बुधवार, 21 नवंबर 2007

यात्रा ए हवाई ४

यात्रा ए हवाई अब तक
हवाई जाने का प्लान बनते ही हम खुश हो गये । हम दोनो बॉस्टन से और सुहास और विजय वॉशिंगटन से Los Angeles (एल ए ) पहुंचे । वहीं से हमे होनोलूलू (हवाइ की राजधानी) के लिये उडान लेनी थी । Los Angeles (एल ए ) में विजय के भाई तथा भाभी के साथ हॉलीवुडमे यूनिवर्सल स्टुडिओ देखा जहां फिल्मों की शूटिंग की जाती है । हवाइयन द्वीप समूह में वैसे तो छोटे बडे कोई १०७ द्वीप हैं पर केवल ६ ही बसे हुए है । हम कवाई में ही पूरा हप्ता रहने वाले थे । तो दूसरे दिन सुबह ९ बजे हमने एयर ट्रान की उडान ली और पहुंच गये होनोलूलू । वहाँ से फिर आलोहा एयर से आधे घंटे में कवाइ पहुंच गये । वहाँ पहुंच कर हमने एक सुबरू कार किराये पर ली । कवाई के खूबसूरती का आनंद उठाते हुए हम कार से हनलाई बे रिसॉर्ट की और चल पडे जहां हमे एक हफ्ते के लिये टाइम शेयर का अपार्टमेन्ट मिला था । (सुहास के बेटे अजय को सौजन्य से ) दूसरे दिन गये हनलाई बीच और पक्षी अभयोद्यान वहाँ खूब मजे किये । तीसरे दिन फार्मर्स मार्केट गये और हदाई के फल और सब्जियाँ खरीदीं । चौथे दिन हमें जाना था हिंदु मोनॅस्ट्री और वायमिया केनियॉन्स । हिंदु मोनेस्ट्री में कोई २५० विद्यार्थी हिंदु ध्रर्म की दीक्षा ले रहे हैं । ये एक शिव मंदिर है । यहां मुख्य मू्र्ती स्फटिक का शिवलिंग है । और नटराज की भी बहुतसी मूर्तीयाँ हैं । और आस पास का परिसर तो बहुत ही सुंदर है ।विभिन्न प्रकार के पेड पौधों से सजा हुआ । वायमियावासमिया केनियॉन्स कवाई के पश्चिम में हैं। येहैं बडी बडी खाइयाँ और पहाड , . यो दस मील तक फैली हुई हैं और बहुत ही भव्य
हैं । इन सब सुंदर जगहों से आँखों को तृप्त कर हम थोडी देर समंदर के किनारे बैठे सी पॉन्ड बीच पर और वापिस ठिकाना पास किया ।
अब आगे.........


आज था गुरुवार और आज हमें हवाइयन पार्टी में जाना था जिसे हवाइयन भाषा में लुआउ कहते हैं । हवाई में जो यहाँ के रईस परिवार हैं, वे ये डिनर कम मनोरंजन पार्टियाँ आयोजित करते हैं । यही इनका कमाई का जरिया है । क्यूं कि टिकिट खरीद कर ही इस पार्टी में आप शामिल हो सकते हैं ।
इनके पास बडे बडे बागीचे हैं और शानदार घर हैं और बडे बडे परिवार भी । एक परिवार में कम से कम ५० सदस्य होते हैं चार पाँच पीढीयाँ तो आराम से होती है। और परिवार के ही लोग स्वागत से लेकर मनोरंजन तक का भार सम्हालते हैं, जिसमें खाना बनाना, सजाना, आवभगत करना, मनोरंजन कार्यक्रम करना सब आता है। इस तरह का परिवार देखकर और इन्हें यूँ मिलजुल कर ये एकदम अभिनव बिजनेस करते देखकर बडा अच्छा लगा ।

हम जिस परिवार की पार्टी में गये थे ये था स्मिथ परिवार इनके पर-दादा मिस्टर स्मिथ
जो कि ब्रिटिश मूल के थे, कोई ८० साल पहले कवाई में आये और यहीं के हो गये । शादी भी हवाइयन लडकी से की और इन्ही दोनों का ये परिवार है । । ज्यादा तर सदस्य शक्ल से हवाइयन ही लगते हैं ।
इस परिवार में ये काम इनके दादाजी ने शुरू किया
हमें इस पार्टी के लिये साढेचार बजे पहुँचना था । तो हम ने चार बजे तक अपने और काम निबटाये जैसे सामान खरीदना, लॉंड्री करना, सोना इत्यादि । और चार बजे निकल पडे। ये स्मिथ इस्टेट वाइलुआ नामक नदी के पास है । कोई ३० एकड में फैला हुआ तो बागीचा ही है ।

