अब तुमसे दूर बहुत दूर चला जाता हूँ
रोकना अब न, यहां से मै कहां
जाता हूँ ।
जो अपने बीच घटा था कभी कुछ नाजुक सा
वो तेरे पास अमानत सा रखे जाता हूँ ।
न पूछो मुझसे सवाल, जवाबों को न सह पाओगी
उलझे उलझे से इन सवालों को लिये जाता हूँ ।
जो कुछ था दिल में हमारे, कब किसने जाना
न उसको चौपाल पे लाओ, मै चला जाता हूँ ।
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिख्खी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।
21 टिप्पणियां:
जो अपने बीच घटा था कभी कुछ नाजुक सा
वो तेरे पास अमानत सा रखे जाता हूँ ।
न पूछो मुझसे सवाल, जवाबों को न सह पाओगी
उलझे उलझे से इन सवालों को लिये जाता हूँ ।
बहुत खूब, बहुत सुन्दर !!
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिख्खी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।
yeh panktiyan dil ko choo gayin.........
bahut hi sunder kavita........
मेरी दुआयें आपके साथ हैं, बहुत अच्छा लिखा है आपने.
"होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिख्खी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।"
ओह !
बहुत सौम्य सी कविता है । अच्छी है ।
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
बहुत करीबी और भावपूर्ण रचना
बहुत अच्छा लिखा है.
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महिलाओं के प्रति हो रही घरेलू हिंसा के खिलाफ [उल्टा तीर] आइये, इस कुरुती का समाधान निकालें!
बहुट सुंदर कविता. धन्यवाद
बहुत दिनो अस्वस्थ रहने से आपके ब्लोग पर नहीं आ पाई मगर फिर भी आप मेरे ब्लोग पर आती रही इतनी सुखद अनुभूति हुइ कि केवल ब्लोग के माध्यम से भी रिश्ते इतने स्नेहमयी हो जाते हैं धन्यवाद। आपकी रचना बहुत सुन्दर है बधै और शुभकामनयें
वाह!
बहुत खूब!!
बधाई!!!
''होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिखी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।''
इसी विषय पर मेरा नज़रिया कुछ यूं रहा_
चलो तकदीर दोनों आज़माकर देख लेते हैं,
मिलाता है, हमें किसका मुकद्दर, देख लेते हैं....
शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद'
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिख्खी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।
बहुत खूब....!!
vah ashaji
pyari si komal kavita man ko choo gai
जो अपने बीच घटा था कभी कुछ नाजुक सा
वो तेरे पास अमानत सा रखे जाता हूँ ।
vah kya khyal hai bahut khoob
तुलसी पर लगाया दिया
, है मेरी आस
कि तू कुशल से रहे, रहे दूर या पास
दिल के जज्बों को बहुत खूबसूरती से अपने पिरोया है।
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और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
"न पूछो मुझसे सवाल, जवाबों को न सह पाओगी
उलझे उलझे से इन सवालों को लिये जाता हूँ ।"
waah ashaa ji aur ye wali to bas ghzab hain...
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।
ab iske baad aur bahalaa kyaa reh jaata hai...kehne ko....
ulajhe-ilajhe swaaloN ke
naazuq-se jawaab deti hui
khoobsurat rachnaa
नमस्कार आशा ताई,
आज पहिल्यांदाच प्रतिक्रिया देते. खूप संवेदनशील, भावूक, कविता आहे. खूप आवडली.
माझ्या हि भावना.....
रोप तुळशी चे सासरी पण बहरले,
मंजिऱ्या रुपी, नातवंडी रमले,
दीप अजूनही वृन्दावनी लावते,
उजळून राहू दे अक्षय हे नाते.
माझा ब्लॉग.......www.anukshre.wordpress.com/
असा आहे. वेळ मिळाला तर भेट द्या.मला खूप आवडेल आपले नाते जोडायला.
आशा जी
दिल को छू लेने वाले इस मासूम से भाव के आगे झुकने का मन करता है . इसे जानने के लिए थोड़ा रुकने का मन करता है .
न पूछो मुझसे सवाल, जवाबों को न सह पाओगी
आशाजी बहुत दर्द छिपा है इन लब्जो मे.
जो कुछ था दिल में हमारे, कब किसने जाना
न उसको चौपाल पे लाओ, मै चला जाता हूँ ।
जानता हूँ, जला करके तुलसी पे दिया,
तकोगी राह मेरी, फिर भी चला जाता हूँ ।
kuch diye khamosh jalte hai,unki roushani dil tak pahun jati hai.sunder bhavuk rachana.
वाह!
बहुत खूब!!
बधाई!!!
''होगी मुलाकात कभी किस्मत में जो लिखी होगी
एक दुआ तुम करो, एक मैं भी किये जाता हूँ ।''
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