शुक्रवार, 23 मई 2014

खामोशी



















डूबना चाहती हूँ मै खामोशी के इस तालाब में
नही अच्छी लगती हैं ये आवाजें
रेलो की, हवाई जहाज़ों की, मशीनों की, ट्रक और कारों की
आदमियों की भी नही। झूटे मेकअप में सजी झूटी बातें।

बारिशों, आंधियों, तूफानों, बिजलियों की भी नही, गुनगुन, चिकमिक,
पत्तों की सरसराहट भी नही।
अपने अंदर सिमटना चाहती हूँ मै, बे-आवाज़।
हवा जो सरसराती है त्वचा पर वही ठीक है।

लेकिन बाहरी खामोशी जगा देती है भीतरी कोलाहल
इसका क्या करूँ?
आवाजें क्रोध की, अपूर्ण इच्छाओं की, अहंकार की
मत्सर की, मोह की, इनसे कैसे पीछा छुडाऊँ?
मै स्तब्ध हूँ, आँखें बंद। एक आवाज आती है, फिर से आवाज़.........
पर इस बार एकदम अंतस से, गंभीर
शायद इन सब आवाज़ों की औषधी।
S गं गणपतये नमः
S गं गणपतये नमः
S गं गणपतये नमः

और शांत हो जाती हैं बाकी आवाज़ों की तरंगे।


चित्र गूगल से साभार।

9 टिप्‍पणियां:

Alpana Verma ने कहा…

सच!अपने इष्ट के स्मरण से सब कोलाहल शांत हो जाते हैं ..जब भी उलझने हों तो वही काम आता है.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

ईश्वर का स्मरण मन को सच में शांति देता है .....

Vaanbhatt ने कहा…

शांत मन में ही ख़ामोशी वास करती है...मन्त्र इसे शांत करने के ही उपाय हैं...अति सुन्दर...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

इश्वर के करीब जाने से सब कुछ दूर होने लगता है .. रह जाता है तो बस परमानंद ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बाहर के समस्त शोर को अपने अन्दर समेटना और अपनी अंतर्यात्रा आरम्भ करना. यही यात्रा हमें परमात्मा से मिला देती है जहाम एक असीम शांति है, अपना अस्तित्व और परमात्मा के अस्तित्व में कोई भेद नहीं. एकाकार होना.. एक अद्वैत की स्थिति!!

वाणी गीत ने कहा…

आँख बंद कर ईष्ट को याद करना बाहर और भीतर के शोर को शांत कर देता है !

Parmeshwari Choudhary ने कहा…

सुन्दर वृतांत। बांसुरी वादन बहुत मधुर है :)

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

ओSम गं गणपतये नमः
ओSम गं गणपतये नमः

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

ईश्वर का स्मरण मन के कोलाहल को शांति प्रदान करता है । सुन्दर आत्माभिव्यक्ति ।