नेता जो बेईमान कम होते
लोगों के वे देवता होते ।
छोडते जो पचास प्रतिशत भी
प्रगति में आज हम कहां होते ।
जो लोगों के लिये पुलिस होती,
लोग भी फिक्रमंद ना होते ।
आतंकी पैदा भी तब नही होते
गलत करने से पहले घबराते ।
पढाते शिक्षक जो क्लास में दिल से,
तो कोचिंग क्लास भी कहां चलते ।
पैदावार आती जो सब बजारों में
चीजों के ऊँचे दाम, कयूं होते ।
गोदामों में गेहूं फिर नही सडता
अपने भंडारक ही जो सही होते
सब को जो काम काज मिल जाता
इतने उत्पात तब नही होते ।
न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
घूस से काम हम न करवाते
तब तो फिर घूसखोर ना होते ।
ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।
लोगों के वे देवता होते ।
छोडते जो पचास प्रतिशत भी
प्रगति में आज हम कहां होते ।
जो लोगों के लिये पुलिस होती,
लोग भी फिक्रमंद ना होते ।
आतंकी पैदा भी तब नही होते
गलत करने से पहले घबराते ।
पढाते शिक्षक जो क्लास में दिल से,
तो कोचिंग क्लास भी कहां चलते ।
पैदावार आती जो सब बजारों में
चीजों के ऊँचे दाम, कयूं होते ।
गोदामों में गेहूं फिर नही सडता
अपने भंडारक ही जो सही होते
सब को जो काम काज मिल जाता
इतने उत्पात तब नही होते ।
न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
घूस से काम हम न करवाते
तब तो फिर घूसखोर ना होते ।
ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।
19 टिप्पणियां:
wow!...क्या खूब कही आशा जी आपने!
अधिक आशा करना छोड़ना होगा।
सुन्दर ।
bahut sahi likha hai...
एकदम सटीक पंक्तियाँ
ख्याली पुलाव पकाओ मत आशा
इतने सपने, कब, किसके, सच होते ।
देखिए .. सोंच ही तो सच होती है !!
काश ऐसा होता ...
:) क्या बात है। :)
....fir bhi 'khyali pulaw'bahut swadisht bana hai....
सब कुछ के लिए स्वय हम जिम्मेदार है बस दूसरों को कोसने के लिए जिम्मेदारी उनके गले डाल देते हैं
बहुत खूब
सटीक ... सच कहा है ... आज के नेताओं पे जो न कहो कम है ... पर आखिर में आपने सक्स्ह लिख दिया ... ख्याली पुलाव ही तो हैं ये ... नेता तो नहीं बदलने वाले ...
लगता है मेरा कमेन्ट स्पैम में चला गया...सुंदर ग़ज़ल...
हा...हा...मज़ेदार
जब तक साँस,तब तक आस
सब आशा पर ही तो टिका है,आशा जी.
आशा करना जन्म सिद्ध अधिकार है हमारा.
सद्ज्ञान,सद्विवेक और सच्चे अंतर्मन से की गईं आशा कभी निष्फल नहीं होती.क्यूंकि ऐसी आशा प्रभु कृपा स्वरूप ही होती है.
त्रिजटा का स्वप्न सच ही होता है.
Charity begins at home. शुरूआत खुद के ही अवलोकन से ही की जा सकती है!
♥
न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
सच कहा आपने ...
क्या बात है ...
वाह !
न्याय की प्रक्रिया गर आसाँ होती,
इतने अन्याय जग में, क्या होते ?
bilkul sahi satik rachna ....
ख्याली पुलाव कहीं न हैं ये....आपने हकीकत ही बयां कर दी है
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
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