कैसा ये मौसम, प्यारा सा मौसम
बरफ की सफेद चादर चांदनी सी
ठंडी हवाएँ और आग गुनगुनी सी
ये साथ अपना और मन में रागिनी सी
सर्दियां है कितनी कितनी प्यारी सी । कैसा ये मौसम.......
दिन की नरम नरम धूप बावली सी
पल भर में हो जाती शाम सांवली सी
कंपकंपा जाती है देह सलोनी सी
ऐसे में कांगडी गर्म सुहानी सी । कैसा ये मौसम....
मिट्टी के प्याली में चाय सौंधी सी
आंच से तपते चेहरों पे ऱौशनी सी
चूल्हे में मक्के की रोटी फूलती सी
मन प्राणों में एक आग सुलगती सी । कैसा ये मौसम....
थोडा सुकून और थोडी शांती सी
सीमा पार से घुसपैठ थमती सी
बम और गोलियों में होती कमती सी
जिंदगी भी लगती थोडी थमती सी । कैसा ये मोसम.......
23 टिप्पणियां:
दिन की नरम नरम धूप बावली सी
पल भर में हो जाती शाम सांवली सी
कंपकंपा जाती है देह सलोनी सी
ऐसे में कांगडी की गर्माहट सुहानी सी....
sardi ka mousam....gunguni dhoop, barf ki safed chadar....thandi havaayen.....saath mein kam hoti goliyaan .... ye mousam kuch suhaani yaaden le kar aayega ... bahoot lajawaab likha hai ...
दिन की नरम नरम धूप बावली सी
पल भर में हो जाती शाम सांवली सी
कंपकंपा जाती है देह सलोनी सी
ऐसे में कांगडी की गर्माहट सुहानी सी ।
क्या शब्द चित्र अंकित किया है आपने तो
बेहतरीन और ----
'सीमा पार से घुसपैठ थमती सी' ओह ! काश ये मौसम हमेशा के लिए रह जाए.
दिन की नरम नरम धूप बावली सी
पल भर में हो जाती शाम सांवली सी
कंपकंपा जाती है देह सलोनी सी
ऐसे में कांगडी की गर्माहट सुहानी सी । कैसा ये मौसम....बहुत सुन्दर कुछ दिनों की अनुपस्थिति के लिये क्षमा चाहती हूँ शुभकामनायें
मौसम के बहाने अच्छी तुकबंन्दी ,बहुत बहुत आभार आशा जी
दिन की नरम नरम धूप बावली सी
पल भर में हो जाती शाम सांवली सी
कंपकंपा जाती है देह सलोनी सी
ऐसे में कांगडी की गर्माहट सुहानी सी!
इसे ऐसा कहा जाता सकता है कि मौसम चाहे कोई आये पर मौसमो के आने पर ऐसे ही खिलते रहेंगे मन के आंगन और यह ब्लोग!बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति !
सुन्दर मनोरम गीत!!
"मिट्टी के प्याली में चाय सौंधी सी
आंच से तपते चेहरों पे ऱौशनी सी
चूल्हे में मक्के की रोटी फूलती सी
मन प्राणों में एक आग सुलगती सी"
अहा!....खूबसूरत पंक्तियां, मैम!
आखिरी अंतरे पे चुप हूँ!
सुन्दर गीत ...मौसम के मिजाज ही आज कल बदल रहे हैं
थोडा सुकून और थोडी शांती सी
सीमा पार से घुसपैठ थमती सी
बम और गोलियों में होती कमती सी
जिंदगी भी लगती थोडी थमती सी । कैसा ये मोसम.......
बहुत खूब....!!
सभी अंतरे अपनी अपनी सुन्दरता बिखेर रहे हैं ...नर्म धुप....,कांगडी की गर्माहट....मिटटी की प्याली ...मक्की की रोटी वाह सभी का स्वाद भर दिया आपने ......!!
मिट्टी के प्याले मे सोन्धी सी चाय " तमाम असुरक्षा जीवन की अनिश्चितता के बीच यही स्वाद और सौन्दर्य तो ज़िन्दगी के प्रति आशा का संचार करता है ।
मिट्टी के प्याले मे सोन्धी सी चाय " तमाम असुरक्षा जीवन की अनिश्चितता के बीच यही स्वाद और सौन्दर्य तो ज़िन्दगी के प्रति आशा का संचार करता है ।
ye sondhi khushubooye hi to jeene ke liye prerit karti hai .
थोडा सुकून और थोडी शांती सी
सीमा पार से घुसपैठ थमती सी
बम और गोलियों में होती कमती सी
जिंदगी भी लगती थोडी थमती सी ।
bahut urjavan abhivykti .
aapki tippni mujhe bhi urja se otprot kar diya .
abhar
आशाताई,
मला त्या अम्रुता प्रितम च्या ब्लोग चे नाव किंवा लिंक द्या ना!!!
-अभि
बेहतरीन रचना.... साधुवाद स्वीकारें..
सुन्दर रचना मौसम का अहसास हो गया.
Deshprem ko jagati aapki rachna bahut achhi or sachhi lagi
Badhai
वाह!! रुकिये मुझे रजाई तो निकाल लेने दीजिए...
लेकिन अब मिट्टि के कुल्हड मे चाय कहा से लाऊ :P
... sundar rachanaa !!!
Upmaon ka achcha prayog.Sundar rachna ke liye badhai.
मिट्टी के प्याली में चाय सौंधी सी
आंच से तपते चेहरों पे ऱौशनी सी
चूल्हे में मक्के की रोटी फूलती सी
मन प्राणों में एक आग सुलगती सी । कैसा ये मौसम
gunguni dhoop si suhani rachana.ek alag mithas liye bahut sunder.
aasha ji
नमस्कार!
आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
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