सोमवार, 26 मार्च 2012

६ त्रिदल

सिंदूरी आसमान
तुम्हारी चुनरी
फैली हो जैसे

नीला सागर
भूरी रेत
आंखें और दिल ।

सलेटी काला,
रात का साया
गहराता दुख ।

तारे टिमटिम
कोई तो किरण
रोशनी की ।

लंबी रात
बिना बात
खिंचता मौन ।

सुहानी हवा
भोर के पंछी
आस जगाते ।

22 टिप्‍पणियां:

Aruna Kapoor ने कहा…

बहुत सुन्दर वर्णन!...थोडेसे शब्दों में आपने बहुत कुछ कह दिया!

Suman ने कहा…

बहुत सुन्दर .....

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वाह ...बहुत सुंदर भाव

रविकर ने कहा…

जी बढ़िया कला ।

अच्छे भाव ।।

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut sundar tridal.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बेहतरीन त्रिदल

kshama ने कहा…

सुहानी हवा
भोर के पंछी
आस जगाते ।
Bahut,bahut sundar!

Satish Saxena ने कहा…

लंबी रात
बिना बात
खिंचता मौन ।

कमाल है ....
आभार आपका !

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

आनंद आया पढ़कर.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

गागर में सागर

mridula pradhan ने कहा…

kya baat hai......

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

बहुत सुन्दर.... वाह!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

हाइकू विचारों की एक नयी विमा प्रस्तुत करते हैं।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

वाह !!!!! बहुत सुंदर रचना,क्या बात है,बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति,

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

Coral ने कहा…

सुन्दर !

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

त्रिदल...?
कुछ कुछ हाइकु जैसे ..

बहुत सी नयी नयी विधाएं सिखने को मिल रहीं हैं .....

हाँ आपको मेरी पोस्ट दिखाई दी क्या ..?
वर्ना सबका यही कहना है ब्लॉग पे मेरी पुरानी पोस्ट ही दिखाई दे रही है ....

Abhishek Ojha ने कहा…

बढ़िया चित्रण !

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत सुन्दर. भोर के पंची आस जगाते हैं.

संजय भास्‍कर ने कहा…

पिछले कुछ दिनों से अधिक व्यस्त रहा इसलिए आपके ब्लॉग पर आने में देरी के लिए क्षमा चाहता हूँ...

....... रचना के लिए बधाई स्वीकारें

M VERMA ने कहा…

बहुत सुन्दर और भावयुक्त त्रिदल

Rakesh Kumar ने कहा…

सुहानी हवा
भोर के पंछी
आस जगाते ।

क्या सुन्दर भाव जगाया है आपने.
दलों में ये त्रिदल तो कमाल के हैं आशा जी.

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह!