नया दिवस
झरती, नभ से धरती पर
उसमें फिर दिखने लगते हैं
रजकण औ उत्तुंग शिखर।
सुखद अनुभूति लगे व्यापने
शरीर और मन के अंदर,
हलका हलका सा धुंधलका
सरकने लगता ज्यूँ चादर।
फिर छाने लगती ऊषा की
लज्जा नभ की छाती पर
लाल सुनहरी भोर छमाछम
आती आंगन के अंदर
इक नये दिवस का उदय
हो जाता इस धरती पर।
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