अन्धकार में ..

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर.
घुघूतीबासूती

मनोज कुमार ने कहा…

इन अंतर्विरोधों से पार पाना भी एक कला ही है।

mridula pradhan ने कहा…

bahot sunder.......

शोभना चौरे ने कहा…

"इस गम की बांसुरी में कोई तो गीत होगा "
बरबस ये पंक्तिया याद हो आई ,आपकी सुंदर कविता पढ़कर |
अपने मुझे याद किया अभिभूत हूँ मै आपका स्नेह पाकर |

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह!

अंतर्विरोध को बेहद खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है आपने।..बधाई।

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर..
भावपूर्ण रचना आशा जी..
सादर
अनु

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना -
और प्रिया की झुकी झुकी सी आँखों में
जाने क्यूं कुछ भेद दिखाई देता है ।
यह छायावाद के बाद का संशयवाद है :-)

कुमार राधारमण ने कहा…

शुरू के तीन पैरे अच्छे लगे क्योंकि उनमें आध्यात्मिकता का बोध झलकता है।

मेरा मन पंछी सा ने कहा…

बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति..
:-)

Suman ने कहा…

दुख के इस घने घने अंधियारे में
सुख की बांसुरी सुनाई देती है
और सुखों के बीच न जाने अंदर तक
ये मन क्यूं बेचैन दिखाई देता है ।
sundar taai ....

अरुन अनन्त ने कहा…

बेहतरीन सुन्दर रचना

mehhekk ने कहा…

sunder abhivyakti ashaji,

aap kaisi hai?
main thik hun.
main apne blog par login nahi kar paa rahi hun,isliye kuch post nahi kar paati wahan,pata nahi kya adchan hai. vaise aaj kal main facebook par jyada likhti hun.
wish u have great time, tk cr,regards mehek.