आज हिंदु केलेंडर के हिसाब से इस ब्लॉग को एक बर्ष पूरा हुआ । पहली कविता भी राखी पर ही थी और उस पर उन्मुक्त जी की टिप्पणी पाकर बहुत खुशी हुई थी । पूरे साल आप सब ब्लॉग मित्रों का जो स्नेह मिला है उससे बहुत ज्यादा खुशी मिली है मुझे । यही स्नेह बनाके रखें.
भैया तुम राखी पे आते,
कितने बीते सावन हम तुम फिर दोहराते । भैया...
यादों के वे मधुर मधुर स्वर
अपनी अपनी आवाजों में उनको गाते
फिरभी हम कोई बडे गवैया नही कहाते ।भैया...
वो बचपन का छोटा आंगन
आंगन की छोटी फुलवारी
फुलवारी में शायद कुछ कुछ हम तुम बोते ।भैया..
खेल खेल में हँसना रोना
गुस्सा करना और मनाना.
कितने कितने हंगामें तो दिन में होते । भैया...
वो थाली वो दीपक रोली
वो राखी कुछ चमकी वाली
बांधती मैं और तुम जवरन रुपए रख देते ।भैया...
ऱाखी पर अब मिल नही पाते
पर यादों के कितने सोते
इस मनमे अक्सर कल कल कल
बहते रहते । भैया....
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आज का विचार
मुसीबत के हर पहाड के सामने कोई न कोई
चमत्कार जरूर होता है बस प्रयत्न पूरे होना चाहिये ।
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स्वास्थ्य सुझाव
दुबले पतले लोगों को वजन बढाने और स्वस्थ रहने के लिये
१ कटोरी अंजीर , १ कटोरी खूबानी, १ कटोरी बादाम और आधी कटोरी मिश्री
टुकडे कर के एक डिब्बे में रख लें दिन में ३ बार खाय़ें ।
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16 टिप्पणियां:
लो आगई राखी खूब याद कीजिए बीते सावन को।
एक बहना की पुकार।
राखी के साथ नारियल और मिठाई भी.थ्री इन वन।
बधाई जी ब्लॉग-वर्षगांठ पर और आज के पर्व की भी!
स्वास्थ्य सुझाव तो पतला होने का चाहिये!
ब्लॉग की और राखी की बहुत बहुत बधाई ..सुंदर कविता है यह राखी की
ऱाखी पर अब मिल नही पाते
पर यादों के कितने सोते
इस मनमे अक्सर कल कल कल
बहते रहते । भैया....
आपकी भावनाएँ जरूर भइया तक पहुँच गई होंगी। बधाई
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर। ब्लॉग की वर्षगांठ, 15 अगस्त और रक्षाबंधन की शुभकामनाएं।
Rahki par sundar kavita ke liye badhai. Pat chala ki aapke blog ka salgirah hai ..., to hamari Ashesh subhkamnaye.n sweekar kijiye.
Rahki par sundar kavita ke liye badhai. Pat chala ki aapke blog ka salgirah hai ..., to hamari Ashesh subhkamnaye.n sweekar kijiye.
राखी के साथ साथ ब्लॉग के जन्म दिवस की भी बहुत बहुत बधाई....
The 'Thought for the day' given by you is good one.And poem on rakhi is just amazing.
ब्लॊग की पहली साल गिरह आपको मुबारक हो.आप खूब खूब लिखें और हम आपको खूब खूब पढें,यही मनो कामना है.
रक्षा बन्धन के शुभ पर्व पर बहन को बधाई ! आज के दिन हिन्दुस्तान की तो बहुत याद आती होगी ?
पद्मा
hi
kafi achcha lga itne dino baad ek saaf suthari kavita padkar. jisme koi mirch msala nahi tha. ye kavita poori trah bhavnao se poori trah labrez thi.
rakesh kaushik
kavita par main apne vichaar to pehle hi vyakt kar chuka hun.
aapne mere blog par jo comment kiya hai uske liye dhanyavaad
hardik danyavaad
राखी पढ़कर अच्छा लगा... हालांकि मेरी कोई बहन नहीं है.... फिर भी हर साल राखी बंध ही जाती है... मुंहबोली बहनें कमी का अहसास नहीं होने देतीं... अब तो मेरी भतीजी की भी राखी मेरी कलाई पर ज़िम्मेदारी का अहसास कराती है... लेकिन पिछले दो सालों से घर से बाहर हूं... इस रक्षाबन्धन पर कोई राखी नहीं मिल पाई... (डाक विभाग या कुरियर ने मायूस किया) लेकिन आपकी कविता ने पुराने दिन याद दिला दिये... बगीचे मे बोये कुछ बीजों से उगे पौधों की छाया ने इसकी टीस कुछ कम की.... आपके प्रोत्साहन के इन्तज़ार में...
सत्येंद्र यादव "अकिंचन"
मेरे नए ब्लाग को शुभकामना के स्वार्थ में आपके ब्लाग की सालगिरह पर बधाई। आपकी आंखों से थोड़ी से टाइम में विदेश घूम आया। धन्यवाद। आपका पवन निशान्त
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