मंगलवार, 2 जुलाई 2013

जगरात



आओ जगरात करें
कोई तो बात करें
हाथ ले हाथ, करें
बैठ के साथ करें
लोगों की, अपनी भी
बात इक साथ करें
आओ जगरात करें ।

बात तारों की करें
इन बहारों की करें
अपने प्यारों की करें
जीत हारों की करें
सच्चे यारों की करें
राजदारों की करें
इक मुलाकात करें
आओ जगरात करें ।

पक्के वादों की करें
कच्चे धागों की करे
अपनी यादों की करें
कुछ इरादों की करें
बंद साजों की करे
खुले राजों की करें
भेंट सौगात करें
आओ जगरात करें ।

बात सपनों की करें
अपने अपनों की करे
धडकनों की भी करें
बचपनों की भी करें
बहते नयनों की करे
मीठे बयनों की करे
हंसी के साथ करें
आओ जगरात करें ।

भोर जो होने लगे
रात जब खोने लगे
किरणों में नहा लें हम
खुशियों को पा लें हम
मन को बस साफ करें
कही सुनी माफ करे
दोनों इक साथ करें

आओ जगरात करें ।

10 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

खुशियों को पा लें हम
मन को बस साफ करें
कही सुनी माफ करे
दोनों इक साथ करें
....................बहुत ख़ूबसूरत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सब मिलकर आनन्द मनायें..

Anupama Tripathi ने कहा…

सुखद और सुहावनी सी रचना ...
बहुत सुंदर ....

Arvind Mishra ने कहा…

आपकी यह सर्वतोभद्र कामना जगव्यापी बने

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत सुंदर कामना, शुभकामनाएं.

रामराम.

रविकर ने कहा…

बढ़िया शब्द चित्र
उत्तम भाव
सुन्दर प्रस्तुति-
आपका आभार आदरणीया -

Satish Saxena ने कहा…

बेहद सुंदर ..
अपनत्व की तलाश में कविता ..!!
बधाई !

हरकीरत ' हीर' ने कहा…



खुशियों को पा लें हम
मन को बस साफ करें
कही सुनी माफ करे
दोनों इक साथ करें

ख़ूबसूरत अहसास....!!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

किरणों में नहा लें हम
खुशियों को पा लें हम
मन को बस साफ करें ..

सच कहा है .. सबसे ज्यादा जरूरत तो इसी की है आज ... भावनात्मक रचना ...

अनुपमा पाठक ने कहा…

सुंदर!