इस देस में वापस आकर, कितना अच्छा लगता है
इसका सच्चा झूठा किस्सा सारा सच्चा लगता है ।
इसकी धूल भरी सडकें और इसका धूमिल आसमान
गाता या रोता हर कोई अपना बच्चा लगता है ।
इसकी धुंद और इसके कोहरे, इसकी ठंडक और गर्मी
इसका हर मौसम इस दिल को सचमुच अच्छा लगता है ।
ताजे अमरूदों के ठेले, सिंघाडों की हरियाली
देख के ये प्यारे से नजारे मन कच्चा कच्चा लगता है ।
इसके वृक्ष बबूल के हों या हों रसीले आमों वाले
हम को तो हर पेड से लटका प्यार का गुच्छा दिखता है ।
पार्कों में मिलते वो पडोसी जो न कभी मुस्कायेंगे
उनकी चढी त्यौरियों पीछे कुछ अपनापा लगता है ।
सुंदर स्वच्छ परदेस में चाहे कितने ही सुख क्यूं न मिले
देसी घुडकी खा कर भी रबडी का लच्छा लगता है ।
34 टिप्पणियां:
अपना देश अपना ही लगता है ..सुन्दर प्रस्तुति
सब कुछ बयान करती हुयी मनः स्थति की कविता -कब लौटीं हैं विदेशाटन से ?
काश देश भी आपके भावों को यथारूप समझ पाये।
इसकी धुंद और इसके कोहरे, इसकी ठंडक और गर्मी
इसका हर मौसम इस दिल को सचमुच अच्छा लगता है ।
Bilkul sahee kah raheen hain aap!
सुंदर स्वच्छ परदेस में चाहे कितने ही सुख क्यूं न मिले
देसी घुडकी खा कर भी रबडी का लच्छा लगता है ।
ekdam dil se likhi.....bahot pyari kavita.
ओह, वापस आये हैं, या वापस आने की याद आई है!
स्वागत!
बेहतरीन शब्द सयोजन भावपूर्ण रचना.......
बधाई ||
पढ़ कर अच्छा लगा ||
बकौल शैलेन्द्र जी...लाख लुभायें महल पराये...अपना घर फिर अपना ही घर है...
सच में अपना वतन अपना ही लगता है.
आपकी प्रस्तुति लाजबाब है आशा जी.
सुन्दर और भावपूर्ण.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
मेरी नई पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है जी.
सुंदर स्वच्छ परदेस में चाहे कितने ही सुख क्यूं न मिले
देसी घुडकी खा कर भी रबडी का लच्छा लगता है ।
--एकदम सच!!
@इसकी धूल भरी सडकें और इसका धूमिल आसमान
गाता या रोता हर कोई अपना बच्चा लगता है ।
वाकई ,दिल को छू गयी यह रचना .
हाँ ...अपने देश से अच्छी कोई जगह नहीं......
मन से निकले भाव .... सच अपना आँगन, अपना देश अपना ही होता है.....
आप सब का अनेक धन्यवाद ब्लॉग पर आने के लिये कविता सराहने के लिये । आकर दस दिन हो गये आज । छह महीने का बंद घर रुटीन में लाने के लिये इतना समय लग गया अभी भी चल ही रहा है । पर आप लोगों से मन की बात कहने का लोभ संवरण नही कर पाई ।
आशा जी,..
अपना तो अपना होता है चाहे वह देश हो या
अपने लोग,..
बहुत सुंदर भावों लिखी बेहतरीन रचना,
पढकर बहुत अच्छा लगा ...
मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार है...
सुन्दर प्रस्तुति
आभार !!
I wanted to let you know you wrote a great article.
From Indian transport
आदरणीया आशाजी रचना के भावों को महसूस कर मन खुश होगया । सचमुच अपने देश अपनी भूमि से बढकर कुछ नही ।
ये बात तो पूरी तरह सच है !
इसके वृक्ष बबूल के हों या हों रसीले आमों वाले
हम को तो हर पेड से लटका प्यार का गुच्छा दिखता है ।
अपने देश की बात ही निराली है ।
देशभक्ति पूर्ण
अपना देश अपना होता है सुंदर पोस्ट...
मेरे नये पोस्ट "प्रतिस्पर्धा"में......
A very sweet patriotic poem. Loved each and every line. It freshened me up. Thanks :-)
पार्कों में मिलते वो पडोसी जो न कभी मुस्कायेंगे
उनकी चढी त्यौरियों पीछे कुछ अपनापा लगता है ...
bahut sahi likha hai aapne.
.
सुंदर भावभरी रचना जिसमे अपनी माटी की
ख़ुशबू आ रही है !
हम कितना ही बदले हुए परिवेश के साथ समझोते कर लें, हमें भाता वही है जिसके साथ हम जिए बड़े हुए......वही सब कुछ अपना लगता है ....सच्चा लगता है
सच है अपना देश अपना ही होता है ... मैं भी जब जाता हूँ ऐसे ही ख्याल आते हैं ..
सुंदर प्रस्तुति, आभार
वाह,
बहुत खूब.
ऐसा देश है अपना हाँ ऐसा देश है अपना ...
मेरे नए पोस्ट में,..आज चली कुछ ऐसी बातें, बातों पर हो जाएँ बातें
ममता मयी हैं माँ की बातें, शिक्षा देती गुरु की बातें
अच्छी और बुरी कुछ बातें, है गंभीर बहुत सी बातें
कभी कभी भरमाती बातें, है इतिहास बनाती बातें
युगों युगों तक चलती बातें, कुछ होतीं हैं ऎसी बातें
सच में, अपनी मिट्टी में जीना या मरना दोनों ही अच्छा लगता है।
bilkul ji apna desh chahe jaisa ho apna hota hai.yaha chahe lakh dhulikaye ho sunderta bhi utani hi hai.bahut khub.
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