डूबना चाहती हूँ मै खामोशी के इस तालाब में
नही अच्छी लगती हैं ये आवाजें
रेलो की, हवाई जहाज़ों की, मशीनों की, ट्रक और कारों की
आदमियों की भी नही। झूटे मेकअप में सजी झूटी बातें।
बारिशों, आंधियों, तूफानों, बिजलियों की भी नही, गुनगुन, चिकमिक,
पत्तों की सरसराहट भी नही।
अपने अंदर सिमटना चाहती हूँ मै, बे-आवाज़।
हवा जो सरसराती है त्वचा पर वही ठीक है।
लेकिन बाहरी खामोशी जगा देती है भीतरी कोलाहल
इसका क्या करूँ?
आवाजें क्रोध की, अपूर्ण इच्छाओं की, अहंकार की
मत्सर की, मोह की, इनसे कैसे पीछा छुडाऊँ?
मै स्तब्ध हूँ, आँखें बंद। एक आवाज आती है, फिर से आवाज़.........
पर इस बार एकदम अंतस से, गंभीर
शायद इन सब आवाज़ों की औषधी।
ओSम गं गणपतये नमः
ओSम गं गणपतये नमः
ओSम गं गणपतये नमः
और शांत हो जाती हैं बाकी आवाज़ों की तरंगे।
चित्र गूगल से साभार।
चित्र गूगल से साभार।
9 टिप्पणियां:
सच!अपने इष्ट के स्मरण से सब कोलाहल शांत हो जाते हैं ..जब भी उलझने हों तो वही काम आता है.
ईश्वर का स्मरण मन को सच में शांति देता है .....
शांत मन में ही ख़ामोशी वास करती है...मन्त्र इसे शांत करने के ही उपाय हैं...अति सुन्दर...
इश्वर के करीब जाने से सब कुछ दूर होने लगता है .. रह जाता है तो बस परमानंद ...
बाहर के समस्त शोर को अपने अन्दर समेटना और अपनी अंतर्यात्रा आरम्भ करना. यही यात्रा हमें परमात्मा से मिला देती है जहाम एक असीम शांति है, अपना अस्तित्व और परमात्मा के अस्तित्व में कोई भेद नहीं. एकाकार होना.. एक अद्वैत की स्थिति!!
आँख बंद कर ईष्ट को याद करना बाहर और भीतर के शोर को शांत कर देता है !
सुन्दर वृतांत। बांसुरी वादन बहुत मधुर है :)
ओSम गं गणपतये नमः
ओSम गं गणपतये नमः
ईश्वर का स्मरण मन के कोलाहल को शांति प्रदान करता है । सुन्दर आत्माभिव्यक्ति ।
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