रविवार, 5 जून 2011

ग्रीष्म

जलता सूरज
गरम गरम धरती
रोटी की तरह दिन भर सिकती ।

घिसी चप्पल जलाती पांव
सूखे ठूँठ पर कौवों की काँव काँव।
पीपल के पत्ते भी स्तब्ध
हवा के डैने कैद बंद ।

सूखे होंठों को गीला करती जीभ
दूर तक पानी की नही कोई सींच ।
सूना पनघट, खाली गगरी
छांव से खाली आंगन, देहरी ।

पसीने की चिपचिपाहट
खीझ, झुंझलाहट, पॉवरकट ।
घूंघट के नीचे माथे पर पसीने
बच्चे नंगे अन-तराशे नगीने ।

पानी के लिये सब तरसे
कब आयें बादल और कब बरसे ।
गरमी है ये जेठ की गरमी
नही बरतेगी कोई नरमी ।

20 टिप्‍पणियां:

Vaanbhatt ने कहा…

यू एस में देशी गर्मी...अभी भूलीं नहीं...सुन्दर चित्रण...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

घिसी चप्पल जलाती पांव
सूखे ठूँठ पर कौवों की काँव काँव।
पीपल के पत्ते भी स्तब्ध
हवा के डैने कैद बंद ।
pasine ki bunden chhalchhalaa gai

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत भीषण गर्मी पड़ रही है और आपने अपनी कविता में ब्लाग के कैनवास पर तो बिल्कुल साक्षात ही उतार दी...

Suman ने कहा…

bahut sunder rachna .....garmi ka achha chitran kiya hai ........

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गर्मी अन्दर तक झिंझोड़ देती है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तपती हुई गर्मी का सही वर्णन किया है ... अब तो बरखा रानी ही इससे निजात दिलायगी ...

Abhishek Ojha ने कहा…

भीषण गर्मी चित्रण :)

Unknown ने कहा…

आपकी रचनाये बेहद खूबसूरत है , में इनसे वंचित था इतने दिनों , आम जिन्दगी को परिभाषित करती , बधाई

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

अब तो सावन का इन्तजार है ......

बेनामी ने कहा…

rachna padhkar aisa laga maano mai chilchilati dhup me baitha hun. Bahut hi sundar chitran.

--Mayank

BrijmohanShrivastava ने कहा…

गर्मी का सजीव चित्रण

Jyoti Mishra ने कहा…

Lovely !!!
What a text portrait u created of Summer. I felt each word.

Sunil Kumar ने कहा…

तपती हुई गर्मी का सही वर्णन किया है| बधाई...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

गर्मी के मौसम को बहुत अच्छे से पेश किया आपने...
वैसे कहते हैं न- कभी धूप कभी छांव...

संजय भास्‍कर ने कहा…

सुन्दर चित्रण
बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द, हमेशा की तरह अनुपम प्रस्‍तुति ।

Rachana ने कहा…

सीने की चिपचिपाहट
खीझ, झुंझलाहट, पॉवरकट ।
घूंघट के नीचे माथे पर पसीने
बच्चे नंगे अन-तराशे नगीने ।

पानी के लिये सब तरसे
कब आयें बादल और कब बरसे ।
गरमी है ये जेठ की गरमी
नही बरतेगी कोई नरमी ।
sunder

घिसी चप्पल जलाती पांव
सूखे ठूँठ पर कौवों की काँव काँव।
sunder likha hai
saader
rachana

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

जेठ मास के भीषण उत्ताप को शब्दों में उतार दिया है - बहुत प्रभावशाली और सहज रूप में !
भू - तल से भी जल का दोहन हो रहा है प्रकृति के सारे संतुलन बिगड़ते जा रहे हैं .कभी कभी लगता है आदमी को बुद्धि क्या इसीलिए मिली थी ?

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर रचना है।

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर रचना. ठीक कहा है, जेठ की गर्मी निचोड़ लेगी.

SHAYARI PAGE ने कहा…

बहुत ही अछि कविता लिखी