ठीक साढेचार बजे हम वहाँ पहुंच गये । और लाइन में लग कर टिकिट ले लिया । टिकिट लेकर फिर स्वागत की लाइन में खडे हुए पर जैसे ही हमारी बारी आई बडे प्रेम से मुस्कुराकर हमें शंखों की माला पहनाई गई जिसको लेई कहते हैं (लेई यानि माला या हार बडे खूबसूरत ऑरकिड्स की भी लेई बनाई जाती है ) ) । , और आलोहा कह कर हमारा स्वागत किया गया । उसके बाद हवाइयन सुंदरियोंसुदरियों के साथ हमारी फोटो खींची गई । य़े सुंदरियाँ अपने पारंपरिक पोशाक में थीं (चित्र SlideShow देखे ) । वहाँ से आगे हमें ट्राम के लिये लाइन में लगना था । य़ह ट्राम ही हमें बागीचे की सैर कराने वाली थी । एक वक्त में इसमे कोई २०-२५ लोग बैठ सकते है । तो शुरू हो गई हमारी बागीचे की सैर । दुनिया भर से लाये हुए पेड पौधे इस बागीचे में देखे जा सकते हैं । चंपा, चमेली, मोगरा, जास्वंदी, सोन चंपा (मेग्नोलिया) , बोगनबेलिया, बर्ड ऑफ पेराडाइज, पपीता, अननास, कटहल, अवोकेडो,आम, इमली, तरह तरह के पाम (ताड वृक्ष) और किस्म किस्म के पक्षी । तरह तरह की का बत्तखें , कबूतर, तीतर, काकाकुवा और मोर भी । मोर के छोटे छोटे चूजे भी देखे जो मोर की तरह सुंदर रंगों वाले नही होते बल्कि थोडे भूरे मटमैले रंग के होते हैं । हवाई में तितलियाँ नही होतीं, दूसरे जमीनों से इतनी दूर का सफर तय कर पाना उनके लिये असंभव होता है । यहाँ एक जापानीज गार्डन भी था, छोटे छोटे तरतीब से कटे हुए पेड जिनकाडिनका छत्रीनुमा आकार बडा हीङी मोहक था। वहीं हमे मिले दो बतख जो कि कुछ खाना पाने की आस में हमारे पास पास आते ही जा रहे थे और मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि मेरे पास उन्हे देने के लिये कुछ भी नही था। और फिर देखे मोर इतने सारे कि दिल खुश होगया । इनके खूब सारे फोटे खींचे । आप भी चित्र SlideShow देखिये ।

ये सब करते करते काफी समय गुज़र गया, अब सब लोग इकटठा होकर इमू समारोह का इंतजार कर रहे थे । इमू एक जमीन के अंदर की भट्टी को कहते हैं । इसमें हवाईयन लोग सुअर का मांस पकाते हैं (चित्र SlideShow देखे ) । आग इस भट्टी के ऊपर सुलगती है । मै तो विशुद्द शाकाहारी और हम में से जो मांसाहारी भी थे उन्होने सु्अर तो कभी नही खाया था और न ही ऐसी कोई ख्वाहिश थी । पर वो पूरी प्रक्रिया देखने के बाद लगा कि अन्न को पूर्ण ब्रह्म यूं ही नही कहा गया । तो सू्अर तो पक गया था, इस इमू समारोह में उस भट्टी को खोल कर उसे निकाला भर जाना था ।
इतने में हमने देखा कि दो पंडानुमा व्यक्ती वहाँ आये गेरुए रंग की लुंगी पहने । उनके हाथों मे बडा सा शंख था । बडे श्रध्दा से उस शंख को बजाया गया तीन बार और फिर शुरू हुई भट्टी खोदने की प्रक्रिया । उन्ही दो लोगों ने फिर कुदाल लेकर भट्टी को खोदा ऊपरी मिट्टी की कोई ६ इंच मोटी परत हटा कर सफेद चादर निकालीं गईं इस दौरान सारा धुआँ धुआँ या भाप भाप हो रहा था । चादर के हटते ही दिखीं कुछ लकडियाँ जिन्हे हटाने पर उनके नीचे एक स्टेनलेस स्टील के बडे से ट्रे में केले के पत्तों में लिपटा हुआ सुअर का माँस जो कि साफ किया हुआ था । और उसी ट्रे पर एक बडे़ से स्टील के पतीले में पानी था जो काफी़ गरम लग रहा था। जाहिर है कि पकाने की क्रिया भाप से हुई होगी । उस ट्रे को फिर वहाँ से डायनिंग हॉल में ले जाया गया । (चित्र SlideShow देखे )

