पात हरे,पातों के बीच रंगबिरंगे
फूल खिले चटखीले, लहरायें ज्यूं तिरंगे
फूल कुछ सफेद और हैं कुछ नारंगी
जैसे धरती माँ की चुनरी हो तिरंगी
ये तो धरा की छवि, और आसमाँ है नीला
और नीले आसमाँ पे सूरज कुछ पीला
पीले सूरज को ढकने आये कुछ बादल
कुठ ऊदे, कुछ सफेद, कुछ काले काजल
जगह जगह झंडे पताकाएँ फहराते
बच्चे कुछ शरमीले, कुछ गीत गाते
भारत माता का ये अर्चन करते हैं
और वीरों का उसके वंदन करते हैं
याद किये जाते हैं वीरों को अपने
जिन्होंने कभी देखे और सच किये सपने
करते हैं प्रतिज्ञाएं कि बनेंगे वीरवर
जियेंगे वतन के वास्ते मरेंगे तो वतन पर
देख कर ये जश्ने आजादी आँख भर आई
अपना देश तो अब सुरक्षित है भाई
फूल खिले चटखीले, लहरायें ज्यूं तिरंगे
फूल कुछ सफेद और हैं कुछ नारंगी
जैसे धरती माँ की चुनरी हो तिरंगी
ये तो धरा की छवि, और आसमाँ है नीला
और नीले आसमाँ पे सूरज कुछ पीला
पीले सूरज को ढकने आये कुछ बादल
कुठ ऊदे, कुछ सफेद, कुछ काले काजल
जगह जगह झंडे पताकाएँ फहराते
बच्चे कुछ शरमीले, कुछ गीत गाते
भारत माता का ये अर्चन करते हैं
और वीरों का उसके वंदन करते हैं
याद किये जाते हैं वीरों को अपने
जिन्होंने कभी देखे और सच किये सपने
करते हैं प्रतिज्ञाएं कि बनेंगे वीरवर
जियेंगे वतन के वास्ते मरेंगे तो वतन पर
देख कर ये जश्ने आजादी आँख भर आई
अपना देश तो अब सुरक्षित है भाई
14 टिप्पणियां:
वतन से दूर वतन की याद आपने की। बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद जी।
वतन से दूर रहने पर वतन की काफी याद आती है ,इसमें कोई संशय नहीं। बहqत अच्छी कविता।
आपको बहुत बहुत बधाई
कविता और भावः दोनों अच्छे लगे.
bahut sundar bhaav hain
देख कर ये जश्ने आजादी आँख भर आई
अपना देश तो अब सुरक्षित है भाई
--बहुत शानदार! बधाई.
बहुत अच्छा लगा
देशप्रेम पर ……
दूर विदेश मे देश की याद और आती है..आपकी भावभीनी कविता मे स्पष्ट है... बहुत प्यारी रचना
बहुत बहुत बहुत बहुत सुंदर!
Very good......
sach me bahut bhaavpurn likha hai aapne....
BAHUT BADHIYA KAVITA LAGI DESHPREM KE UPAR
आपकी कविता के भावों ने भावविभोर कर दिया। लेकिन अंतिम पंक्ति ने कई सवाल छोड़ दिए। सोचने पर मजबूर कर दिया क्या देश वाकई सुरक्षित है? मेरे हिसाब से पराधीनता से तो बहुत बेहतर हालात हैं लेकिन सुरक्षित नहीं। राष्ट्र की इस मुश्किल पर भी आपके कलम से कुछ पंक्तियां पढ़ने की इच्छा है। आशा जी से आशा पूरी होगी, ऐसी उम्मीद है।
bahut sundar likha hai aapne, lekin antim line se mai ittifaq nahi rakhta hu. aaj apna desh surakshit nahi hai .atankbad , algaobad se desh ka har kona jal raha hai. hamari ekta me darar dalne ki koshish ki ja rahi hai.sabhi rajneetik dal satta pane ya satta me bane rahne k liye aisi paristhitiyo ko apne tarah se istemal kar rahe hai, unse ladne k prayas nahi ho rahe hai.
Madhukarji aur Vishal ji aapki bat sahi hai par ham sabko apne apne star par algawwad ko mitane ke yatn karne honge apne ghar aur mohalle se shuru karna hoga Bharat ke karodon milkar ye kam bakhoobi kar sakte hain aap postcard bhej kar bhi ya e-mail bhej kar iska prasar kar sakte hain. nirash hokar baithane se to bat nahi banegi.
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