जरूरत है कि आज (भारत) माँ को राखी बांधी
जाये ।
वचन देने के लिये कि यह राखी उसकी रक्षा के लिये है, जो
दर असल हमारी ही रक्षा है ।
मां जिसके गोद में कांधों पर खेल कर हम बडे हुए ।
मां जिसने हमें पाल पोस कर बडा किया, पढने लिखने की सुविधा दी ।
पांवों पर खडे होने का सहारा दिया ।
वही मां आज कैसे दुर्दिन देखने को मजबूर है ।
कैसी लूट खसोट हो रही है उसके साधनों की ।
कैसे उसके बहुतसे बच्चे वंचित हैं सुविधाओं से ।
वह दुखी है, विवश है ।
वह हमारी और तक रही है ।
हम जो सबल हैं हम जो कुछ कर सकते हैं ।
पर हम तो अपने लिये ज्यादा से ज्यादा सुविधाएं बटोर रहे हैं ।
हमें फुरसत कहां कि माँ को देखें, उसके वंचित संतानों को देखें ।
यह बाजार वाद यह पूंजी वाद हमें भावनाहीन, चेतना-शून्य करता जा रहा है
।
जरा ठहरें, सोचें कि हमें ये कहां ले जायेगा ?
हमारे संतानों को हम कैसे इन्सान बनायेंगे ?
इन्सान या हैवान या फिर संवेदनाशून्य रोबोटस् ।
बाज़ार का खाना, बाज़ार का पानी और आया के संस्कार और क्या बनायेगा
इनको ।
दादा दादी नाना नानी तो हमें गंवारा नही घर में ।
जरूरत है कि मां को फिर से संवारा जाये, उसका बल बना जाये ।
रिश्तों को संजोया जाये ।
यह वचन दिया जाये मां को कि उसकी रक्षा ही हमारा आद्य कर्तव्य है,
और यह हम प्राण पण से निभायेंगे ।
यह राखी इसी वचन का प्रतीक है ।
20 टिप्पणियां:
यह राखी इसी वचन का प्रतीक है,,,,
सुंदर प्रस्तुति ,,,,
रक्षाबँधन की हार्दिक शुभकामनाए,,,
RECENT POST ...: रक्षा का बंधन,,,,
बहुत बढ़िया |
असली राखी |
मातृभूमि के प्रति निष्ठा जन जन में बनी रहे..
भावनाओं का अनूठा संगम ... आभार
Very thoughtful verse!
ओजपूर्ण उदबोधन
देश प्रेम के लिये अब बन्धन जरूरी हो गया है। सुन्दर रचना। बधाई।
बहुत ही सजग और सार्थक सन्देश देती है आपकी रचना .. आज भारत माँ को जरूरत है इस रक्षा के बंधन की ...
जरूरत है कि आज (भारत) माँ को राखी बांधी जाये ।
वचन देने के लिये कि यह राखी उसकी रक्षा के लिये है, जो
दर असल हमारी ही रक्षा है ।
Behad nek aur achha vichar hai!
बढ़िया सन्देश देती आपकी यह पोस्ट सुंदर लगी !
आभार ताई ....
सार्थक और सामयिक पोस्ट , आभार.
कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें , आभारी होऊंगा .
मातृभूमि सर्वोपरि , करें सर्वदा गर्व
रक्षा का प्रण आज लें, तभी मनेंगे पर्व ||
अनुपम रक्षा बंधन.
देशभक्ति की चेतना
जगाती आपकी इस प्रस्तुति
को सादर नमन.
भारत माता को शत शत नमन.
बाज़ार का खाना, बाज़ार का पानी और आया के संस्कार और क्या बनायेगा इनको ।
दादा दादी नाना नानी तो हमें गंवारा नही घर में ।
....भावनाओं और यथार्थ का अद्भुत संगम..बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
आशाजी आपको और आपके समस्त परिवार को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
Sachche bhaaw bayaan kiye aapne. Badhjayi.
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कितनी बदल रही है हिन्दी!
चिंता जायज है.
वाकई यह बाजार वाद यह पूंजी वाद हमें भावनाहीन, चेतना-शून्य करता जा रहा है.समय रहते चेट जाना होगा.
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ये सब पोस्ट मुझ से कसी छूट गई?
लगता है ,मेरे पास आप के ब्लॉग की फीड नहीं आ रही हैं.
त्रुटि सुधार --@चेट नहीं चेत[अलर्ट]जाना होगा.
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