अब खाने के लिये चलने की घोषणा हो चुकी थी तो हम सब चल पडे । सुंदरसुदर सजे हुए टेबलों पर फूल रखे हुए थे । हमने एक टेबल चुना और हम चारों बैठ गये । बार बार घोषणाएँ की जा रही थी कि मधुशाला खुली है, सबके लिये, आओ और जिसे जो चाहिये लेकर पीओ ,माईताई (एक हवाइयन किस्मकिसम का मद्य ) , बीअर, वाइन, हवाइयन पंच (फलों का मिलाजुला रस) सब है यहाँ । मैने और सुहास ने हवाइयन पंच लिया और विजय और सुरेश ने माईताई । थोडी देर के बाद डिनर अनाउन्स हुआ और हम खाने के टेबल पर गये इतने विभिन्न प्रकार के व्यंजन थे । पर जैसे लोग अपनी जडों को छोडना नही चाहते वैसे ही जिस पदार्थ का यहाँ महत्व था और जिसे चखने का बारबार अनुरोध किया जा रहा था वह था पोई यह शकर कंद को उबाल कर घोंट कर बनाया जाता है और जितनी श्रध्दा से इसे खाया जाता है वह देखते ही बनता है । यह शायद वह खाना हो जिसे खाकर इन लोगों ने अपने शुरू के दिन निकाले हों । बहर हाल स्वाद मे तो कुछ खास नही लगा । पर और खाना बहुत था । तरह तरह के सलाद, फल, ब्रेड (इतनी नरम) छोंकी हुई बीन्स , तरह तरह के केक, आइसक्रीम, मश्रूम और बहुतसे मांस के पदार्थ (चिकन, क्रेब, झींगे और यहाँ की प्रसिध्द मछली माही माही)। खाना लेकर हम अपने टेबल पर आये और सामने स्टेज पर स्मिथ परिवार के सदस्य रंगारंग कार्यक्रम पेश कर रहे थे (डान्स और गाने) (उपरोक्त संदर्भ मे--व्हीडिओ देखे )। और कुछ सदस्य हमारे टेबल पर आ कर और खाना लेने का अनुरोध कर रहे थे । बिलकुल भारत की याद आ गयी ।



बढिया डिनर तथा कॉफी के बाद प्रोफेशनल्स द्वारा डान्स का कार्यक्रम था , जिसके लिये हमें पास ही एक थियेटर में जाना था । तो गये और सीट पर बैठे । ये ओपन एयर थियेटर था । परदा तो था नही तो पहले बिलकुल अंधेरा कर दिया गया और जैसे ही नर्तक, नर्तिकाएँ स्टेज पर आते तो फ्लड लाइटस् उनके ऊपर फेंकी जाती । शुरू में हवाईयन नृत्य हुआ फिर ताहिती इस नृत्य द्वारा बताया गया कि कैसे यहाँ के मूल निवासी ताहिती से यहाँ आये । ये अपने आपको अग्नि पुत्र मानते है । शायद इसका इन द्वीपों पर जीवंत ज्वालामुखी होने का कोई संबंध हो । तो इस नृत्य द्वारा ये कहानी बताई गई कि कैसे अग्नि देवता ने इन्हे ताहिती से हवाई द्वीपों में जाने का आदेश दिया और कैसे ये यहाँ आकर बस गये । इसके बाद युध्द नृत्य हुआ जिसमें खूब जोर से नगाडे बजा कर नाच हुआ । इसके उपरान्त चीन व जापान के नृत्य हुए (चित्र) । तब तक ९:३० बज गये थे और बारिश भी होने लगी थी इसलिये बडी अनिच्छा से हम कार की और रवाना हुए । नई जगह रात का वक्त इसलिये सुहास को थोडी टेन्शन हो चली थी। पर बहुत मजा आया इस लूआउ में । (क्रमश:)

4 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत अच्छा लग रहा है विविध प्रकार के यात्रा अनुभवों को पढ़ना। और जो मुख्य चीज आकर्षित कर रही है - वह है यात्रा में पैशन जो हर क्रिया/प्रक्रिया में रसासिक्त टपकता दीख रहा है।

Batangad ने कहा…

यात्राए हवाई 3-4 मैंने पढ़ा। मजा आ गया। हवाई देखने की इच्छा बलवती हो रही है। शिव मंदिर देखकर और हवाई पार्टी वहां का संयुक्त परिवार आयोजित करता है। इससे बहुत आनंद मिला। और, ये परिवारों का संयुक्त रहना ही इनकी कमाई है ये सुखद आश्चर्य है। भारतीय परिवारों के लिए ये बड़ी सीख हो सकती है।

रंजू भाटिया ने कहा…

आपकी हर यात्रा रोचक से रोचक होती जा रही है और दिल में मेरे घूमने की इच्छा बढ़ती जा रही है
जिस तरह आप इन यात्रा का वर्णन कर रही है वह बहुत सुद्नर है ..बहुत बहुत शुक्रिया आपका इस को हमारे साथ शेयर करने के लिए !!

Asha Joglekar ने कहा…

मेरा उत्साह बढाने के लिये धन्यवाद । आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है । एसे ही
इस ब्लॉग पर अपनी कृपा बनाये रखिये।