रविवार, 23 दिसंबर 2007

कहीं तुमने तो नही याद किया

आज किस कदर अनमनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

यूँही बिखरी लटें सवाँर रही
कभी चेहेरे को ही निहार रही
और जब किसी ने पूछा तो
बात को हँसी में टाल रही
किस लिये यूँ बनी ठनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

गीत के बोल गुनगुनाती हूँ
गाती हूँ खुद को ही सुनाती हूँ
और जरा किसी आहट पे
मुस्कुरा कर के चुप लगाती हूँ
आज क्यूँ साँझ रागिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

आँखों को बंद करके रहती हूँ
जाने क्यूँ खुद से बात करती हूँ
कभी नाराज़ कभी खुश होती
कभी फिरसे उदास रहती हूँ
किसलिये यूँ विरहिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

आज का विचार

किसी और के समय को सुंदर बनाना समय का सच्चा सदुपयोग है ।

स्वास्थ्य सुझाव

बंद नाक खोलने के लिये नाक के बाहर ऊपर से नीचे
देसी घी मलें ।

10 टिप्‍पणियां:

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

आपने भावनाओं को काफी गहरे तक छूकर, गीत को जीवंत कर दिया है। बहुत अच्छा लग रहा है।

रंजू भाटिया ने कहा…

गीत के बोल गुनगुनाती हूँ
गाती हूँ खुद को ही सुनाती हूँ
और जरा किसी आहट पे
मुस्कुरा कर के चुप लगाती हूँ
आज क्यूँ साँझ रागिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।

बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ...आशा जी ...

Keerti Vaidya ने कहा…

Asha ji..dil ko chu liya apney...

प्रशांत ने कहा…

सुंदर कविता |
"और जब किसी ने पूछा तो
बात को हँसी में टाल रही"
लाजवाब!
-प्रशांत

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना है।

मीनाक्षी ने कहा…

भाव भीनी किसी की याद में डूबी खूबसूरत रचना...

singh ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति
vikram

बेनामी ने कहा…

dil ke aar par jhali ye kavita,dil ko chu gayi,man ko bha gaye,kahi mere man ki baat apko kaise pata lagi,so sweetttttttt.

Asha Joglekar ने कहा…

महक जी बस जान ली आपके दिल की बात टेलीपेथी से । सराहना के लिये बहुत धन्यवाद

वाचस्पतीजी, रंजूजी,कीर्ती जी, प्रशांतजी, संजीतजी,बालीजी, मीनाक्षीजी,और सिंग साहव बहुत धन्यवीद आप सब का ।