गुरुवार, 15 मई 2014

छोटी बातों में
























छोटी बातों में बडा दम है,
बडों के पास बडा अहम है।

हमने कब किसीसे होड करी
जो है हम पे वो भी क्या कम है।

सवाल तो बस टिके रहने का है
चमकार तो केवल भरम है।

रूप पे इतना दंभ क्यू गोरी
माना के अभी तेरा परचम है।

सूरतें तो बदल ही जाती हैं
इल्मो-सीरत का हम पे भी करम है।

इन्सां की शक्ल भेडिये का दिल
जो दिखाये न रब वही कम है।

जिस जनता की करनी है सेवा
लूटते उसी को बन के हमदम हैं।

अब जो भी आयेंगे आगे
देखते हैं सख्त या नरम हैं

मैं भी क्या करूं न कैसे लिखूं,
मेरे पास भी तो कलम है.



चित्र गूगल से साभार।

13 टिप्‍पणियां:

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सही कहा आपने ..जीवन में जितने प्रकार की दुश्वारियाँ देखने को मिलती है उसे देखकर यही लगता है कि यह बुरा है क्या. और कलम का साथ हो तो जीवन में आनंद ही आनंद ही. सुन्दर रचना.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

आजकल समाज में ऐसे ही प्राणियों की बहुतायत है... हम न बदलें उनके साथ यही हमारी कोशिश होनी चाहिये. और समाज को बदल कर, आने वाली नस्ल को एक बेहतर समाज दे सकें तो जीवन सफल माना जाएगा.
वैसे मेरा तो हमेशा से यही मानना रहा है कि
आपसे झुक के जो मिलता होगा,
उसका क़द आपसे ऊँचा होगा!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर रचना ।

Vaanbhatt ने कहा…

बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 18/05/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना |

Sadhana Vaid ने कहा…

बहुत बढ़िया ! आपके पास जो कलम है वह कोई साधारण कलम नहीं है ! बहुत ही सशक्त, समर्थ एवम धारदार है ! सुंदर रचना ! शुभकामनाये !

कविता रावत ने कहा…

अब जो भी आयेंगे आगे
देखते हैं सख्त या नरम हैं
मैं भी क्या करूं न कैसे लिखूं,
मेरे पास भी तो कलम है.

नि:संदेह कलम में बहुत दम है
सुन्दर

SKT ने कहा…

सही कहा आप ने.… कलम है तो एक जिम्मेदारी है, तड़प है, मजबूरी है! प्राण कलम में बसते हैं, सो लिखना तो है ही!!

Vinay ने कहा…

बहुत प्यारी रचना है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

वाह .. कितनी सटीक बातें कहीं हैं इस ग़ज़ल में ... हर शेर पे दाद निकलती है ...

डॉ. जेन्नी शबनम ने कहा…

हर शेर बहुत उम्दा, बधाई.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बढ़िया ग़ज़ल । जो हमारे पास है वो बिलकुल कम नहीं है ।