सोमवार, 26 जनवरी 2015

आस हरियाली रहे



आसमाँ पे जो हुकूमत बाज़ और गिध्दों की हो,
शान्ति के नन्हे परिंदे बोलो फिर जायें कहाँ।

आस पे ही अब तलक जिंदा रहे थे हम सनम,
तुम जो ना आने की ठानों, बोलो तब जाये कहाँ।

स्कूलों में महफूज़ हैं बच्चे यही सोचा किये,
वहीं गोली चलने लगे तो बच्चे फिर जायें कहाँ।

जिंदगी का आजकल कोई भरोसा ना रहा,
सुबह का निकला न लौटे शाम, तब जाये कहाँ।

अच्छे दिन अब आ रहे हैं कितना तो सुनते रहे,
जाने कहाँ वो छुप रहे हैं उनको हम पाये कहाँ।

गणतंत्र बनने का जशन हर साल मनता है यहाँ
जन के लिये जो तंत्र है, उसको हम जानें कहाँ।

आस पर कायम है दुनिया इसको दें ना टूटने,
आस हरयाली रहे, आबाद सपनों का जहाँ।



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