शुक्रवार, 16 मार्च 2012

ख्याली पुलाव

नेता जो बेईमान कम होते
लोगों के वे देवता होते ।

छोडते जो पचास प्रतिशत भी
प्रगति में आज हम कहां होते ।

जो लोगों के लिये पुलिस होती,
लोग भी फिक्रमंद ना होते ।

आतंकी पैदा भी तब नही होते
गलत करने से पहले घबराते ।

पढाते शिक्षक जो क्लास में दिल से,
तो कोचिंग क्लास भी कहां चलते ।

पैदावार आती जो सब बजारों में
चीजों के ऊँचे दाम, कयूं होते ।

गोदामों में गेहूं फिर नही सडता
अपने भंडारक ही जो सही होते

सब को जो काम काज मिल जाता
इतने उत्पात तब नही होते ।

न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?

घूस से काम हम न करवाते
तब तो फिर घूसखोर ना होते ।

ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।

19 टिप्‍पणियां:

Aruna Kapoor ने कहा…

wow!...क्या खूब कही आशा जी आपने!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अधिक आशा करना छोड़ना होगा।

रविकर ने कहा…

सुन्दर ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut sahi likha hai...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

एकदम सटीक पंक्तियाँ

संगीता पुरी ने कहा…

ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।

देखिए .. सोंच ही तो सच होती है !!

Smart Indian ने कहा…

काश ऐसा होता ...

अनूप शुक्ल ने कहा…

:) क्या बात है। :)

mridula pradhan ने कहा…

....fir bhi 'khyali pulaw'bahut swadisht bana hai....

Rajput ने कहा…

सब कुछ के लिए स्वय हम जिम्मेदार है बस दूसरों को कोसने के लिए जिम्मेदारी उनके गले डाल देते हैं

बहुत खूब

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सटीक ... सच कहा है ... आज के नेताओं पे जो न कहो कम है ... पर आखिर में आपने सक्स्ह लिख दिया ... ख्याली पुलाव ही तो हैं ये ... नेता तो नहीं बदलने वाले ...

Vaanbhatt ने कहा…

लगता है मेरा कमेन्ट स्पैम में चला गया...सुंदर ग़ज़ल...

वर्षा ने कहा…

हा...हा...मज़ेदार

Rakesh Kumar ने कहा…

जब तक साँस,तब तक आस
सब आशा पर ही तो टिका है,आशा जी.

आशा करना जन्म सिद्ध अधिकार है हमारा.
सद्ज्ञान,सद्विवेक और सच्चे अंतर्मन से की गईं आशा कभी निष्फल नहीं होती.क्यूंकि ऐसी आशा प्रभु कृपा स्वरूप ही होती है.

त्रिजटा का स्वप्न सच ही होता है.

कुमार राधारमण ने कहा…

Charity begins at home. शुरूआत खुद के ही अवलोकन से ही की जा सकती है!

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…





न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?



सच कहा आपने ...
क्या बात है ...
वाह !

Suman ने कहा…

न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
bilkul sahi satik rachna ....

Rohit Singh ने कहा…

ख्याली पुलाव कहीं न हैं ये....आपने हकीकत ही बयां कर दी है

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....