आज किस कदर अनमनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।
यूँही बिखरी लटें सवाँर रही
कभी चेहेरे को ही निहार रही
और जब किसी ने पूछा तो
बात को हँसी में टाल रही
किस लिये यूँ बनी ठनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।
गीत के बोल गुनगुनाती हूँ
गाती हूँ खुद को ही सुनाती हूँ
और जरा किसी आहट पे
मुस्कुरा कर के चुप लगाती हूँ
आज क्यूँ साँझ रागिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।
आँखों को बंद करके रहती हूँ
जाने क्यूँ खुद से बात करती हूँ
कभी नाराज़ कभी खुश होती
कभी फिरसे उदास रहती हूँ
किसलिये यूँ विरहिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।
आज का विचार
किसी और के समय को सुंदर बनाना समय का सच्चा सदुपयोग है ।
स्वास्थ्य सुझाव
बंद नाक खोलने के लिये नाक के बाहर ऊपर से नीचे
देसी घी मलें ।
10 टिप्पणियां:
आपने भावनाओं को काफी गहरे तक छूकर, गीत को जीवंत कर दिया है। बहुत अच्छा लग रहा है।
गीत के बोल गुनगुनाती हूँ
गाती हूँ खुद को ही सुनाती हूँ
और जरा किसी आहट पे
मुस्कुरा कर के चुप लगाती हूँ
आज क्यूँ साँझ रागिनी हूँ मै
कहीं तुमने तो नही याद किया ।
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने ...आशा जी ...
Asha ji..dil ko chu liya apney...
सुंदर कविता |
"और जब किसी ने पूछा तो
बात को हँसी में टाल रही"
लाजवाब!
-प्रशांत
सुंदर
बहुत सुन्दर रचना है।
भाव भीनी किसी की याद में डूबी खूबसूरत रचना...
सुन्दर अभिव्यक्ति
vikram
dil ke aar par jhali ye kavita,dil ko chu gayi,man ko bha gaye,kahi mere man ki baat apko kaise pata lagi,so sweetttttttt.
महक जी बस जान ली आपके दिल की बात टेलीपेथी से । सराहना के लिये बहुत धन्यवाद
वाचस्पतीजी, रंजूजी,कीर्ती जी, प्रशांतजी, संजीतजी,बालीजी, मीनाक्षीजी,और सिंग साहव बहुत धन्यवीद आप सब का ।
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