शिव ने बिखरा दी हैं जटायें
आंख तीसरी खोली है
माथे पर गंगा है उबलती
पांवों में बांधी बिजली है
अब ये नहीं हैं रुकने वाले
जाग जरा तू, ए मानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।
घर,मैदान खेत और बगिया
जंगल बस्ती सब जलमय
इसको ही शायद कहते हैं
गीता और पुराण प्रलय
सब इसके कोप भाजन हैं
कैसा मच रहा विप्लव
देख कैसे हो रहा तांडव ।
ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।
सम्हल जा ये तो है शुरुवात
ध्यान में रखले अब ये बात
जन सुरक्षा और जन जीवन
प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव ।
21 टिप्पणियां:
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव ।
अब हमे जागना ही होगा ....
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ....
ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।
यही है सारभूत बात
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (23-06-2013) के चर्चा मंच -1285 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ
आपकी यह रचना कल रविवार (23 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
सुन्दर भाव. इसमें कोई शक नहीं की प्रकृति का जिस तरह दोहन किया जा रहा है, उसको दुष्परिणाम भी हमे ही उठाने होंगे.
प्राकृतिक विपदा के मूल कारणों का विश्लेशन करती कविता। मनुष्य द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेपों का नतिजा केदारनाथ घटना है। इंसान स्वार्थ में डूब चुका है, वह रूकेगा नहीं चाहे कितनी भी तबाही हो। प्रकृति ही विध्वंस कर उसे रोक सकती है। भविष्य में ऐसी विपदाएं बार-बार आएगी।
सार्थक सन्देश देती रचना
नमस्कार
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (24-06-2013) के :चर्चा मंच 1285 पर ,अपनी प्रतिक्रिया के लिए पधारें
अतिक्रमण ही इस सबकी वजह है .... सुंदर प्रस्तुति
ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का ...
सटीक और सच ... चाहे तीखा कहा है ... इंसानी भूख इतनी ज्यादा हो गई है की किसी बात को देखती नहीं ... फिर ऐसे में भोले बाबा अपना रूप दिखाने को मजबूर हो जाते हैं ...
प्रलयमान है प्रकृति अवस्था,
हम अब किसका आश्रय धारें।
सचेत करती ..प्रभावी प्रस्तुति ....
सार्थक रचना ...
"ये परिणाम है अति दोहन का..."
- काश ,अब भी समझ में आ जाय !
ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।---
त्रासदी का कारण को रेखांकित करती सुन्दर रचना
latest post जिज्ञासा ! जिज्ञासा !! जिज्ञासा !!!
इसको ही शायद कहते हैं
गीता और पुराण प्रलय
---सही कहा ..क्या बात है ..
अगर प्रलय से बचना चाहें
तो प्रकृति का आश्रय धारें |
कृत्रिमता छोड़ें जीवन में,
प्रकृति को भी यथा सुधारें |
दो माह से धनबाद में नहीं था-
अब नियमित हुआ हूँ-
आभार दीदी-
शिव के तांडव का परिणाम तो हम सभी ने देख लिया अब शांति रहे यही प्रार्थना है.
सुंदर सामायिक प्रस्तुति.
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का ...
सटीक और सच .
जन सुरक्षा और जन जीवन
प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव ।
....काश हम यह समझ सकें...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव।
...सार्थक संदेश।
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना ....!!!
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