खुल रही है एक नई किताब जिसका हर सफा है
कोरा,
लिखना है हमें ही इसमें हर दिन का हिसाब
हमारा।
कितनी की मक्कारियाँ कितने बोले झूठ
कितनों को लगाया चूना, किस पेड को बनाया
ठूँठ।
कितनी फैलायी गंदगी नजरें सबकी बचाके,
कितने तोडे वादे, झूटे बहाने बनाके
कितना किया अपमान सज्जनों का
कितना निभाया साथ दुर्जनों का
क्या यही सब लिखना है इसमें,
और अंत में रोना पडेगा
या कि फिर हम चुनेंगे इक नई राह
जिस पर चल कर सुख मिलेगा।
इस राह पर मुश्किलें तो होंगी पर
पर दिवस का अंत सुखमय होगा
मनमें जगेगा विश्वास,
कर्तव्य पूर्ती का निश्वास होगा।
हम लायेंगे हँसी कई चेहरों पर,
पोछेंगे आंसू कई आँखों से
हम करेंगे मेहनत ताकि आगे बढें
और हमारे साथ सब आयें।
ले जायेंगे देश को खुशहाली के रास्ते पर
कदम दर कदम
साथ साथ चलेंगे आगे बढेंगे सभी हम।
पर इसका चुनाव करना है खुद हमें,
ताकि किताब का अंत हो सुखद
और हम फिर सबसे सच्चे दिल से कहें
शुभ नव वर्ष।
सारे ब्लॉगर भाई बहनों को नववर्ष की हार्दिक बधाई।
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