सोमवार, 6 सितंबर 2010

फिर वही शाम है और वही रात है,.


फिर वही शाम है और वही रात है,
और फिर चांदनी में वही बात है ।
फिर से वो ही कशिश है फिजाओं में भी
और फिर से तुम्हारा हँसी साथ है । फिर..

फिर वही रातरानी है महकी हुई
खुशबुएँ और मस्ती, बिखरती हुई
कहीं लहरों पे संगीत बजता हुआ
चांद का एक जादू सा सजता हुआ
आँखों आँखों में ही हो रही बात है
प्यार की ये अनोखी ही सौगात है । फिर ..

फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो गया
न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है । फिर ..

27 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है । फिर ..

बहुत बढिया !!

kshama ने कहा…

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है । फिर ..
Aah...sach aisa kyon ho jata hai? Atiparichayat avadnya?Ya jo cheez hasil hoti hai uski qeemat nahi rahti? Ya uski asliyat saamne aa jati hai?

समय चक्र ने कहा…

फिर वही रातरानी है महकी हुई
खुशबुएँ और मस्ती, बिखरती हुई
कहीं लहरों पे संगीत बजता हुआ
चांद का एक जादू सा सजता हुआ
आँखों आँखों में ही हो रही बात है
प्यार की ये अनोखी ही सौगात है ।

बहुत बढ़िया मनभावन रचना .... आभार

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मधुर और मोहक रचना।

P.N. Subramanian ने कहा…

वाह! क्या बात है.

Arvind Mishra ने कहा…

हम तो समझे थे बरसात में बरसेगी शराब आयी बरसात और बरसात ने दिल तोड़ दिया ...

मनोज कुमार ने कहा…

फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो गया
न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।
दुखानुभूति का सजीव चित्रण।
हरीश गुप्त की लघुकथा इज़्ज़त, “मनोज” पर, ... पढिए...ना!

Aruna Kapoor ने कहा…

फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
.....अति सुंदर!

rashmi ravija ने कहा…

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है ।

क्या बात कह दी...वो भूले-बिसरे लम्हे...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

काश फ़िर वही....
आशा जी,
बहुत कुछ याद आया!
आशीष
--
बैचलर पोहा!!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

वाह...
बहुत खूब...
बेहतरीन रचना.

Udan Tashtari ने कहा…

वाह! बहुत कोमल रचना.

राणा प्रताप सिंह (Rana Pratap Singh) ने कहा…

प्रियतम का साथ सदा सुहाए....
बहुत खूब

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है । फिर ..

फिर वही शाम वाही गम वाही तन्हाई है
दिल को बहलाने तेरी याद चली आई है|

रानीविशाल ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत रचना सुन्दर भावों को बखूबी सुन्दर शब्दों में पिरोया आपने पड़ने में लय भी पता चलती है ....साधुवाद आपको !
अक्सर रुखी रातों में

vikram7 ने कहा…

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है
bahut hi sundar rachana

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।

सच ही कहा, समय और हालात हर शब्द, परिस्थितयों, दृश्यों के मायने ही बदल कर रख देते हैं.
इस उम्दा रचना पर हमारी हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

Sunil Kumar ने कहा…

बेहतरीन रचना आभार.

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

हर पैरा के बाद ’फ़िर..’ का प्रयोग बडा अच्छा लगा.. वो गाना याद आ गया जिसमें एक्ट्रेस साहिबा बडे प्यार से पूछती रहती हैं ’और’..
और एक्टर साहिब बडे मन से हर बार यही कहते हैं कि ’और तुम’ :-)

रंजू भाटिया ने कहा…

फिर वही शाम है और वही रात है
पर इस चांदनी में न वो बात है
न कोई कशिश है फिजाओं में भी
साथ अपने बस धुंधले से जज्बात है ।

वाह बहुत खूबसूरती ..गाना याद आया इसको पढ़ते हुए ..फिर वही रात है ...रात है ख्वाब की ..

RAJWANT RAJ ने कहा…

in dhundhle jzbabto ko smritiyo ki thali me sja kr nrm htheliyo ka sprsh de ke dekhe , sb aapke ird gird hi hai aisa mhsoos krengi .
bhut hi bhavpoorn prstuti .aapko aaj our bhi mnn krungi .

मैं बोलूंगी खुलकर ने कहा…

अच्छा लिखती हैं मैम. आपके कमेंट के बाद आपके ब्लॉग को देखा. अब निश्चित ही अच्छी कविताओं से साबका होगा. धन्यवाद

Suman ने कहा…

bahun sunder behatrin rachna........

Rohit Singh ने कहा…

बेहद ही खूबसूरत कविता। फिर वही चांद है फिर वही रात। कई बीती रातें याद आ गईं। चांद फिर से आंखो के मरकज़ का केंद्र बन गया है। अब ये अजीब है कि ईद का चांद बना मरकड़।

निर्मला कपिला ने कहा…

फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो गया
न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।
हाँ कभी कभी रुस्वाई मे ऐसा भी होता है। बहुत सुन्दर लगी आपकी रचना। धन्यवाद और शुभकामनायें

दिव्यांशु भारद्वाज ने कहा…

रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो सा गया।
बेहतरीन रचना

पूनम श्रीवास्तव ने कहा…

aadarniya mam,
फिर मिलें हैं मगर अब वो सपने कहाँ
वो दिन जो बिताये थे, अपने कहाँ
रास्ता और साथी वो खो सा गया
और कोई और अपना खुदा हो गया
न मन में खुशी का वो अहसास है
घुटन है, चुभन है, और हालात हैं ।
bahut hi sundar shabdo me jajbaato ko kitni khoobsurati se pirpya hai aapne .bahut hi sundar prastuti.
poonam

शरद कोकास ने कहा…

जज़्बतों के लिए बेहतरीन शब्द ।