शनिवार, 19 जनवरी 2008

कभी नही सोचा था

कभी नही सोचा था
आँख से निकलेंगे आँसू ऐसे
गर्म पानी का कोई सोता हो जैसे
रुकने का नाम ही नही लेते हैं
बस बहते ही जाते हैं

कभी नही सोचा था
तुम दोगे मुझे इतना दर्द
ये रिश्ता हो जायेगा इतना सर्द
जिसमें थी कभी ऐसी गर्माहट
बिन देखे पहचानते ते आहट

कभी नही सोचा था
मै पड जाउंगी इतनी अकेली
तुम ही तो थे मेरे सखा सहेली
अब जो मुँह तुमने फेर लिया है
मुझे तनहाई ने घेर लिया है

कभी नही सोचा था
प्यार की बली चढेगी
विवाह की वेदी पर
आँखें बनेंगी बस
आँसुओं का घर
कभी नही सोचा था


आजका विचार

वैयक्तिकता को जो भी कुचले वह तानाशाह ही है ।

स्वास्थ्य सुझाव

झांईदार और मुहाँसे वाली त्वचा पर आलू के स्लाइस पर छाछ लगा कर हफ्ते में तीन बार मले ।

9 टिप्‍पणियां:

पूर्णिमा वर्मन ने कहा…

हमेशा की तरह बहुत सादा, बहुत सच, बहुत सुंदर

राजेश अग्रवाल ने कहा…

सहज सरल पंक्तियों में पीड़ा की अभिव्यक्ति, पहली बार आपके ब्लाग पर आया. अक्सर आऊंगा.
राजेश
www.cgreports.blogspot.com

sachin patil ने कहा…

व्वा... आशाताई..
कभी नही सोचा था
आँख से निकलेंगे आँसू ऐसे...
और..
अब जो मुँह तुमने फेर लिया है
मुझे तनहाई ने घेर लिया है

काफ़ी अच्छी जिदंगीसी जूडी सोच है..
उसे ही जिदंगी कहते है..
जो सोचा वो मिलता नही..
जो नही सोचा वो मिलता है..

-प्रा.सचिन दिनकर पाटील.

अजित वडनेरकर ने कहा…

सुंदर कविता । मराठी में बहुत दिनों से कोई कविता नहीं लिखी आपने।

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कविता ही रहे
भोगा हुआ यथार्थ न बने
किसी का भी
बैरी का भी नहीं
यही कामना है

पर पीर में ही
कविता का वास है
अच्छे विचारों का निवास है
पीर में भी धीर रहना चाहिये
दुख मिले तो भी सहना चाहिये

रंजू भाटिया ने कहा…

कभी नही सोचा था
मै पड जाउंगी इतनी अकेली
तुम ही तो थे मेरे सखा सहेली
अब जो मुँह तुमने फेर लिया है
मुझे तनहाई ने घेर लिया है

वाह बहुत सुंदर है यह पंक्तियाँ ..अच्छा लगा इस रचना को पढ़ना !!

राजीव तनेजा ने कहा…

जज़बातों को सरल शब्दों के जरिए उकेरना तो कोई आपसे सीखे......

मीनाक्षी ने कहा…

आशा जी , बहुत प्यारी रचना जो सीधे दिल में उतर गई.. दर्द जब दिल में उतरता है तो आँसू गर्म पानी का सोता बन कर बह निकलते हैं..

पारुल "पुखराज" ने कहा…

सुंदर ,सरल पंक्तियाँ ....