गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

ये मुझे क्या हुआ ?



पंछी नये गीत गाने लगे
फूल बगिया को महकाने लगे
कैसे मेरे दिन लहराने लगे ?
ये मुझे क्या हुआ,
किस पवन ने छुआ ।
चाल मे नई बिजली सी भर गई
बालों में अनोखी महक भर गई
आखों में अजीब सी चमक भर गई
ये मुझे क्या हुआ,
किस पवन ने छुआ ।
चेहरे पे नये भाव छाने लगे
कैसे बदलाव मुझ मे आने लगे
अच्छे भी लगे और डराने लगे
ये मुझे क्या हुआ,
किस पवन ने छुआ ।
बिना कारण ही हंसी आने लगी
दर्पण देख देख मैं शरमाने लगी
सहेलियां भी मुझको सताने लगीं
ये मुझे क्या हुआ
किस पवन ने छुआ ।

24 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

अति सुन्दर और कोमल!

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

कविता के बहाने आपको पुराने दिन याद आ रहे हैं, अच्‍छा है। बढिया रचना, बधाई।

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

कविता मन को भाने लगे,
एक सुंदर भाव जगाने लगे,

सुंदर गीत..बधाई!!!

वाणी गीत ने कहा…

ये तुझे क्या हुआ ...
सुन्दर मधुर गीत ...!!

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत सुंदर रचना !!

mehek ने कहा…

किस पवन ने छुआ ।
चाल मे नई बिजली सी भर गई
बालों में अनोखी महक भर गई
आखों में अजीब सी चमक भर गई
ये मुझे क्या हुआ
khup surekh manmihak bhav,kuni khod kadhili,hrudayat majhya hulchul jhali.sunder

Unknown ने कहा…

वाह आशाजी वाह !

कैशोर्य की सीली सीली छुअन को जो और जैसी अभिव्यक्ति दी है आपने वह अद्भुत है..............

पंछी नये गीत गाने लगे
फूल बगिया को महकाने लगे
कैसे मेरे दिन लहराने लगे ?
ये मुझे क्या हुआ,
किस पवन ने छुआ ।

इस अवस्था को शब्द दे कर बयान करना इतना आसान नहीं है जितना कि देखने से प्रतीत होता है ..क्योंकि ज़रा सा भटकाव भी शब्दों के अर्थ को अनर्थ में तब्दील कर सकता है.........

चाल मे नई बिजली सी भर गई
बालों में अनोखी महक भर गई
आखों में अजीब सी चमक भर गई
ये मुझे क्या हुआ,
किस पवन ने छुआ ।

जब किसी चहेते का प्रथम स्पर्श मिलता है तो चाल में बिजली भरना और आँखों में चमक भरना सहज है...लेकिन बालों की महक उन उँगलियों के निशाँ की चुगली कर रही है जिन्हें महसूसते हुए आशिकों ने पूरी ज़िन्दगी नाशादियों में गुज़ार दी...........


चेहरे पे नये भाव छाने लगे
कैसे बदलाव मुझ मे आने लगे
अच्छे भी लगे और डराने लगे
ये मुझे क्या हुआ,
किस पवन ने छुआ ।

जब अरमां के पंख परवाज़ भरने लगते हैं तो नए परिन्दे डरते भी हैं ऊँचा उड़ने से...............बदलाव बदन का मन को भी बदल देता है और डर कभी कभी अच्छा भी लगने लगता है


बिना कारण ही हंसी आने लगी
दर्पण देख देख मैं शरमाने लगी
सहेलियां भी मुझको सताने लगीं
ये मुझे क्या हुआ
किस पवन ने छुआ ।

अकारण हँसी आना , दर्पण को देख कर शर्माना, इठलाना, लजाना और सहेलियों का सताना ...वाह !

पूरा चित्र साक्षात कर दियाँ आपने.....

अभिनन्दन आपका !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बिना कारण ही हंसी आने लगी
दर्पण देख देख मैं शरमाने लगी
सहेलियां भी मुझको सताने लगीं...

ahaaa! in panktiyon ne man moh liya.....

bahut sunder bhav ke saath bahut hi behtareen rachna.....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

पंछी नये गीत गाने लगे
फूल बगिया को महकाने लगे
कैसे मेरे दिन लहराने लगे ?
ये मुझे क्या हुआ,

अति सुन्दर !

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर रचना. कोंकण के पवन में ऐसा ही जादू है.

गौतम राजऋषि ने कहा…

मनमोहक गीत मैम!

प्रीत की पहले बयार की तस्वीर खिंचती हुई...

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लगी यह कविता ...भाव दिल को छु लेने वाले हैं ..

BAD FAITH ने कहा…

बिना कारण ही हंसी आने लगी
दर्पण देख देख मैं शरमाने लगी
सुन्दर मधुर

BAD FAITH ने कहा…

सुन्दर मधुर कविता.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.धन्य्वाद

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाहवा..... क्या बात है.... सुंदर रचना के लिये साधुवाद स्वीकारें..

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत सुन्दर।
कमाल है। लगता है किसी षोड़सी की लिखी कविता हो!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बहुत मृदुल भाव हैं आशा जी वाह
- लावण्या

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

waah..ek different mood :)

bahut hi jyada achhi hai ye kavita...just awsome mam :)

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बिना कारण ही हंसी आने लगी
दर्पण देख देख मैं शरमाने लगी
सहेलियां भी मुझको सताने लगीं
ये मुझे क्या हुआ
किस पवन ने छुआ ।

बहुत खूब....!!

शोभना चौरे ने कहा…

aashaji aapka ye bhav bhi bha gya .
aor jeevan me asha ka sanchar ho gya
abhar

सागर नाहर ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति!
यही कह सकूंगा क्यों कि अलबेला खत्री जी ने तो मेरे शब्द ही चुरा लिये।

रविंद्र "रवी" ने कहा…

बहुत हि सुंदर काव्य पंक्तीया है. पढते हि किसी सोलः वे साल मे कदम रख रही कोमलता का अहसास हो जाता है जिसे पंछी के गाने का एहसास, पावन के छुने का, आंखो मे चमक का अहसास होने लगता है.और दर्पण के सामने बिना कारण हसी आने लगती हो.

संजय भास्‍कर ने कहा…

कम शब्दों में बहुत सुन्दर कविता।